
Prime Minister Narendra Modi attends the SCO Summit 2025 in Tianjin, highlighting terrorism as the biggest challenge to humanity | Shah Times
आतंकवाद पर मोदी की सख्ती, कांग्रेस बोली– चीन के आगे झुके प्रधानमंत्री
तियानजिन में मोदी का बयान: आतंकवाद से जंग या कूटनीति में नरमी?
एससीओ शिखर सम्मेलन: मोदी की आतंकवाद पर सख्ती और चीन पर नरमी
एससीओ शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने आतंकवाद पर सख्त रुख अपनाया, मगर कांग्रेस ने चीन पर नरमी दिखाने का आरोप लगाकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा किया।
वैश्विक मंच पर भारत की आवाज़
तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच से आतंकवाद को विकास, स्थिरता और मानवता के लिए सबसे बड़ा ख़तरा करार दिया। उनके संबोधन में जहाँ भारत के चार दशकों के दर्द और पहलगाम जैसे हालिया हमलों का ज़िक्र था, वहीं वैश्विक बिरादरी को ‘दोहरे मापदंड’ छोड़ने का स्पष्ट संदेश भी शामिल था। लेकिन इसी भाषण ने भारत की घरेलू राजनीति में एक नया विवाद खड़ा कर दिया—क्योंकि कांग्रेस ने इसे “चीन के आगे झुकना” करार दिया।
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आतंकवाद पर भारत का कड़ा रुख पहलगाम हमला और वैश्विक चेतावनी
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि आतंकवाद न तो किसी देश की सीमाओं को मानता है और न ही किसी समाज को छोड़ता है। “भारत ने हमेशा इस लड़ाई को एकजुटता से लड़ा है,” मोदी ने कहा। पहलगाम का ताज़ा हमला उनके भाषण का भावनात्मक केंद्र रहा—जहाँ निर्दोष नागरिकों की जान गई। मोदी ने इसे “मानवता पर हमला” बताते हुए दुनिया को आगाह किया कि यदि आतंकवाद को ‘गुड’ और ‘बैड’ की श्रेणियों में बाँटा गया, तो यह सभी देशों के लिए विनाशकारी होगा।
आतंकवाद पर दोहरे मानदंड की आलोचना
उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि किसी भी देश को यह अधिकार नहीं कि वह अपने राजनीतिक हितों के आधार पर आतंकवाद को परिभाषित करे। यहाँ अप्रत्यक्ष तौर पर पाकिस्तान और उन देशों पर निशाना था जो आतंकवाद को प्रॉक्सी वॉर का औज़ार बनाते हैं।
चीन और पाकिस्तान का संदर्भ
मोदी का बयान और राजनीतिक विवाद
लेकिन मोदी का यह कहना कि “भारत और चीन दोनों आतंकवाद के शिकार हैं” ने बहस छेड़ दी। दरअसल, भारत लंबे समय से चीन पर आतंकवाद समर्थक पाकिस्तान का बचाव करने और संयुक्त राष्ट्र में बार-बार वीटो लगाने का आरोप लगाता रहा है। ऐसे में मोदी का चीन को ‘पीड़ित देश’ बताना सवाल खड़े करता है।
कांग्रेस का पलटवार: ‘ड्रैगन के आगे झुकना’
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि मोदी का बयान उनकी 56 इंच की छाती की “हकीकत” उजागर करता है। उन्होंने इसे चीन के सामने “झुकने” की मिसाल बताया और याद दिलाया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान-चीन की जुगलबंदी का प्रधानमंत्री ने कोई ज़िक्र तक नहीं किया। कांग्रेस ने 2020 के गलवान संकट से लेकर 2025 तक की मोदी नीति को “राष्ट्रहित के साथ विश्वासघात” करार दिया।
वैश्विक राजनीति का विश्लेषण :भारत-चीन संबंधों में निहित विरोधाभास
भारत और चीन के रिश्ते हमेशा द्वंद्वात्मक रहे हैं—जहाँ एक ओर व्यापारिक निर्भरता और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग है, वहीं सीमा विवाद और पाकिस्तान को लेकर टकराव भी जारी है। मोदी का बयान संभवतः सामरिक नरमी का संकेत था ताकि भारत आतंकवाद मुद्दे पर अधिक देशों को अपने पक्ष में जोड़ सके। लेकिन घरेलू राजनीति में इसे ‘कमज़ोरी’ के रूप में भुनाया जा रहा है।
आतंकवाद विरोधी सहयोग की वास्तविकता
विश्लेषकों का मानना है कि चीन आतंकवाद को लेकर अपनी परिभाषा रखता है। उसके लिए शिनजियांग में उइगर अलगाववादी आतंकवाद का प्रतीक हैं, लेकिन पाकिस्तान-आधारित आतंकी समूहों पर वह हमेशा “रणनीतिक मौन” साधता है। यही कारण है कि भारत में यह तर्क गूंजता है कि चीन को “पीड़ित” कहना वास्तविकता से दूर है।
वैकल्पिक दृष्टिकोण और आलोचनाएँ
क्या चीन वाकई आतंकवाद का शिकार है?
चीन का दावा है कि उइगर उग्रवादियों और इस्लामी चरमपंथ ने उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती दी है। परंतु आलोचकों का कहना है कि चीन ने इस बहाने धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों पर कठोर दमन थोप दिया है। ऐसे में भारत का चीन को ‘शिकार’ कहना कई विशेषज्ञों को कूटनीतिक ‘ओवरटोन’ लगता है।
कांग्रेस की आपत्तियाँ और राजनीतिक निहितार्थ
कांग्रेस की प्रतिक्रिया को राजनीतिक चश्मे से भी देखा जाना चाहिए। विपक्ष हमेशा विदेशी नीति को घरेलू राजनीति में भुनाने की कोशिश करता है। लेकिन यह भी सच है कि मोदी का बयान चीन को क्लीन चिट देने जैसा दिख सकता है—जिससे 2020 के गलवान संकट की स्मृतियाँ फिर ताज़ा हो गईं।
नतीजा: आतंकवाद बनाम कूटनीति की जंग
एससीओ शिखर सम्मेलन ने एक बार फिर दिखाया कि आतंकवाद सिर्फ़ सुरक्षा का नहीं बल्कि वैश्विक राजनीति का भी विषय है। मोदी ने जहाँ दोहरे मानदंडों के ख़िलाफ़ स्पष्ट रुख अपनाया, वहीं चीन पर नरमी दिखाने के आरोपों ने इस मुद्दे को घरेलू राजनीति में नया मोड़ दे दिया। सवाल यह है कि क्या भारत कूटनीति और राजनीति के बीच संतुलन साध पाएगा? या फिर आतंकवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई घरेलू राजनीति के शोर में दब जाएगी?