
बिहार की राजधानी पटना में राज्य के प्रसिद्ध व्यवसायी गोपाल खेमका की सरेआम गोली मारकर हत्या, CCTV में कैद हमलावर, पुलिस जांच तेज | Shah Times रिपोर्ट
गोपाल खेमका की हत्या: पटना की सड़कों पर अपराधियों का तांडव और कानून-व्यवस्था पर सवाल
बिहार में निवेश का माहौल खतरे में: गोपाल खेमका की हत्या ने बढ़ाई चिंता
पटना में व्यवसायी गोपाल खेमका की हत्या ने कानून-व्यवस्था की पोल खोल दी है। पहले बेटे की हत्या और अब पिता की मौत ने पूरे राज्य को झकझोर दिया है। पढ़ें पूरा संपादकीय विश्लेषण।
बिहार की राजधानी पटना एक बार फिर गोलियों की गूंज से दहल उठी। गांधी मैदान थाना क्षेत्र के रामगुलाम चौक के पास शुक्रवार रात राज्य के चर्चित उद्योगपति गोपाल खेमका की सरेआम हत्या कर दी गई। हमलावरों ने उन्हें सिर में गोली मारी, जिससे घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गई। यह वारदात सिर्फ 300 मीटर की दूरी पर मौजूद थाने को मुंह चिढ़ाती नजर आई।
राजधानी में लगातार हो रही हत्याएं: कानून-व्यवस्था पर बड़ा प्रश्न
यह अकेला मामला नहीं है। इससे पहले वर्ष 2018 में खेमका के बेटे गुंजन खेमका की भी वैशाली जिले के इंडस्ट्रियल थाना क्षेत्र में दिनदहाड़े हत्या हुई थी। और अब छह साल बाद, उनके पिता गोपाल खेमका की निर्मम हत्या ने न सिर्फ परिवार को दोबारा गहरे आघात में डाल दिया, बल्कि पूरे राज्य में सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी।
सवाल यह उठता है कि जब एक हाई-प्रोफाइल व्यवसायी भी राजधानी की सड़कों पर सुरक्षित नहीं, तो आम जनता की सुरक्षा की क्या गारंटी है?
अपराधियों की हिम्मत या व्यवस्था की लापरवाही?
गोपाल खेमका की हत्या एक सुनियोजित साजिश नजर आती है। वे बांकीपुर क्लब से लौट रहे थे और अपनी कार स्वयं चला रहे थे। जैसे ही वे पनास होटल के पास अपने अपार्टमेंट पहुंचे, पहले से घात लगाए बाइक सवार बदमाशों ने उन्हें निशाना बना लिया। बताया जा रहा है कि अपराधियों ने पहले स्कूटी से रेकी की और फिर पीछा करते हुए गोली मारी।
सीसीटीवी फुटेज में हमलावर कैद हुए हैं, जो पुलिस जांच की दिशा में अहम सुराग हो सकता है। बावजूद इसके, अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और प्रशासन की हलचल
हत्या के दूसरे ही दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डीजीपी के साथ उच्चस्तरीय बैठक की। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए कि अपराधियों को किसी भी कीमत पर बख्शा न जाए और साजिश के सभी पहलुओं की गहराई से जांच की जाए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि “विधि-व्यवस्था सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है, किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।” यह बयान जरूर सख्त है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उसकी प्रभावशीलता पर जनता को संदेह है।
उद्योगपतियों में डर, निवेश वातावरण प्रभावित
खेमका जैसे उद्योगपतियों की हत्या बिहार में निवेश के माहौल पर भी सीधा असर डालती है। यह घटना दिखाती है कि व्यापारिक समुदाय असुरक्षित महसूस कर रहा है। जब राज्य में कानून-व्यवस्था मजबूत नहीं होगी, तब कैसे कोई निवेशक यहां व्यवसाय करने का साहस करेगा?
गोपनीय सूत्रों के अनुसार, कई स्थानीय व्यवसायियों ने अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर की है। कुछ ने तो बाहर के राज्यों में स्थानांतरित होने की योजना भी बना ली है।
पुलिस कार्रवाई और जनता की उम्मीदें
पुलिस का कहना है कि एसआईटी का गठन कर दिया गया है और तकनीकी साक्ष्यों के आधार पर जांच तेज़ी से चल रही है। लेकिन आम जनता के मन में सवाल है—क्या यह भी 2018 की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा?
गुंजन खेमका की हत्या की जांच आज तक पूरी पारदर्शिता से नहीं हुई। अब दोबारा उसी परिवार के मुखिया की हत्या, और पुलिस का भरोसा जीतना, दोनों ही बड़ी चुनौती बन चुके हैं।
सामाजिक आक्रोश और मीडिया दबाव
मीडिया और नागरिक संगठनों ने इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। कई संगठनों ने पटना पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। सोशल मीडिया पर #JusticeForKhemka ट्रेंड कर रहा है, जिसमें अपराधियों की जल्द गिरफ्तारी और पुलिस सुधार की मांग की जा रही है।
निष्कर्ष: अब केवल बयानबाज़ी नहीं, एक्शन चाहिए
बिहार में अपराध के ऐसे मामलों ने जनता का भरोसा बार-बार तोड़ा है। गोपाल खेमका की हत्या से साबित होता है कि सुरक्षा व्यवस्था को तत्काल ठोस और जवाबदेह बनाना आवश्यक है। अब सिर्फ बयान नहीं, पुलिस और प्रशासन को सटीक कार्रवाई करनी होगी।
राजनीतिक नेतृत्व को चाहिए कि वे अपराध नियंत्रण के वादों को केवल कागज़ों तक सीमित न रखें। आम जनता को सुरक्षा, विश्वास और न्याय की ज़रूरत है—और वह तभी संभव है जब व्यवस्था सख्त और सक्रिय हो।