
Rahul Gandhi’s Colombia statement sparks democracy debate – Shah Times
राहुल गांधी और लोकतंत्र की बहस: विदेश से उठी गूँज
क्या भारत का लोकतंत्र दबाव में है? सत्ता और विपक्ष की जंग
📍नई दिल्ली 🗓️02 अक्टूबर 2025✍️Asif Khan
राहुल गांधी ने कोलंबिया की यूनिवर्सिटी में भाषण देते हुए कहा कि भारत का लोकतंत्र इस समय खतरे में है। उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमले की बात कही। बीजेपी ने इसे राष्ट्रविरोधी करार दिया, तो कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र की सच्चाई बताया। इस बहस ने भारत की राजनीति, लोकतंत्र की सेहत और वैश्विक छवि पर नए सवाल खड़े कर दिए।
कोलंबिया से दिल्ली तक: राहुल गांधी बनाम बीजेपी
भारतीय राजनीति में राहुल गांधी के बयान कोई नई बात नहीं हैं। लेकिन जब ये बयान विदेशी धरती से आते हैं, तो उनकी गूँज और भी गहरी हो जाती है। कोलंबिया की EIA यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी ने कहा कि भारत में लोकतंत्र पर चौतरफा हमला हो रहा है। उनका यह कथन केवल राजनीति का हिस्सा नहीं बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर सवाल है।
लोकतंत्र का असली अर्थ
भारत का लोकतंत्र महज़ चुनाव और सत्ता परिवर्तन का खेल नहीं है। यह एक सामाजिक समझौता है जहाँ हर व्यक्ति, हर जाति, हर धर्म और हर भाषा को बराबरी का स्थान मिलता है। लोकतंत्र का अर्थ है विचारों की बहुलता, असहमति की इज़्ज़त और जनता की आवाज़ को जगह।
आज अगर विपक्ष को बोलने का अधिकार छीना जाए, मीडिया को दबाया जाए, छात्रों और प्रदर्शनकारियों पर लाठियाँ बरसाई जाएँ, तो यह लोकतंत्र के लिए ख़तरे की घंटी है। राहुल गांधी का कहना था कि भारत जैसे विविध देश में लोकतंत्र के बिना कुछ भी संभव नहीं।
उन्होंने साफ़ कहा कि भारत चीन की तरह लोगों को दबाकर नहीं चल सकता। भारत की ताक़त उसकी विविधता है, उसकी विकेंद्रीकृत व्यवस्था है। यह बात उनके पूरे भाषण का केंद्र बिंदु थी।
सत्ता और विपक्ष का टकराव
राहुल गांधी के इस बयान पर बीजेपी ने तुरंत पलटवार किया। कंगना रनौत ने उन्हें देश का कलंक बताया। उनका तर्क था कि राहुल गांधी विदेश जाकर भारत की छवि खराब करते हैं। केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं को विदेश में बदनाम करना राहुल गांधी की आदत बन गई है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या किसी भी आलोचना को देशद्रोह कहना उचित है? क्या लोकतंत्र का मतलब यही है कि केवल सत्ता की तारीफ़ हो और आलोचना करने वालों को गद्दार कहा जाए?
कांग्रेस का जवाब साफ़ था – आलोचना लोकतंत्र की आत्मा है। अगर राहुल गांधी सत्ता की कमियों की ओर इशारा कर रहे हैं, तो यह देशभक्ति का ही हिस्सा है।
लद्दाख और लोकतंत्र की क़ीमत
राहुल गांधी ने अपने भाषण में लद्दाख का ज़िक्र किया। हाल ही में वहाँ पुलिस फायरिंग में चार लोगों की मौत हो गई थी। इनमें से एक शहीद सैनिक का बेटा भी शामिल था। कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया। राहुल गांधी ने कहा – “एक सैनिक का बेटा केवल अपने हक़ की माँग कर रहा था, लेकिन उसे गोलियों से जवाब मिला।”
यह बयान सरकार के लिए बेहद असहज था क्योंकि यह लोकतंत्र की जड़ पर चोट करता है। अगर जनता अपनी माँग रखे और जवाब में गोलियाँ मिलें, तो लोकतंत्र का मतलब ही क्या रह जाता है?
भारत बनाम चीन – तुलना और संभावनाएँ
राहुल गांधी ने भारत और चीन की तुलना करते हुए कहा कि चीन एक केंद्रीकृत व्यवस्था वाला देश है, जहाँ जनता की राय दबाई जाती है। भारत इसके बिल्कुल उलट है। भारत में विभिन्न धर्म, भाषाएँ, परंपराएँ और संस्कृतियाँ हैं। यही विविधता भारत की ताक़त है।
उन्होंने कहा – “भारत दुनिया को बहुत कुछ दे सकता है। हमारी आध्यात्मिक और वैचारिक परंपरा आधुनिक दुनिया के लिए उपयोगी है। लेकिन सबसे बड़ा ख़तरा लोकतंत्र पर हो रहे हमले से है। अगर यह हमला जारी रहा तो भारत अपनी क्षमता पूरी तरह नहीं दिखा पाएगा।”
आलोचना बनाम राष्ट्रविरोध
बीजेपी नेताओं ने राहुल गांधी को प्रोपेगेंडा फैलाने वाला कहा। लेकिन लोकतंत्र में आलोचना को बर्दाश्त करना ही उसकी असली ताक़त है। अगर सरकार हर आलोचना को राष्ट्रविरोध कहे, तो यह लोकतंत्र की सेहत पर सबसे बड़ा सवाल है।
लोकतंत्र की ख़ूबसूरती यह है कि इसमें सत्ता और विपक्ष दोनों की भूमिका अहम है। सत्ता अगर दिशा दिखाती है तो विपक्ष उसे आईना दिखाता है। बिना विपक्ष के लोकतंत्र अधूरा है।
मीडिया और जनमत
आज का लोकतंत्र केवल संसद तक सीमित नहीं है। मीडिया और सोशल मीडिया ने इसे और व्यापक बना दिया है। राहुल गांधी के बयान को सोशल मीडिया पर व्यापक प्रतिक्रिया मिली। कुछ लोगों ने उनकी बात से सहमति जताई, तो कईयों ने इसे देशविरोधी करार दिया।
यहाँ यह समझना ज़रूरी है कि लोकतंत्र बहस से मज़बूत होता है, चुप्पी से नहीं।
राहुल गांधी की राजनीतिक रणनीति
राहुल गांधी लगातार मोदी सरकार पर हमला बोल रहे हैं। वोट चोरी का मुद्दा हो, बिहार की प्रक्रिया हो, या लद्दाख का मामला – हर जगह वह सरकार को घेरते नज़र आते हैं। कोलंबिया में दिया गया उनका बयान भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है।
उनका मक़सद अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह दिखाना है कि भारत में लोकतंत्र दबाव में है। यह एक सियासी चाल भी है और एक गंभीर चेतावनी भी।
लोकतंत्र का भविष्य
भारत की लोकतांत्रिक यात्रा आसान नहीं रही। आज़ादी से लेकर अब तक कई चुनौतियाँ आईं। आपातकाल भी देखा, सांप्रदायिक दंगे भी देखे, लेकिन लोकतंत्र जिंदा रहा। सवाल यह है कि क्या आज का लोकतंत्र पहले जितना मजबूत है?
अगर विपक्ष की आवाज़ दबाई जाएगी, मीडिया पर अंकुश होगा और जनता के सवालों को अनसुना किया जाएगा, तो यह लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर करेगा।
राहुल गांधी का बयान भले ही विवादास्पद लगे, लेकिन यह हमें सोचने पर मजबूर करता है – क्या हम वास्तव में लोकतंत्र को उसकी असली भावना के साथ जी रहे हैं?
निष्कर्ष
लोकतंत्र आलोचना से मज़बूत होता है, चुप्पी से नहीं। सत्ता और विपक्ष की इस लड़ाई में असली सवाल यही है कि भारत का लोकतंत्र कहाँ खड़ा है। क्या यह इतना मज़बूत है कि हर आलोचना को सह सके? या यह इतना कमज़ोर हो गया है कि आलोचना को भी राष्ट्रविरोध समझे? जवाब समय देगा।X