
M.J. Hospital Shahpur Muzaffarnagar Shah Times
मरीज़ को बुखार दिखाकर भर्ती, असल में नसों का दर्द — डीएम ने दिए जांच आदेश
आयुष्मान कार्ड का दुरुपयोग? एम.जे. हॉस्पिटल में उठे भ्रष्टाचार के सवाल
📍मुज़फ्फरनगर 🗓️ 12 अक्टूबर 2025
✍️ शाह टाइम्स
शाहपुर के एम.जे. इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ एंड हॉस्पिटल पर आरोप है कि उसने आयुष्मान भारत योजना के तहत मरीज को गलत बीमारी दिखाकर भर्ती किया। पत्रकारों से अभद्रता और फर्जी बिलिंग की शिकायत के बाद डीएम मुज़फ्फरनगर ने जांच के आदेश दिए। मामला अब गंभीर हो चुका है और जांच टीम अस्पताल में पहुँच चुकी है।
शाहपुर का यह मामला केवल एक स्थानीय विवाद नहीं है, बल्कि यह सवाल उठाता है कि क्या सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य योजना—आयुष्मान भारत—वास्तव में जनता तक ईमानदारी से पहुँच पा रही है या फिर कुछ निजी संस्थान इसे मुनाफ़े का ज़रिया बना रहे हैं?
गांव बवाना निवासी ओमपाल सिंह की कहानी किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की झलक है जो मरीज़ की पीड़ा को डेटा एंट्री में बदल देती है। ओमपाल सिंह, जिनका कैंसर का इलाज पहले मेरठ के केएमसी हॉस्पिटल में हुआ था, इस बार सिर्फ नसों के दर्द की शिकायत लेकर शाहपुर स्थित एम.जे. हॉस्पिटल पहुँचे थे। पर वहाँ उनकी कहानी कुछ और बन गई—“बुखार के मरीज़” की।
आयुष्मान कार्ड दिखाते ही अस्पताल ने उन्हें भर्ती कर लिया, कई जांचें कराईं और रिपोर्ट में “फीवर” लिख दिया। असल में, यह छोटा-सा “डायग्नोसिस एरर” नहीं था, बल्कि एक “डायरेक्ट प्लान्ड फर्जीवाड़ा” प्रतीत होता है। क्योंकि आयुष्मान योजना के तहत जितनी अधिक भर्ती, उतना अधिक भुगतान।
जब पीड़ित परिवार ने विरोध किया, तो अस्पताल स्टाफ ने न केवल बहाने बनाए बल्कि पत्रकारों से भी बदसलूकी की। इस तरह का व्यवहार सिर्फ अमानवीय नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक जवाबदेही पर हमला है।
गुरुवार को सैकड़ों लोग जिलाधिकारी कार्यालय पहुँच गए। नारे लगे—“आयुष्मान योजना को बदनाम न करो, ग़रीब का हक़ मत मारो।” लोगों का यह आक्रोश दिखाता है कि जनता अब सिर्फ मरीज़ नहीं रही, बल्कि जागरूक नागरिक बन रही है जो अपने अधिकार मांगना जानती है।
जांच और प्रशासनिक एक्शन
डीएम उमेश मिश्रा ने तुरंत संज्ञान लिया और सीएमओ मुज़फ्फरनगर डॉ. सुनील तेवतिया को निष्पक्ष जांच का आदेश दिया। जांच टीम—जिसमें डिप्टी सीएमओ विपिन कुमार, एसीएमओ डॉ. अशोक कुमार और शाहपुर सीएचसी प्रभारी चिकित्साधिकारी शामिल हैं—ने शुक्रवार को अस्पताल पहुँचकर पूरा रिकॉर्ड खंगाला।
टीम ने मरीज की फाइल, बिलिंग रिकॉर्ड, और आयुष्मान पोर्टल पर की गई एंट्रीज़ की जांच की। पाया गया कि मरीज की असली बीमारी “नसों का दर्द” थी, मगर रिपोर्ट में “फीवर” लिखकर भर्ती दिखाई गई। यह सवाल सिर्फ अस्पताल पर नहीं, बल्कि उस पूरे ऑडिट सिस्टम पर भी उठता है जो ऐसी गलत प्रविष्टियों को पकड़ नहीं पाता।
डिप्टी सीएमओ ने कहा—“हम हर तथ्य की गहराई से जांच कर रहे हैं। रिपोर्ट आने के बाद दोषियों पर कार्रवाई तय है।”
प्रशासनिक ईमानदारी बनाम निजी लाभ की होड़
यहां सवाल सिर्फ एक अस्पताल की गलती का नहीं, बल्कि उस सोच का है जो पब्लिक हेल्थकेयर को भी “बिज़नेस मॉडल” बना देती है। आयुष्मान योजना का मूल उद्देश्य था—गरीबों को मुफ्त इलाज की सुविधा देना, मगर कुछ अस्पतालों के लिए यह “सरकारी धन कमाने का टूल” बन गया है।
अगर कोई संस्थान किसी मरीज़ की बीमारी को बदलकर फर्जी क्लेम कर सकता है, तो यह सिर्फ नैतिक नहीं बल्कि कानूनी अपराध भी है। सवाल उठता है—क्या सरकार के पास इतनी मजबूत मॉनिटरिंग सिस्टम है कि ऐसे मामलों को समय रहते पकड़ सके? या फिर जनता के भरोसे पर चलने वाली योजनाएं सिर्फ कागज़ी आंकड़ों में सिमट जाएंगी?
जनता की प्रतिक्रिया और सामाजिक दबाव
इस मामले में समाज ने चुप्पी नहीं साधी। शाहपुर में शिवसेना, अखिल भारतीय पाल महासभा, और कई सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि—बिट्टू सिखेड़ा, रमेश चंद्र पाल, सुनील पाल, रविंद्र पाल, अंकित चंदेल, एडवोकेट पुष्पेंद्र पाल—सैकड़ों ग्रामीणों के साथ डीएम कार्यालय पहुंचे। उन्होंने कहा, “अगर इस तरह के अस्पतालों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो योजना पर से जनता का भरोसा उठ जाएगा।”
इस भीड़ में सिर्फ नाराज़गी नहीं थी, बल्कि एक उम्मीद भी थी—कि शायद इस बार प्रशासन सिर्फ रिपोर्ट नहीं, नज़ीर पेश करेगा।
पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार – लोकतंत्र के लिए ख़तरे की घंटी
जब मीडिया को रोकने या डराने की कोशिश की जाती है, तो यह सिर्फ प्रेस की नहीं, जनता की आवाज़ को दबाने का प्रयास होता है। पत्रकार वहीं खड़े होते हैं जहाँ आम नागरिक की तकलीफें होती हैं। अगर अस्पताल कर्मी पत्रकारों से बदसलूकी करते हैं, तो यह इस बात का संकेत है कि अंदर कुछ छिपाने की कोशिश हो रही है।
ऐसे में प्रशासन को सिर्फ अस्पताल की जांच नहीं, बल्कि मीडिया के अधिकारों की सुरक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए।
आयुष्मान योजना की विश्वसनीयता दांव पर
आयुष्मान भारत योजना का मक़सद “जन-स्वास्थ्य में न्याय” था। लेकिन अगर ऐसे फर्जीवाड़े दोहराए गए, तो यह योजना “जन-शोषण” का प्रतीक बन जाएगी।
डॉ. सुनील तेवतिया ने कहा—“अगर अस्पताल दोषी पाया गया, तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी ताकि जनता का भरोसा बरकरार रहे।” यह बयान सही दिशा में है, मगर अब ज़रूरत है कि कार्रवाई सिर्फ “पेपर वर्क” तक सीमित न रहे।
नज़रिया
यह घटना एक आईना है जो दिखाती है कि जब पब्लिक स्कीम्स में निजी लालच घुसता है, तो सबसे पहले “विश्वास” मरता है।
अब जनता, प्रशासन और मीडिया—तीनों को एक साथ खड़ा होना होगा ताकि आने वाले समय में किसी भी ओमपाल सिंह को “फीवर” के नाम पर भर्ती न करना पड़े।
शाहपुर का यह मामला सिर्फ जांच नहीं, बल्कि जवाबदेही की परीक्षा है।