दूसरे चरण की वोटिंग पूर्ण हुई, मत प्रतिशत में तो ओर भी कमी आई मगर अधिकतर सीटों पर मुकाबला बहुत करीबी हो गया। इस चरण के चुनाव को जिन दो बातों ने सब से अधिक प्रभावित किया, उनमे से पहला कारण यह रहा कि पहले चरण की वोटिंग ने मोदी जी का आत्म विश्वास हिला दिया मगर RSS के उस थिंग्स टैंक को ज़रूर राहत या चिन्ता में डाल दिया होगा,जिनका मानना था कि RSS के बिना मोदी कुछ भी नही कर पाएंगे।
जितना भी वोट पड़ा वो संघ की मेहनत के बिना ही पड़ा, यह बात संघ जब देख रहा होगा तो इस विचार पर मंथन ज़रूर करेगा कि यह अधिकतम वोट प्रतिशत अकेले मोदी के नाम पर आया होगा। और विचार शायद इस बात पर भी होगा कि क्या भविष्य में किसी एक वक्ति को इतना ख़ुदमुक्तार होने का मौका देना चाहिए भी या नही।
क्योंकि मोदी जी ने जैसे सभी वरिष्ठ पार्टी नेताओं को साइड लाइन करते हुए एकला चलो रे की नीति के तहत राम मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अपने खुद के फोटो के साथ हर घर झण्डा ज्योति प्रसाद अभियान चलाया और उस प्रचार के आउटकम ने जो तस्वीर सामने रखी उसे देख कर मोदी जी ने 400 पार का नारा दे दिया, और नारे के वक्त उनके आत्मविश्व को देख कर प्रतीत होता था कि कही 545 पार ना कह दें। भले दो सीट पाकिस्तान से क्यों ना लानी पड़े।
अपितु पहले ही चरण में उनका विश्वास काफ़ूर हो गया, और उनकी ज़ुबाँ पर बेबसी में उल्टे सीधे बयान आने शुरू हो गए। जिसमे से महत्पूर्ण और आत्मघाति बयान था मंगलसूत्र को खतरा बताना। और अचानक मुस्लिमों को नाम लेकर खतरे की निशानदेही करना। और फिर अलीगढ़ पहुँच कर तुरंत ही मुस्लिमों के लिए सऊदी से हज यात्रा के लिए ज़्यादा कोटा मांग कर लाने और सुविधा संपन बनाने की बात कह देना था।
जबकि कारोबार का निहायत कमज़ोर होने नौकरी ना मिलने बाजार से रूपया गायब होने के हल्की नाराज़गी के साथ जो कोर वोटर अभी तक भी बना हुआ था, उसका भी विश्वास मोदी जी की बौखलाहट के कारण धरासाई हो गया। और इस चरण का वोटर कन्फ्यूज हो कर वोट करने गया जो कहीं ना कहीं बीजेपी के हाथ से सत्ता को जाते हुए देख रहा है इसी लिए वोट अपने लोकल प्रतिनिधि के आधार पर कर गया।
यानी दूसरे चरण के बाद भी कोई राजनीतिक शास्त्री अंदाज़ा ठीक से नही लगा पा रहा है,कि नतीजे क्या होंगे। और यही से खतरा बड़ा हो जाता है।
क्योंकि आपसी दांवपेच अब बीजेपी और मोदी शाह के बीच एक नए खतरे को जन्म दे चुका है जो कि दो दिशाओं में से किसी भी और बढ़ सकता है।
खतरा क्या है और कदम क्या हो सकते हैं।
मोदी जी अपने सख्त बयानों से पीछे हटे तो और भी बेक फायर का खतरा पैदा होगा। और अगर ना पीछे हटे तो सबसे बड़ी मुश्किल यह होगी कि 272 से सीट नीचे जाने के बाद NDA के साथियों की ज़रूरत पड़ेगी जो पिछली दो सरकारों में नही पड़ी थी।
अब सबसे बड़ा सवाल यह होगा कि मोदी जी को एक बार और PM बनाने के नाम पर NDA के सहयोगी साथ नही देने की संभावना का भय मोदी जी को भाषा बदलने पर मजबूर करेगा। अब सवाल यह भी आयेगा कि क्या इस वक्त NDA के वो सहयोगी भूल जायेंगे कि उन्हे मोदी शाह के एक छत्रराज में कोई सम्मान प्राप्त नही था कोई काम लेकर जाने की हिम्मत तक नही थी।अपने क्षेत्र की जनता के सवाल रखने की भी इजाज़त नहीं थी और सत्ता सिर्फ दो लोगों तक ही सीमित हो गई थी।
शायद यह सवाल NDA के घटक दलों को मोदी जी फिर एक बार से रोक देगा। और यह बात मोदी शाह को परेशान कर सकती है। दूसरी और RSS की नाराज़गी भी एक भय का कारण बन सकती है। तो अब सवाल यह उठता है कि क्या मोदी शाह इतनी आसानी से आत्म समर्पण करके संघ को हस्तक्षेप करने की इजाज़त देंगे और दूसरे नाराज बीजेपी के बड़े नेताओ के हाथों हार मान लेंगे ?
शायद यह आसान नही होगा 10 वर्षों के कार्यकाल में मोदी जी ने मात्र एक बार मोहन भागवत को मिलने का समय दिया वरना सिर्फ सार्वजनिक सभाओं में ही आमना सामना हुआ। राम मन्दिर प्राण प्रतिष्टा के दिन भी मोहन भागवत खुद पहुंचे ताकि जनता के सामने कोई गलत संदेश ना पहुंचे। संघ की नाराज़गी हमे पहले चरण और अब दूसरे चरण में भी सकीर्यता नही होने के रूप में नज़र आई।
अर्थात मोदी जी के सामने संकट इस रूप में स्पष्ट हो सकता है कि अगर 272 से एक भी सीट कम आई तो घटक दल और नाराज बीजेपी नेता व संघ मिल कर किसी दूसरे चेहरे को ही प्रधनमंत्री की गद्दी सौंपेंगे। अमित शाह और नरेंद्र मोदी सत्ता से बाहर कर दिए जायेंगे। जिनके के लिए सत्ता से बाहर जाना मुमकिन ही नही। क्योंकि ऐसे राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय मामले हैं जिनके चलते वह खुद को असुरक्षित समझेंगे और फिर सत्ता से बाहर जाना मुश्किल होगा
अर्थात चुनाव के आखरी चरण तक इस चुनाव के बारे में कोई भी भविश्वानी सरल नही है। कई रास्ते होते हैं सत्ता में बने रहने के लिए। और फिर तीन बड़े मुद्दे भी साथ-साथ चल रहे हैं, जैसे चीन के साथ तनाव बना हुआ है, पाकिस्तान भी हरकत कर रहा है। और मुस्लिम भी खतरा बने हुए हैं। बाकी बिट विन दा लाइन भी एक भाषा है। देखना है कि अगला सप्ताह क्या इशारे देता है।
वाहिद नसीम
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विशलेषक है