
Political tensions escalated over the Special Intensive Review (SIR) process following complaints from a TMC delegation.
TMC के प्रतिनिधिमंडल की शिकायतों के बाद विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक तनाव बढ़ा
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TMC ने SIR प्रक्रिया से जुड़े 40 लोगों की मौत का दावा किया।
चुनाव आयोग ने आरोप को स्वीकार नहीं किया, जवाब देने से परहेज।
प्रतिनिधिमंडल में दस सांसद शामिल, डेरेक ओब्रायन ने नेतृत्व किया।
TMC प्रक्रिया के “तरीके” पर सवाल उठा रही है, अवधारणा पर नहीं।
विवाद चुनावी निष्पक्षता और प्रशासनिक जवाबदेही की बहस को तेज करता है।
क्या हुआ और क्यों महत्वपूर्ण है
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने दिल्ली में भारत निर्वाचन आयोग की पूर्ण पीठ से मुलाकात कर पश्चिम बंगाल में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर गंभीर सवाल उठाए हैं। पार्टी का आरोप है कि प्रक्रिया के दौरान कथित अनियमितताओं और दवाब के कारण कम से कम 40 लोगों की मौत हुई है। इन दावों ने मतदाता सूची संशोधन की मानक प्रक्रिया, उसकी पारदर्शिता और उसके सामाजिक प्रभाव पर एक नई बहस को जन्म दिया है।
पश्चिम बंगाल सहित 12 राज्यों में चुनाव आयोग मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया चला रहा है। यह नियमित लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूचियों को अपडेट करना है—जैसे मृतकों के नाम हटाना, नए वोटरों को जोड़ना, और त्रुटियाँ ठीक करना।
हालाँकि, बंगाल में यह प्रक्रिया राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा बन गई है, जहाँ चुनावी माहौल पहले से ही तनावपूर्ण रहा है।
क्या बदला है
टीएमसी ने SIR पर पहली बार इतनी तीखी सार्वजनिक आपत्ति दर्ज कराई है। पार्टी के अनुसार प्रक्रिया “अनियोजित”, “दबावपूर्ण” और “निर्मम” तरीके से चलाई जा रही है। प्रतिनिधिमंडल ने 40 मौतों की सूची भी सीईसी को सौंपी, जिसे आयोग ने आरोप बताते हुए स्वीकार नहीं किया।
मुख्य पक्षकार और उनकी भूमिकाएँ
टीएमसी: SIR को लागू करने के “तरीके” पर आपत्ति, मौतों की सूची सौंपकर जवाबदेही की मांग।
भारत निर्वाचन आयोग (EC): आरोपों से इनकार, बैठक में टीएमसी को सुनने की पुष्टि, लेकिन आधिकारिक प्रतिक्रिया सीमित रखी।
स्थानीय प्रशासन: SIR के क्रियान्वयन में प्रत्यक्ष भूमिका, जिन पर राजनीतिक दल निगरानी बढ़ा रहे हैं।
अन्य राजनीतिक दल: इस मुद्दे पर अब तक औपचारिक प्रतिक्रिया सीमित, पर आगे राजनीतिक स्वर बढ़ने की संभावना।
SIR की प्रक्रिया भारत में नियमित है, लेकिन राज्यों के हिसाब से इसका प्रभाव अलग-अलग होता है।
बंगाल में चुनावी प्रक्रियाएँ अक्सर राजनीतिक विवादों से घिरी रही हैं—मतदान हिंसा, बूथ प्रबंधन, और प्रशासनिक हस्तक्षेप के आरोप वर्षों से एक पैटर्न हैं।
विपक्षी दल (कभी TMC, कभी भाजपा) चुनावी प्रक्रियाओं में निष्पक्षता पर बार-बार सवाल उठाते रहे हैं।
राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव
राजनीतिक: आरोपों ने TMC vs EC टकराव को और तेज किया है। आगामी चुनावी सत्र में यह मुद्दा राजनीतिक विमर्श में प्रमुख रूप से उभरेगा।
सामाजिक: SIR के दौरान कथित दबाव के दावों ने ग्रामीण और कमजोर वर्गों की सुरक्षा व जागरूकता पर चिंता बढ़ाई है।
प्रशासनिक: स्थानीय अधिकारियों पर काम का अतिरिक्त बोझ और शिकायतों की बढ़ती संख्या प्रक्रियात्मक पारदर्शिता पर सवाल ला सकती है।
SIR स्वयं में विवादास्पद प्रक्रिया नहीं है, लेकिन इसका क्रियान्वयन संवेदनशील होता है। बंगाल जैसे राजनीतिक रूप से सक्रिय राज्य में किसी भी बड़े प्रशासनिक अभियान के लिए पारदर्शिता, संवाद और सुरक्षा की ठोस व्यवस्था अत्यंत आवश्यक होती है।
टीएमसी का “खून सने हाथ” वाला बयान राजनीतिक रूप से तीखा आरोप है, जो यह दर्शाता है कि पार्टी आगामी चुनावों से पहले EC पर दबाव बढ़ाकर अपना राजनीतिक नैरेटिव तैयार कर रही है।
वहीं आयोग की ओर से सीमित प्रतिक्रिया यह बताती है कि वह इन आरोपों को तथ्यात्मक आधार पर नहीं मानता—लेकिन पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अधिक सार्वजनिक स्पष्टीकरण अपेक्षित है।
पिछले वर्षों के SIR: देश के कई राज्यों में यह प्रक्रिया बिना विवाद के पूरी होती रही है।
बंगाल में चुनावी विवादों का इतिहास: 2018 पंचायत चुनाव से लेकर 2021 विधानसभा चुनाव तक—राज्य में प्रशासनिक तटस्थता पर लगातार बहस चलती रही है।
अन्य राज्यों में प्रतिक्रिया: अब तक अन्य राज्यों से SIR से जुड़ी ऐसी गंभीर घटनाओं की रिपोर्टिंग नहीं हुई है, जो बंगाल को एक अपवादिक केस बनाती है।
दोनों पक्षों की दलीलें
टीएमसी के तर्क
SIR का क्रियान्वयन अनियोजित और असुरक्षित।
गलत तरीके से नाम हटाने व दबाव के आरोप।
40 मौतों की सूची देकर जवाबदेही की मांग।
चुनाव आयोग का दृष्टिकोण
SIR एक नियमित प्रक्रिया है।
टीएमसी द्वारा दी गई सूची को “आरोप” बताया, तथ्यात्मक पुष्टि नहीं।
बैठक में प्रतिनिधियों की बात सुनी गई लेकिन आरोपों का सीधा जवाब नहीं दिया गया।
आगे क्या?
SIR प्रक्रिया अभी जारी है, और TMC-EC टकराव चुनावी मौसम में और तीखा हो सकता है। आयोग को पारदर्शिता और संवाद बढ़ाने की आवश्यकता होगी ताकि मतदाताओं का भरोसा कायम रहे। वहीं टीएमसी के दावों की स्वतंत्र जांच या फैक्ट-चेक भविष्य के राजनीतिक विमर्श को आकार दे सकता है।




