
Congress leaders Rahul Gandhi and Shashi Tharoor outside the Election Commission of India building in New Delhi, amid political debate over alleged fake voting – Shah Times.
फर्जी वोटिंग का मुद्दा गरमाया, कांग्रेस बनाम चुनाव आयोग आमने-सामने
राहुल गांधी के फर्जी वोटिंग आरोपों पर सियासी संग्राम: सच, सियासत और लोकतंत्र की साख का सवाल
राहुल गांधी के फर्जी वोटिंग आरोपों ने भारतीय राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। शशि थरूर और खरगे के समर्थन से मामला और गरमाया, जबकि चुनाव आयोग ने सबूत मांगे। जानें, विवाद का सच और राजनीतिक असर।
New Delhi (Shah Times) ।भारतीय राजनीति में चुनावी पारदर्शिता और मतदाता सूची की सटीकता हमेशा से एक संवेदनशील मुद्दा रही है। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में फर्जी वोटिंग का बड़ा आरोप लगाकर इस बहस को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। राहुल गांधी ने न केवल आरोप लगाए, बल्कि कथित तौर पर कुछ सबूत भी पेश किए। हालांकि, चुनाव आयोग ने इन दावों पर ठोस साक्ष्य और शपथ पत्र की मांग की है।
इस पूरे घटनाक्रम ने लोकतंत्र की साख, चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और राजनीतिक नैरेटिव — तीनों को एक साथ कटघरे में ला खड़ा किया है।
राहुल गांधी के आरोप और सबूतों का दावा
गुरुवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने दावा किया कि कर्नाटक के एक विधानसभा क्षेत्र सहित कई राज्यों में मतदाता सूची में गंभीर गड़बड़ियां हैं।
उनके मुताबिक—
कहीं हाउस नंबर ‘0’ दर्ज है,
तो कहीं पिता का नाम फर्जी है,
और कई मतदाताओं के नाम एक से अधिक राज्यों की वोटर लिस्ट में मौजूद हैं।
उन्होंने उदाहरण के तौर पर आदित्य श्रीवास्तव और विशाल सिंह नामक मतदाताओं के विवरण पेश किए, जिनके नाम कथित तौर पर अलग-अलग राज्यों में एक से अधिक बार दर्ज थे।
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया
चुनाव आयोग ने तुरंत इस मामले को गंभीरता से लिया और राहुल गांधी को पत्र लिखकर आरोपों के समर्थन में शपथ पत्र और हस्ताक्षरित प्रमाण मांगे। आयोग का कहना है कि बिना सत्यापित दस्तावेजों के इस तरह के सार्वजनिक आरोप चुनावी व्यवस्था पर अनावश्यक संदेह पैदा करते हैं।
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शशि थरूर और खरगे का समर्थन
राहुल गांधी को इस मामले में पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर का खुला समर्थन मिला। थरूर ने कहा—
“ये गंभीर प्रश्न हैं जिनका समाधान सभी दलों और मतदाताओं के हित में जरूरी है। लोकतंत्र इतना मूल्यवान है कि इसकी विश्वसनीयता को लापरवाही या जानबूझकर की गई छेड़छाड़ से नष्ट नहीं होने दिया जा सकता।”
वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि पहले भारत का चुनाव आयोग दुनिया भर में निष्पक्षता के लिए जाना जाता था, लेकिन अब यह सत्तारूढ़ दल के प्रतिनिधि जैसा व्यवहार करता है।
उत्तर प्रदेश वाले दावे पर विवाद
राहुल गांधी के प्रेस कॉन्फ्रेंस में उत्तर प्रदेश का भी जिक्र था। उन्होंने कहा कि दो मतदाता—
आदित्य श्रीवास्तव (इपिक नंबर FPP 6437040)
विशाल सिंह (इपिक नंबर INB 2722288)
—का नाम न केवल यूपी की वोटर लिस्ट में है, बल्कि दूसरे राज्यों में भी दर्ज है।
लेकिन जिला निर्वाचन अधिकारियों और चुनाव आयोग की जांच में पाया गया कि:
आदित्य श्रीवास्तव का नाम केवल बेंगलुरु अर्बन (महादेवपुरा विधानसभा) में दर्ज है,
विशाल सिंह का नाम केवल बेंगलुरु महादेवपुरा विधानसभा की लिस्ट में मौजूद है,
उत्तर प्रदेश की लखनऊ ईस्ट और वाराणसी कैंट सीट पर इनका नाम नहीं मिला।
इस तरह, राहुल गांधी के यूपी से जुड़े आरोप सत्यापित नहीं हो सके।
राजनीतिक संदेश और रणनीति
राहुल गांधी का यह कदम केवल चुनावी गड़बड़ी का मुद्दा उठाने भर का मामला नहीं है। यह कांग्रेस के नैरेटिव बिल्डिंग की एक रणनीति भी हो सकती है—
एक: लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद भी विपक्ष खुद को जनता के लिए ‘लोकतंत्र के प्रहरी’ के रूप में पेश करना चाहता है।
दो: चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाकर सत्तारूढ़ दल पर अप्रत्यक्ष हमला किया जा सकता है।
तीन: मतदाता असंतोष को राजनीतिक लाभ में बदलने का प्रयास किया जा सकता है।
चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर असर
भारत का चुनाव आयोग दशकों से स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था के रूप में जाना जाता रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में उस पर पक्षपात, राजनीतिक दबाव और निष्क्रियता के आरोप लगते रहे हैं।
अगर राजनीतिक दल लगातार आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते रहेंगे और आयोग समय रहते पारदर्शी जांच नहीं करेगा, तो इसकी साख पर आंच आना तय है।
लोकतंत्र के लिए सबक
इस विवाद से तीन महत्वपूर्ण बातें सामने आती हैं—
डेटा की सटीकता: वोटर लिस्ट में तकनीकी त्रुटियां और डुप्लीकेट नाम होना गंभीर समस्या है, जिसे तकनीक और सख्त ऑडिट से सुधारा जा सकता है।
सार्वजनिक दावे और सबूत: किसी भी सार्वजनिक मंच पर चुनावी धांधली का आरोप लगाते समय तथ्य और प्रमाण पेश करना जरूरी है, वरना यह उल्टा राजनीतिक नुकसान भी कर सकता है।
संस्थागत पारदर्शिता: चुनाव आयोग को आरोपों पर जल्द, पारदर्शी और सार्वजनिक कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि जनविश्वास बना रहे।
निष्कर्ष
राहुल गांधी के आरोपों ने भारतीय राजनीति में एक पुराना सवाल फिर से खड़ा कर दिया है—क्या हमारा चुनावी तंत्र उतना ही निष्पक्ष और पारदर्शी है, जितना हम मानते आए हैं?
हालांकि उत्तर प्रदेश वाले दावे की जांच में तथ्य मेल नहीं खाए, लेकिन यह भी सच है कि मतदाता सूची की सटीकता और चुनावी पारदर्शिता पर निगरानी लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है।
अब नजर इस बात पर होगी कि राहुल गांधी अपने सबूत चुनाव आयोग को देते हैं या नहीं, और आयोग इस मामले की जांच कितनी तेजी और पारदर्शिता से करता है।