
पुतिन की दिल्ली यात्रा और ग्लोबल साउथ की नई राजनीति
अमेरिका का दबाव, रूस का समर्थन और भारत की स्वाभिमान नीति
📍न्यूयॉर्क / नई दिल्ली|28 सितम्बर 2025|आसिफ़ ख़ान
संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस ने खुलकर भारत की तारीफ़ की और UNSC में स्थायी सीट का समर्थन किया। पुतिन की प्रस्तावित दिसंबर यात्रा दोनों देशों के रिश्तों को नई दिशा दे सकती है। अमेरिकी दबाव के बीच भारत की स्वतंत्र विदेश नीति ग्लोबल साउथ के लिए मिसाल बन रही है।
दुनिया की राजनीति अक्सर मोहरों की तरह चलती है। कभी वॉशिंगटन की चाल भारी पड़ती है, तो कभी मॉस्को अपनी ताक़त दिखाता है। इस बार खेल का केंद्र है भारत। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत की न सिर्फ़ तारीफ़ की बल्कि खुलकर कहा कि सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता में भारत का हक़ बनता है।
यह कोई साधारण बयान नहीं था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को लेकर रूस का ये समर्थन ऐसे समय आया है जब अमेरिका लगातार भारत पर दबाव डाल रहा है — ख़ासकर रूसी तेल खरीद के मामले में। लेकिन भारत ने जो रास्ता चुना है, वह है स्वतंत्र और स्वाभिमान आधारित विदेश नीति।
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भारत-रूस रिश्तों का ऐतिहासिक आधार
भारत और रूस का रिश्ता नया नहीं है। शीत युद्ध के ज़माने से दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी रही है। हथियारों से लेकर स्पेस प्रोजेक्ट्स तक, रूस ने भारत का भरोसेमंद पार्टनर बनकर साथ निभाया। आज भी भारत के रक्षा सिस्टम का बड़ा हिस्सा रूसी तकनीक पर टिका है।
यूक्रेन संकट के बाद जब पूरी दुनिया रूस से दूरी बना रही थी, भारत ने संतुलन का रास्ता अपनाया। न अमेरिका के कहने पर रूस का विरोध किया, न मॉस्को से पीठ मोड़ी। यही संतुलित नीति आज भारत की सबसे बड़ी ताक़त बनकर सामने आई है।
लावरोव के बयान का असली मायने
लावरोव ने कहा कि भारत तुर्की की तरह एक स्वाभिमानी मुल्क है। उन्होंने जयशंकर का वह जवाब याद दिलाया जब उन्होंने कहा था कि “अगर अमेरिका हमें तेल बेचना चाहता है, तो हम तैयार हैं, लेकिन हम किससे क्या खरीदते हैं, यह हमारा अपना मामला है।”
ये बयान सिर्फ़ डिप्लोमैटिक नहीं बल्कि एक राजनीतिक मैसेज भी है। रूस ये दिखाना चाहता है कि भारत की पोज़िशन अब ग्लोबल साउथ के लीडर की है।
UNSC स्थायी सीट: क्यों अहम है?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट पर भारत का दावा दशकों पुराना है। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। दुनिया की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में है। इसके बावजूद UNSC में वही पाँच देश (P5) राज कर रहे हैं।
रूस का यह समर्थन भारत के लिए नैरेटिव बिल्डिंग का काम करता है। अमेरिका और उसके सहयोगी भले अभी चुप हों, लेकिन ग्लोबल साउथ के दबाव से UNSC में सुधार की माँग तेज़ हो रही है।
पुतिन की प्रस्तावित यात्रा
लावरोव ने ऐलान किया कि दिसंबर में रूसी राष्ट्रपति पुतिन भारत आ सकते हैं। यह दौरा सिर्फ़ औपचारिकता नहीं बल्कि रणनीतिक रिश्तों को नई दिशा देने वाला होगा। खासतौर पर यूक्रेन वॉर के बाद पुतिन की यह भारत यात्रा बड़ी घटना मानी जाएगी।
इस यात्रा में व्यापार, ऊर्जा, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, और डिफ़ेन्स को लेकर अहम समझौते हो सकते हैं। रूस के लिए भारत ऐसा पार्टनर है, जो न सिर्फ़ मार्केट है बल्कि एक भरोसेमंद सहयोगी भी है।
अमेरिका और वेस्ट का दबाव
पश्चिमी देशों की दिक़्क़त यही है कि भारत उनके लाइन में नहीं चल रहा। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए, लेकिन भारत ने साफ़ कर दिया कि राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं।
यह वही पॉलिसी है जो नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक अपनाते रहे — नॉन-अलाइंड मूवमेंट का नया अवतार। फर्क बस इतना है कि अब भारत सिर्फ़ “ना हाँ” करने वाला देश नहीं बल्कि सक्रिय खिलाड़ी है।
आर्थिक और भू-राजनीतिक समीकरण
रूस से सस्ता तेल खरीदना भारत के लिए गेमचेंजर रहा। इससे न सिर्फ़ महंगाई काबू में रही बल्कि भारत की ग्रोथ रेट भी मज़बूत रही। IMF और वर्ल्ड बैंक तक मानते हैं कि 2025 में भी भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा।
भू-राजनीति में भारत की ये ताक़त अमेरिकी और यूरोपीय दावों को चुनौती देती है। यही वजह है कि रूस भारत को साथ लेकर चलना चाहता है।
ब्रिक्स और ग्लोबल साउथ
ब्रिक्स (Brazil, Russia, India, China, South Africa) अब सिर्फ़ एक ग्रुप नहीं, बल्कि ग्लोबल साउथ की आवाज़ बन चुका है। इस मंच पर भारत और रूस की समझदारी रिश्तों को और मज़बूत बनाती है।
ब्रिक्स बैंक, AI सहयोग, और ट्रेड नेटवर्किंग में भारत की अहमियत रूस के लिए वैसी ही है जैसी शीत युद्ध के दौर में थी।
भारत का स्वाभिमान और भविष्य
असल सवाल यह है कि क्या भारत इस समर्थन का फ़ायदा उठा पाएगा? इतिहास गवाह है कि UNSC सुधार आसान नहीं है। लेकिन राजनीति में सिम्बॉलिज़्म भी बहुत मायने रखता है। रूस का समर्थन भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नैतिक और रणनीतिक बढ़त देता है।
भारत अब वह मुल्क नहीं रहा जिसे दुनिया सिर्फ़ एक बड़ा मार्केट समझे। आज भारत एक पॉलिटिकल पावर है — जो वॉशिंगटन, बीजिंग और मॉस्को सभी के लिए अनिवार्य है।