
ट्रंप की अवैध प्रवासी नीति के चलते अमेरिका के डिटेंशन सेंटर्स में मानवाधिकारों का बड़ा उल्लंघन
डोनाल्ड ट्रंप की डिटेंशन नीति सवालों के घेरे में: अमेरिका के हिरासत केंद्रों में मानवाधिकारों का हनन
अमेरिका में प्रवासन और मानवाधिकार की जटिल जंग
अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रवासी नीति को लेकर हमेशा से विवाद रहा है। सत्ता में आते ही उन्होंने अवैध प्रवासियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू की, जिसके तहत हजारों लोगों को हिरासत में लिया गया। लेकिन जिस तरह से इन प्रवासियों को डिटेंशन सेंटर्स में रखा गया, उससे जुड़े हालात आज मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन की ओर इशारा कर रहे हैं।
डिटेंशन सेंटर्स की स्थिति भयावह
एक ताज़ा मानवाधिकार रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि फ्लोरिडा के क्रोम नॉर्थ सर्विस प्रोसेसिंग सेंटर, ब्रोवार्ड ट्रांजिशनल सेंटर और फेडरल डिटेंशन सेंटर जैसी जगहों पर प्रवासियों को अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं को पुरुष डिटेंशन सेंटर्स में रखा गया, जहां नहाने और शौच की उचित व्यवस्था नहीं थी, और गोपनीयता पूरी तरह भंग हो चुकी थी।
🧾 रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
डिटेंशन सेंटर में इलाज और दवाइयों की भारी कमी।
क्षमता से तीन गुना अधिक कैदी एक कक्ष में ठूंसे गए।
मानसिक स्वास्थ्य के इलाज की मांग पर कैदियों को एकांत कारावास में डाला गया।
बुनियादी सुविधाओं जैसे बिस्तर, साबुन, साफ पानी का अभाव।
इलाज की अनदेखी और मौतें
◾ मैरी एंज ब्लेज की दर्दनाक मौत
44 वर्षीय हैती की नागरिक मैरी एंज ब्लेज की ब्रोवार्ड ट्रांजिशनल सेंटर में बीमारी से तड़प-तड़प कर मौत हो गई। कैदियों ने गार्डों को पुकारा लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। आधे घंटे बाद जब रेस्क्यू टीम आई, तब तक मैरी की सांसें थम चुकी थीं।
◾ यूक्रेनी नागरिक मैक्सिम चेर्न्याक का अंत
क्रोम डिटेंशन सेंटर में बंद 44 वर्षीय मैक्सिम चेर्न्याक को बुखार, सीने में दर्द और उच्च रक्तचाप की शिकायत थी। समय रहते इलाज नहीं मिला। हालत बिगड़ी, लेकिन गार्डों ने ड्रग्स लेने का झूठा आरोप लगा दिया। आखिरकार उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया और दो दिन बाद मौत हो गई।
महिला कैदियों की हालत शर्मनाक
क्रोम सेंटर केवल पुरुषों के लिए है, लेकिन महिलाओं को भी वहीं रखा गया। नहाने की अनुमति नहीं, खुले टॉयलेट में पुरुषों की नजरों के सामने शौच करने की मजबूरी, और बेइज्जती का आलम—ये सभी बातें इस रिपोर्ट में दर्ज हैं। एक अर्जेंटीना की महिला कैदी ने कहा, “पुरुष कैदी कुर्सी पर खड़े होकर हमें नहाते और टॉयलेट करते हुए साफ-साफ देख सकते हैं।”
अमानवीय व्यवहार और सुरक्षा की कमी
रिपोर्ट के मुताबिक:
कैदियों को पूरा खाना नहीं मिलता, कई बार भूखे रहना पड़ता है।
लंबे समय तक हथकड़ियों में जकड़कर रखा जाता है।
तेज गर्मी और सर्दी में कोई राहत नहीं।
6 लोगों के लिए बने कमरों में 30-40 लोग रखे जाते हैं, जिससे लोगों को ज़मीन पर सोना पड़ता है।
टॉयलेट के लिए बाल्टी का इस्तेमाल करना पड़ता है।
ट्रंप की प्रवासी नीति और इसका स्याह पक्ष
डोनाल्ड ट्रंप का डिटेंशन अभियान एक ओर ‘अवैध प्रवासियों पर सख्ती’ का प्रतीक बना, वहीं दूसरी ओर यह अमेरिका के लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों पर चोट बन गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप की नीति की सबसे बड़ी खामी यही है कि यह ‘निर्वासन के नाम पर उत्पीड़न’ को बढ़ावा देती है।
नया इंफ्रास्ट्रक्चर या नया दृष्टिकोण?
ह्यूमन राइट्स वॉच, अमेरिकन्स फॉर इमिग्रेंट जस्टिस और सैंक्चुरी ऑफ द साउथ जैसी संस्थाओं ने प्रशासन से ‘एलीगेटर अल्काट्राज’ जैसे बंद सेंटर को फिर से खोलने की योजना की आलोचना की है। उनका कहना है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने से ज्यादा ज़रूरत है मानवीय नज़रिए की।
मानवाधिकार संगठन क्या कह रहे हैं?
रिपोर्ट की सह-लेखिका बेल्किस विले ने कहा, “यह स्थिति दिखाती है कि अमेरिका की प्रवासन नीति में सुधार की नहीं, बल्कि पुनर्चिंतन की जरूरत है।” उनके अनुसार, हिरासत केंद्रों में प्रवासियों के साथ व्यवहार जानवरों से भी बदतर है।
वैश्विक छवि पर असर
अमेरिका जो अक्सर मानवाधिकारों का पैरोकार रहा है, आज अपनी ही नीतियों की वजह से कठघरे में है। जब ऐसे गंभीर आरोप सामने आते हैं, तो अमेरिका की वैश्विक छवि धूमिल होती है, विशेषकर तब जब वह दूसरों को मानवाधिकारों का पाठ पढ़ाता है।
नतीजा:
डोनाल्ड ट्रंप की प्रवासी नीति और डिटेंशन सेंटर्स का यह सच आज अमेरिका के लोकतांत्रिक और मानवतावादी चेहरे पर सवाल खड़े कर रहा है। समय की मांग है कि अमेरिका अपनी प्रवासी नीतियों की पुन: समीक्षा करे, ताकि जो लोग किसी उम्मीद के साथ इस देश में आते हैं, उन्हें इंसानियत और सम्मान के साथ ट्रीट किया जाए।