
Shashi Tharoor rejects Trump's 'Dead Economy' comment and takes a different stance from Rahul Gandhi amid US-India trade tensions | Shah Times
भारत-अमेरिका व्यापार पर शशि थरूर ने राहुल गांधी से अलग राह पकड़ी
अमेरिकी टैरिफ विवाद पर शशि थरूर की अलग राह: कांग्रेस के भीतर विचारों की टकराहट
अमेरिका के 25% टैरिफ और ‘डेड इकॉनमी’ टिप्पणी पर शशि थरूर ने राहुल गांधी से अलग स्टैंड लिया। भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों को बताया अहम।
भारतीय राजनीति में अक्सर नीतिगत मतभेद विपक्षी दलों और सरकार के बीच ही नहीं, बल्कि एक ही दल के भीतर भी दिखाई देते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था को “डेड इकॉनमी” कहने और भारतीय वस्तुओं पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने के मुद्दे ने कांग्रेस पार्टी में भी विचारों की विविधता उजागर कर दी है। जहां एक ओर विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने ट्रंप की टिप्पणी से सहमति जताई, वहीं वरिष्ठ कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इससे अलग रुख अपनाते हुए भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों के महत्व पर ज़ोर दिया।
अमेरिका-भारत व्यापारिक संबंधों की पृष्ठभूमि
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध दशकों से मज़बूत होते जा रहे हैं। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, और लगभग 90 अरब डॉलर मूल्य का माल भारत वहां निर्यात करता है। इस आर्थिक साझेदारी में किसी भी तरह का अवरोध भारत के लिए बड़ा आर्थिक झटका साबित हो सकता है। ऐसे में ट्रंप द्वारा भारत पर भारी टैरिफ लगाने की घोषणा दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव को गहरा कर सकती है।
ट्रंप की विवादास्पद टिप्पणी
डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा था कि “भारत और रूस मिलकर अपनी डेड इकॉनमी को गर्त में ले जा सकते हैं।” इसके साथ ही भारत से आने वाले उत्पादों पर 25 प्रतिशत टैरिफ की घोषणा कर दी गई। ट्रंप की यह टिप्पणी न केवल आर्थिक रूप से विवादास्पद है, बल्कि कूटनीतिक दृष्टिकोण से भी भारत के लिए असहज स्थिति पैदा करती है।
राहुल गांधी की प्रतिक्रिया
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने ट्रंप की इस टिप्पणी से सहमति जताते हुए कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को छोड़कर देश में हर कोई जानता है कि भारत एक डेड इकॉनमी बन चुका है।” उनका यह बयान सरकार पर एक तीखा हमला था, जिसमें उन्होंने आर्थिक नीति विफलताओं की ओर इशारा किया।
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थरूर का अलग नजरिया
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने राहुल गांधी के इस रुख से साफ तौर पर दूरी बनाते हुए कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था को “डेड इकॉनमी” कहना सही नहीं है। उन्होंने कहा, “मैं अपने पार्टी नेता की बात पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। ऐसा कहने के पीछे उनके अपने कारण हैं।” हालांकि थरूर ने इतना जरूर कहा कि भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों को प्रभावित नहीं होना चाहिए क्योंकि अमेरिका भारत के लिए एक महत्वपूर्ण निर्यात बाजार है।
थरूर की रणनीतिक चिंताएं
शशि थरूर ने यह भी कहा कि अमेरिका के साथ व्यापार केवल आर्थिक नहीं बल्कि रणनीतिक साझेदारी भी है। उनका कहना था कि “कुछ लोग भले ही कहें कि यह हमारे जीडीपी का केवल दो प्रतिशत है, लेकिन हमारे कुल निर्यात के लिहाज से अमेरिका हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।” उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें अन्य क्षेत्रों के साथ भी व्यापारिक संपर्क बढ़ाना चाहिए ताकि किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता से बचा जा सके।
कांग्रेस के भीतर मतभेद का संकेत?
शशि थरूर और राहुल गांधी के बयानों में स्पष्ट अंतर केवल विचारधारा का नहीं बल्कि राजनीतिक रणनीति का भी संकेत देता है। राहुल गांधी जहां सरकार पर आक्रामक रुख अपनाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं थरूर व्यावहारिक और संतुलित दृष्टिकोण से भारत के दीर्घकालिक रणनीतिक हितों की बात कर रहे हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस पार्टी के भीतर विदेश नीति और आर्थिक रणनीति को लेकर साझा दृष्टिकोण की कमी है?
डोनाल्ड ट्रंप की “सौदेबाजी रणनीति”
थरूर ने अमेरिका की ओर से लगाए गए टैरिफ को एक “सौदेबाजी की रणनीति” बताते हुए कहा कि यह कदम व्यापार समझौते के तहत बातचीत में फायदा लेने के लिए हो सकता है। उन्होंने कहा कि यदि भारत को अमेरिका से कोई उचित सौदा नहीं मिलता, तो पीछे हटने का विकल्प खुला रहना चाहिए।
साथ ही उन्होंने अमेरिका के पाकिस्तान में तेल भंडार खोजने की योजना पर भी तंज कसा। थरूर ने कहा, “अगर अमेरिका पाकिस्तान में तेल खोजने जा रहा है, तो उन्हें शुभकामनाएं। हमने अब तक पाकिस्तान में ऐसा कुछ नहीं देखा है।”
आगे की राह: भारत की रणनीति क्या हो?
ट्रंप के टैरिफ निर्णय और उनकी “डेड इकॉनमी” टिप्पणी से भारत के सामने दोहरी चुनौती खड़ी हो गई है। एक ओर घरेलू राजनीति में इस मुद्दे पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, तो दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर भारत की व्यापारिक और कूटनीतिक छवि दांव पर है।
भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए बहुपक्षीय रणनीति अपनानी होगी। जहां एक ओर अमेरिका के साथ संवाद बनाए रखना जरूरी है, वहीं अन्य वैश्विक बाजारों जैसे यूरोप, ASEAN और अफ्रीका में भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की दिशा में कार्य करना होगा। थरूर का यही दृष्टिकोण, भारत के दीर्घकालिक हितों के लिए अधिक व्यावहारिक प्रतीत होता है।
डोनाल्ड ट्रंप की तीखी टिप्पणी और टैरिफ नीति ने भारत की आर्थिक और कूटनीतिक रणनीति पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। वहीं, कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी और शशि थरूर जैसे नेताओं के मतभेद यह दर्शाते हैं कि भारत के सामने केवल बाहरी नहीं, आंतरिक स्तर पर भी स्पष्ट और एकीकृत रणनीति की ज़रूरत है।
शशि थरूर ने अपनी पार्टी के नेता की बात से अलग हटकर संतुलित और कूटनीतिक दृष्टिकोण अपनाया है, जो भारत की विदेश नीति में स्थिरता और समझदारी की मिसाल पेश करता है। यह जरूरी है कि भारत इस अवसर को आत्ममंथन और रणनीतिक पुनर्निर्माण के तौर पर ले, ताकि वह वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा में अपनी जगह मज़बूत कर सके।