
Akhilesh Yadav meeting Azam Khan at Johar University Ramapur in a political reunion moment
सियासत, एहतराम और सुलह: अखिलेश–आज़म मुलाक़ात में क्या छिपा है बड़ा इशारा?
जब अखिलेश पहुंचे आज़म के दर पर: सपा में भरोसे की वापसी या सियासत का नया मोड़?
अखिलेश यादव ने आज़म खान को सपा का ‘दरख़्त’ बताते हुए एकता और सम्मान का संदेश दिया। क्या इससे पुराने समाजवादियों की नाराज़गी खत्म होगी और पार्टी को नई दिशा मिलेगी
📍रामपुर
🗓️ 8 अक्टूबर 2025
✍️ आसिफ खान
रामपुर की जौहर यूनिवर्सिटी में समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव और वरिष्ठ नेता आज़म खान की ऐतिहासिक मुलाक़ात ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को नया मोड़ दे दिया है।
लगभग दो साल जेल में रहने के बाद आज़म की यह पहली बड़ी राजनीतिक मौजूदगी थी। अखिलेश यादव ने इसे “मिलकर बड़ी लड़ाई लड़ने” का संदेश बताया। यह मुलाक़ात सपा के भीतर विश्वास, पुनर्मिलन और 2027 की सियासी रणनीति का संकेत है।
रामपुर की दोपहर धूप में जब अखिलेश यादव का हेलिकॉप्टर जौहर यूनिवर्सिटी के हेलीपैड पर उतरा, तो हवा में हलचल थी। सामने इंतज़ार कर रहे थे सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान — वही आज़म, जिन्होंने पार्टी को अपने खून-पसीने से सींचा और सियासी तूफ़ानों में भी पार्टी का झंडा ऊँचा रखा।
दोनों नेताओं की मुलाक़ात सिर्फ़ औपचारिकता नहीं थी, यह उन रिश्तों का पुनर्जन्म था जो पिछले कुछ वर्षों में ठंडे पड़ गए थे। जब अखिलेश यादव ने आगे बढ़कर आज़म खान को गले लगाया, तो वह आलिंगन रामपुर से लेकर लखनऊ और दिल्ली तक चर्चा का विषय बन गया।
मुलाक़ात का राजनीतिक मतलब
समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बुधवार को पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़म खान से मुलाक़ात की। यह आज़म की जेल से रिहाई के बाद पहली भेंट थी, जिसे लेकर सियासी गलियारों में लंबे समय से अटकलें थीं।
मुलाक़ात के बाद अखिलेश यादव ने मीडिया से बात की और भाजपा पर तीखा वार करते हुए कहा —
“आदरणीय आज़म खान हमारी पार्टी का दरख़्त हैं। बड़ी लड़ाई है, सब मिलकर लड़ेंगे।”
उन्होंने कहा कि “मैं पहले नहीं पहुँच पाया था, आज मिलने आया हूँ। इधर उनका स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा नहीं रहा। बहुत अच्छी बातचीत हुई, उनका हालचाल जाना।”
यह बयान स्पष्ट करता है कि अखिलेश यादव सिर्फ़ नाराज़गी दूर करने नहीं आए थे, बल्कि पार्टी के पुराने स्तंभों को फिर से एकजुट करने का मिशन लेकर रामपुर पहुँचे थे।



‘आज़म खान हमारी पार्टी का दरख़्त हैं’ — अखिलेश का संदेश
अखिलेश यादव के इस एक वाक्य में बहुत कुछ छिपा है — “आज़म खान हमारी पार्टी का दरख़्त हैं।”
दरख़्त यानी वो जड़, जो तूफ़ानों में भी टिकती है।
सपा की राजनीति में आज़म खान का यही रोल रहा है। उनकी पकड़ मुस्लिम मतदाता वर्ग में आज भी बेहद मजबूत है।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह मुलाक़ात सिर्फ़ इमोशनल नहीं बल्कि स्ट्रैटेजिक भी है। अखिलेश जानते हैं कि 2027 की राह बिना मुस्लिम नेतृत्व के भरोसे के आसान नहीं। इसलिए आज़म से मुलाक़ात एक तरह का “रिश्तों का नवीनीकरण” है।
बीजेपी पर वार, ‘झूठे केसों का रिकॉर्ड’
मुलाक़ात के बाद अखिलेश यादव ने भाजपा सरकार पर सीधा निशाना साधा।
उन्होंने कहा,
“शायद बीजेपी कोई गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाना चाहती है। आज़म साहब पर सबसे ज़्यादा झूठे केस लगाए गए, उनके परिवार तक को नहीं छोड़ा गया।”
अखिलेश ने तंज करते हुए कहा —
“हो सकता है कि इनका नाम गिनीज़ बुक में भी आ जाए कि किसी एक व्यक्ति पर इतने झूठे मुकदमे दर्ज हुए।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि समाजवादी पार्टी की सरकार आने पर सभी झूठे मुकदमे वापस लिए जाएंगे।
यह बयान न केवल आज़म खान के समर्थन का संदेश था, बल्कि भाजपा पर सीधा राजनीतिक हमला भी।
2027 की रणनीति और PDA की पुकार
अखिलेश यादव ने बातचीत के दौरान यह भी कहा कि
“2027 में हमारी सरकार बनने जा रही है और PDA (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) की आवाज़ बुलंद होगी।”
यह वक्तव्य दर्शाता है कि मुलाक़ात का मक़सद सिर्फ़ आज़म खान से सद्भाव नहीं था, बल्कि व्यापक चुनावी तैयारी भी थी।
सपा अब एक बार फिर अपने मूल सामाजिक समीकरण — दलित, पिछड़ा और मुस्लिम (DPM) को मजबूत करने की दिशा में बढ़ रही है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह PDA मॉडल “मंडल बनाम कमंडल” की पुरानी जंग को फिर से सक्रिय कर सकता है।
सम्मान और नाराज़गी का संतुलन
आज़म खान ने अपनी रिहाई के बाद कहा था कि “मैं केवल अखिलेश से मिलूंगा, किसी और से नहीं।”
यह बयान खुद एक राजनीतिक संकेत था — नाराज़गी भी है, मगर भरोसा भी बरकरार है।
अखिलेश यादव के रामपुर पहुँचने से पहले यह आशंका थी कि क्या आज़म मिलेंगे या नहीं, लेकिन जब दोनों आमने-सामने आए तो तस्वीर ने सारे जवाब दे दिए।
मुस्कान, आलिंगन और साझा सफ़र — तीनों ने सियासी संदेश साफ़ कर दिया कि रिश्ते भले ठंडे पड़े हों, पर जड़ें अब भी ज़िंदा हैं।
बीजेपी के लिए बढ़ी मुश्किलें
रामपुर जैसे मुस्लिम बहुल इलाक़ों में सपा की एकता भाजपा के लिए सिरदर्द बन सकती है।
आज़म खान का स्थानीय प्रभाव अब भी क़ायम है। अगर अखिलेश यादव उनके साथ खड़े रहते हैं, तो यह संदेश पूरे प्रदेश के मुस्लिम वोट बैंक में जाएगा।
राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि भाजपा को रामपुर, मुरादाबाद और बरेली बेल्ट में इस गठजोड़ से चुनौती मिल सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की घटना का हवाला
अखिलेश यादव ने अपने बयान में कहा —
“कोई कल्पना कर सकता है कि सुप्रीम कोर्ट में जज के ऊपर भी जूता फेंका गया हो… यह बताता है कि समाज में अपमान की भावना किस स्तर पर पहुंच चुकी है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा की सरकार में “दलित, वंचित और अल्पसंख्यक लगातार अपमानित हो रहे हैं।”
इस तरह, अखिलेश ने रामपुर की मुलाक़ात को केवल पार्टी की नहीं बल्कि संवैधानिक सम्मान की लड़ाई से जोड़ दिया।
रिश्तों की दरमियानी दूरी और सियासी इकरार
राजनीति में दरारें शब्दों से नहीं, चुप्पी से बढ़ती हैं।
आज़म खान की नाराज़गी सत्ता से नहीं, बल्कि पार्टी के व्यवहार से थी।
जब वह जेल में थे, तो उन्हें अकेलापन महसूस हुआ।
आज की मुलाक़ात उस दूरी को भरने का पहला कदम है।
लोगों के दिलों में भी यही सवाल था — “क्या अब सब ठीक हो गया?”
रामपुर के पुराने कार्यकर्ताओं ने कहा, “अगर आज़म साहब और अखिलेश साथ हैं तो सपा को फिर जान मिलेगी।”
राजनीतिक पुनर्जागरण की आहट
अखिलेश यादव का यह दौरा प्रतीक है एक राजनीतिक पुनर्जागरण का।
यह दर्शाता है कि सपा अब केवल विरोध की नहीं, संगठन की राजनीति में लौट रही है।
दोनों नेताओं का साथ आना कार्यकर्ताओं के लिए मनोबल बढ़ाने वाला है।
अगर यह साझेदारी टिकाऊ रही, तो सपा एक बार फिर यूपी में मजबूत विपक्ष और वैकल्पिक सत्ता के रूप में उभर सकती है।
नज़रिया
रामपुर की यह मुलाक़ात केवल एक तस्वीर नहीं, बल्कि भविष्य की राजनीति की पटकथा है।
अखिलेश यादव और आज़म खान दोनों समझते हैं कि सपा की जड़ों में वही ताक़त है जो कभी मुलायम सिंह यादव के समय में थी।
अगर दोनों एक साथ आगे बढ़ते हैं, तो यह “सियासत का इम्तिहान” नहीं, बल्कि “रिश्तों की जीत” होगी।





