
Jaipur SMS Hospital ICU Fire Accident – Rescue teams struggle amid smoke and chaos
आईसीयू में आग: जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में त्रासदी का दिन
शॉर्ट सर्किट से फैली मौत की लपटें – जयपुर के एसएमएस अस्पताल में बड़ा हादसा
📍 जयपुर, राजस्थान
📅 6 अक्टूबर 2025
🖋️ आसिफ़ ख़ान
जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल के आईसीयू वार्ड में सोमवार तड़के भीषण आग लगने से आठ मरीजों की मौत हो गई। हादसे का कारण शॉर्ट सर्किट बताया जा रहा है। आग इतनी तेज़ी से फैली कि जहरीला धुआं पूरे वार्ड में फैल गया। अधिकांश मरीज बेहोशी की हालत में थे, जिन्हें निकालने में अस्पताल कर्मियों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
जयपुर की सुबह आज धुएं में घिरी हुई थी — अस्पताल के आईसीयू से उठता काला धुआं मानो शहर की सांसों को थाम गया था। सवाई मान सिंह (SMS) अस्पताल, जो उम्मीदों की जगह माना जाता है, उस दिन मौत के सन्नाटे से भर गया। आग का कारण शॉर्ट सर्किट बताया गया, लेकिन सवाल यही है कि क्या इतने बड़े सरकारी अस्पताल में सुरक्षा इंतज़ाम इतने कमज़ोर हैं कि एक चिंगारी आठ ज़िंदगियाँ निगल जाए?
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अस्पताल प्रशासन ने बताया कि ट्रॉमा आईसीयू में 11 मरीज थे और सेमी-आईसीयू में 13। आग ट्रॉमा आईसीयू से शुरू हुई, जहरीले धुएं ने कुछ ही मिनटों में वार्ड को भर दिया। कई मरीज वेंटिलेटर पर थे, हिलने-डुलने की स्थिति में नहीं थे। नर्सिंग स्टाफ ने पूरी कोशिश की, पर आग और धुएं ने सब कुछ निगल लिया।
एक नर्स के शब्दों में, “हमने ट्रॉली पर मरीजों को बाहर निकालना शुरू किया, पर धुआं इतना था कि आंखें खुली नहीं रह पा रही थीं।” यह बयान किसी फिल्मी सीन का नहीं, बल्कि हमारे सिस्टम की कड़वी हकीकत का आईना है।
कई बार हम सुनते हैं — “शॉर्ट सर्किट हुआ, आग लग गई।” पर असल सवाल है, शॉर्ट सर्किट रोकने के इंतज़ाम कहां हैं? ICU यानी Intensive Care Unit, पर यहाँ “Care” नज़र नहीं आई। आग बुझाने वाले सिस्टम (Fire Sprinklers) या धुएं के सेंसर कहाँ थे? क्या कभी उनकी जांच हुई?
राजस्थान सरकार ने हादसे की जांच के आदेश दिए हैं, पर क्या हर जांच के बाद भी कुछ बदलता है? बीते कुछ सालों में देश के कई हिस्सों में अस्पतालों में आग की घटनाएँ हुईं — मुंबई, राजकोट, भोपाल, दिल्ली। हर जगह तात्कालिक मुआवज़ा, बयानबाज़ी और फिर भूल जाने की आदत।
इस हादसे ने यह साफ कर दिया कि अस्पतालों की फायर सेफ्टी केवल कागज़ों में है। ज़मीनी हकीकत में तो वायरें दीवारों से लटक रही हैं, ऑक्सीजन पाइपलाइन के पास खुले सॉकेट हैं, और फायर एग्ज़िट के सामने फाइलों के ढेर।
“ज़िंदगी” ICU में भर्ती थी और “सिस्टम” बेहोश।
कई मरीज तो आग में नहीं, बल्कि धुएं में दम तोड़ बैठे — यह इस त्रासदी की सबसे दर्दनाक सच्चाई है।
एक बुज़ुर्ग मरीज के परिजन बोले, “हमने अस्पताल में भरोसा किया था, पर वहां मौत का जाल बिछा था।”
यह शब्द हर उस नागरिक की आवाज़ हैं जो चाहता है कि अस्पताल सिर्फ इलाज की जगह नहीं, बल्कि भरोसे की भी पहचान बने।
आग के बाद की तस्वीरें डराने वाली थीं — टूटी मशीनें, जले हुए बेड, और धुएं से स्याह दीवारें। लेकिन सबसे डरावनी तस्वीर थी उस सिस्टम की, जो हर बार हादसे के बाद भी जागता नहीं।
अब वक्त है कि अस्पताल प्रबंधन, प्रशासन और सरकार मिलकर इस लापरवाही के चक्र को तोड़ें। फायर सेफ्टी केवल औपचारिक जांच नहीं होनी चाहिए, बल्कि जीवन की प्राथमिकता बननी चाहिए। क्योंकि जब अस्पताल ही असुरक्षित हों, तो समाज कितना सुरक्षित रह सकता है?
आग बुझ गई, मगर सवाल अब भी जल रहे हैं —
क्या यह आख़िरी हादसा था? या अगली खबर फिर किसी और शहर से आएगी?