
भारत-अमेरिका खटास और चीन यात्रा—क्या बदलेगा एशियाई शक्ति समीकरण?
तियानजिन में मोदी-शी-पुतिन मुलाकात, वैश्विक कूटनीति का बड़ा इम्तिहान
तियानजिन में SCO सम्मेलन में मोदी, चिनफिंग और पुतिन एक मंच पर। अमेरिका के टैरिफ के बीच भारत की कूटनीति पर दुनिया की नजरें।
New Delhi,(Shah Times) । चीन के तियानजिन में शुरू हुआ दो दिवसीय शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन इस बार वैश्विक राजनीति का अहम केंद्र बन गया है। इस मंच पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक साथ नज़र आएंगे। हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाई गई टैरिफ नीतियों ने भारत-अमेरिका रिश्तों में अप्रत्याशित गिरावट ला दी है, जिसके बाद मोदी की यह चीन यात्रा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
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एससीओ की अहमियत और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
SCO (Shanghai Cooperation Organization) की स्थापना 2001 में हुई थी।
इसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देश शामिल हैं।
इसका उद्देश्य क्षेत्रीय स्थिरता, आतंकवाद-विरोध और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है।
भारत-चीन रिश्तों का उतार-चढ़ाव
गलवान घाटी (2020) के बाद रिश्ते ठंडे पड़े।
कैलाश मानसरोवर यात्रा और टूरिस्ट वीज़ा की बहाली ने रिश्तों को सुधारने की कोशिश की।
चिनफिंग-मोदी की यह मुलाक़ात पांच साल पुराने गतिरोध के बाद रिश्तों को reset करने का मौका है।
अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी और उसका असर
ट्रंप ने भारत और चीन दोनों पर भारी टैरिफ लगाए।
रूस पर पहले से ही प्रतिबंध लागू हैं।
इसका सीधा असर सप्लाई चेन और वैश्विक व्यापार पर पड़ा।
मोदी-पुतिन मुलाक़ात और जेलेंस्की कॉल
पीएम मोदी तियानजिन पहुंचने के कुछ समय बाद यूक्रेन राष्ट्रपति जेलेंस्की से फोन पर बात की।
भारत ने शांति, युद्धविराम और मानवीय समाधान का समर्थन दोहराया।
पुतिन के साथ मुलाकात में यूक्रेन मुद्दा मुख्य एजेंडा रहेगा।
विश्लेषण: भारत की “संतुलन कूटनीति”
भारत इस समय दोहरी चुनौती झेल रहा है—
अमेरिका से रिश्तों में खटास (टैरिफ, क्वाड का दबाव)।
चीन के साथ सीमा विवाद और आर्थिक निर्भरता।
👉 इस परिस्थिति में मोदी की रणनीति Strategic Autonomy यानी “न तो पूरी तरह पश्चिम के साथ, न पूरी तरह पूर्व के साथ” अपनाने की है।
Counterpoints: चुनौतियाँ और विरोधाभास
क्या भारत चीन पर भरोसा कर सकता है जबकि सीमा पर तनाव बना हुआ है?
पुतिन-भारत रिश्तों में ऊर्जा और हथियारों पर निर्भरता क्या भारत को रूस के साथ बाँध कर रखेगी?
अमेरिका से दूरी बनाने की कीमत क्या भारत की टेक्नोलॉजी और रक्षा साझेदारी पर पड़ेगी?
SCO मंच पर भारत की प्राथमिकताएँ
आर्थिक सहयोग: Rare earth minerals, fertilizer, machinery की सप्लाई।
सुरक्षा एजेंडा: सीमा पार आतंकवाद पर कड़ा रुख।
कूटनीतिक संतुलन: रूस-चीन-भारत त्रिकोण के जरिए अमेरिका पर दबाव।
वैश्विक दृष्टि: एक नया गठबंधन?
अमेरिका बनाम रूस-चीन ध्रुवीकरण तेज हो रहा है।
भारत की स्थिति swing power जैसी है—वह तय कर सकता है कि संतुलन किस ओर झुकेगा।
SCO और BRICS दोनों मंचों पर भारत की भूमिका वैश्विक भू-राजनीति को दिशा दे रही है।
नतीजा
तियानजिन का यह शिखर सम्मेलन केवल औपचारिक कूटनीति नहीं बल्कि 21वीं सदी के शक्ति समीकरण की एक झलक है। मोदी-चिनफिंग-पुतिन की यह तिकड़ी आने वाले वर्षों में यह तय करेगी कि एशिया की धुरी अमेरिका से टकराव में किस हद तक आगे बढ़ सकती है।
भारत के लिए यह यात्रा अवसर भी है और चुनौती भी—अवसर इसलिए क्योंकि वह बहुध्रुवीय दुनिया का अहम केंद्र बन सकता है; और चुनौती इसलिए क्योंकि उसे सीमा विवाद और पश्चिमी रिश्तों की खटास के बीच संतुलन साधना है।





