
Leaders of opposition parties arrive at Rahul Gandhi’s residence in New Delhi for a high-level dinner meeting to discuss electoral strategy, SIR issue, and upcoming Vice Presidential election.
राहुल गांधी की डिनर डिप्लोमेसी से विपक्षी एकता को नई दिशा
राहुल गांधी की डिनर डिप्लोमेसी उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले विपक्ष की एकजुटता का टेस्ट
राहुल गांधी के आवास पर डिनर में विपक्षी दलों ने SIR, उपराष्ट्रपति चुनाव और वोटर लिस्ट जैसे मुद्दों पर रणनीति बनाई। क्या कांग्रेस ने विपक्ष की नब्ज पकड़ ली है?
राजनीतिक विश्लेषण: राहुल गांधी की डिनर डिप्लोमेसी और SIR पर सियासी संग्राम
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने दिल्ली स्थित अपने सरकारी आवास पर विपक्षी INDIA गठबंधन के प्रमुख नेताओं के लिए एक महत्वपूर्ण डिनर आयोजित किया। इस मुलाक़ात को संसद के वर्तमान सत्र के मध्य विपक्ष के आंतरिक समन्वय और आगामी रणनीति के लिहाज से निर्णायक माना जा रहा है। इस बैठक में SIR (Special Intensive Revision of Voter List), उपराष्ट्रपति चुनाव, ऑपरेशन सिंदूर और अमेरिका-भारत टैरिफ जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा की संभावना जताई गई है।
क्या है इस डिनर की राजनीतिक अहमियत?
राहुल गांधी द्वारा आयोजित इस डिनर में आरजेडी से तेजस्वी यादव, शिवसेना (उद्धव गुट) से उद्धव ठाकरे, सीपीआईएमएल से दीपांकर भट्टाचार्य, सीपीआई और सीपीएम से डी. राजा व एम.ए. बेबी, टीएमसी से अभिषेक बनर्जी, एसपी से अखिलेश यादव, डीएमके से कनिमोझी, जेएमएम से महुआ माझी, केरल कांग्रेस से जोस के मानी और आईयूएमएल से पीके कुंजाली कुट्टी जैसे नेता मौजूद रहे।
इस डिनर को सिर्फ एक भोज नहीं, बल्कि विपक्षी एकता के नए सिरे से शंखनाद के रूप में देखा जा रहा है। राहुल गांधी द्वारा आयोजित यह बैठक ऐसे समय में हुई जब चुनाव आयोग ने 9 सितंबर को उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी की है।
कांग्रेस की रणनीति: संसद में विपक्ष को एकजुट करने की नई पारी
बीते कुछ सत्रों में कांग्रेस ने संसद के भीतर विपक्षी एकता को उतनी प्राथमिकता नहीं दी, जितनी अब दे रही है। लेकिन हाल ही में राहुल गांधी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने विपक्षी नेताओं के साथ संवाद को प्राथमिकता दी है।
डिनर डिप्लोमेसी के जरिए कांग्रेस ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वह अब सिर्फ खुद के मुद्दे नहीं, बल्कि वृहद विपक्षी एजेंडा को लेकर चलने को तैयार है। इसी डिनर के अगले दिन यानी 8 अगस्त को विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग मुख्यालय तक मार्च निकालने की योजना बनाई है।
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SIR बना विपक्षी एकता का नया केंद्रबिंदु
इस बैठक में वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर खास चर्चा की गई। कांग्रेस ने दावा किया है कि चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट में ऐसे संशोधन किए हैं जिससे कई वोटरों के नाम बिना कारण हटाए जा रहे हैं।
राहुल गांधी ने महाराष्ट्र और कर्नाटक की वोटर लिस्ट का उदाहरण देते हुए कहा कि ये “वोट की चोरी” है। उन्होंने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ बताया।
डीएमके नेता तिरुचि शिवा ने कहा –
“वोटर लिस्ट रिवीजन के नाम पर मताधिकार छीना जा रहा है। आज यह बिहार में हो रहा है, कल तमिलनाडु, बंगाल और अन्य राज्यों में भी होगा।”
मार्क्सवादी नेता जॉन ब्रिटास ने और भी बड़ा आरोप लगाया –
“इस SIR का संचालन असली निर्वाचन सदन में नहीं, बल्कि कहीं और से हो रहा है।”
विपक्ष के लिए उपराष्ट्रपति चुनाव में चुनौती और अवसर
हालांकि एनडीए के पास उपराष्ट्रपति चुनाव में संख्या बल है, लेकिन विपक्षी एकता का यह प्रयास राजनीतिक विमर्श को धार देने का माध्यम बन सकता है। राहुल गांधी इस प्रयास से यह साबित करना चाहते हैं कि विपक्ष संसद से लेकर सड़क तक एकजुट है।
विपक्ष के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि इस एकता को कम से कम 9 सितंबर तक बरकरार रखा जाए। उम्मीदवार पर आम सहमति बनाना, और उसके पक्ष में एकजुट होकर प्रचार करना, कांग्रेस के नेतृत्व कौशल की परीक्षा होगी।
टीएमसी, लेफ्ट, AAP जैसे प्रतिद्वंद्वी भी हुए साथ
डिनर में सबसे दिलचस्प बात यह रही कि पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक-दूसरे के विरोधी रहे टीएमसी और लेफ्ट के नेता भी एक साथ बैठे। वहीं, INDIA गठबंधन से बाहर हो चुकी आम आदमी पार्टी भी SIR के मुद्दे पर विपक्षी प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल हुई।
यह विपक्षी एकता इस बात की ओर इशारा करती है कि वोटर लिस्ट रिवीजन जैसे मुद्दे सभी क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व से जुड़े सवाल बन चुके हैं। अब ये दल कांग्रेस से हाथ मिलाने को तैयार हैं, बशर्ते उनके मुद्दों को प्राथमिकता दी जाए।
ऑपरेशन सिंदूर बनाम SIR: संसद में प्राथमिकता किसे?
संसद में विपक्ष पहले ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम आतंकी हमले पर चर्चा की मांग कर रहा था, लेकिन अब SIR ने उन मुद्दों को पीछे छोड़ दिया है। टीएमसी ने लोकसभा की कार्यवाही की शुरुआत में प्रदर्शन इसलिए किया क्योंकि उसे लगता था कि सरकार ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा करवा देगी लेकिन SIR को टाल देगी।
अब विपक्ष की कोशिश यही है कि सरकार को SIR पर भी चर्चा के लिए मजबूर किया जाए।
क्या कांग्रेस पकड़ चुकी है विपक्ष की नब्ज?
राहुल गांधी की यह डिनर मीटिंग दर्शाती है कि कांग्रेस अब पुराने रवैये से हटकर संवेदनशील क्षेत्रीय मुद्दों को प्राथमिकता देने को तैयार है। कांग्रेस ने यह समझ लिया है कि उसे अगर विपक्ष को एकजुट रखना है तो उसे केवल राष्ट्रीय मुद्दों से नहीं, बल्कि क्षेत्रीय दलों की चिंताओं से भी जुड़ना होगा।
SIR जैसे मुद्दे विपक्ष के लिए न सिर्फ चुनावी बल्कि लोकतांत्रिक अस्तित्व से जुड़ा सवाल बन चुके हैं। ऐसे में यह डिनर डिप्लोमेसी सिर्फ एक भोज नहीं, बल्कि आगामी सियासी समीकरणों की नींव भी बन सकती है।