
टाटा मोटर्स से ग्रो तक — आज के स्टॉक्स में कैसा है मार्केट मूड
📍नई दिल्ली
🗓️ 12 नवम्बर 2025
✍️ असिफ़ ख़ान
भारतीय शेयर बाज़ार में आज सकारात्मक संकेत दिखे हैं। टाटा मोटर्स, ग्रो, रिलायंस पावर और बायोकॉन जैसे स्टॉक्स में हलचल रही। सेंसेक्स और निफ्टी दोनों में तेजी से निवेशकों का भरोसा लौटा है।
शेयर बाज़ार का मिज़ाज हर सुबह एक नई कहानी कहता है। कभी डर, कभी उम्मीद और कभी हैरत — यही तीन रंग हर कारोबारी दिन के चार्ट पर उतरते हैं। आज का दिन इन्हीं तीनों का मिश्रण रहा।
बाज़ार की शुरुआत – भरोसे की बहाली
11 नवम्बर के सत्र में जब सेंसेक्स 83,871 और निफ्टी 25,695 पर बंद हुआ, तो लगा कि बाजार ने आखिर गिरावट से बाहर निकलने का रास्ता पकड़ लिया है। आज सुबह गिफ्ट निफ्टी ने एशियाई बाज़ारों के रुझान से मजबूत संकेत दिए — और यही शुरुआती विश्वास निवेशकों के मूड में झलकता दिखा।
निफ्टी की दिशा अब केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक सीमा बन चुकी है। 25,700 के ऊपर टिकना खुद में एक संकेत है कि रिटेल इन्वेस्टर्स का भरोसा बरकरार है।
टाटा मोटर्स का धमाकेदार डेब्यू
टाटा मोटर्स के कमर्शियल व्हीकल (CV) बिज़नेस की लिस्टिंग 28% प्रीमियम पर हुई — यह महज़ एक कंपनी की कामयाबी नहीं, बल्कि भारतीय ऑटो सेक्टर की मजबूत नींव की झलक है। डिमर्जर के बाद दो नई संस्थाएं TMPV और TMLCV के रूप में सामने आईं।
बाज़ार की भाषा में, यह “value unlocking” का क्लासिक केस है। जब किसी कंपनी का हर बिज़नेस यूनिट स्वतंत्र रूप से बढ़ने लगता है, तो निवेशकों को clarity मिलती है और बाजार valuation को पुरस्कृत करता है। यही वजह है कि टाटा मोटर्स CV के शेयर NSE पर 335 रुपये पर खुले और निवेशकों के चेहरे खिल उठे।
Groww की एंट्री और नए निवेशकों की उम्मीदें
Groww के शेयर की लिस्टिंग 14% प्रीमियम पर हुई। यह इस बात का इशारा है कि भारत का युवा निवेशक वर्ग अब बाजार को केवल “कमाई का ज़रिया” नहीं, बल्कि “ownership का जरिया” मानने लगा है।
ग्रो जैसी फिनटेक कंपनियां आज स्टॉक मार्केट को democratize कर रही हैं — हर मोबाइल स्क्रीन अब एक छोटा ट्रेडिंग फ्लोर है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये तेजी टिकेगी?
रिलायंस पावर और नई एनर्जी की रेस
रिलायंस पावर की सब्सिडियरी NU Energies को 1,500 MW रिन्यूएबल एनर्जी टेंडर मिला है। यह जीत सिर्फ कॉर्पोरेट खबर नहीं — यह भारत के एनर्जी ट्रांज़िशन का संकेत है।
अब निवेशकों का ध्यान सिर्फ मुनाफे पर नहीं, बल्कि sustainable growth पर भी है।
पर विश्लेषण यहीं नहीं रुकता। मार्केट एक्सपर्ट मानते हैं कि एनर्जी सेक्टर में competition बढ़ेगा। टेंडर जीतने के बाद execution और debt management सबसे बड़ी चुनौती होगी।
बायोकॉन की वापसी
बायोकॉन ने पिछले साल के नुकसान से उभरकर इस बार 84.5 करोड़ का मुनाफा कमाया है। फार्मा सेक्टर के लिए यह राहत की खबर है।
लेकिन साथ ही यह याद रखना जरूरी है कि फार्मा इंडस्ट्री की volatility हमेशा बनी रहती है — एक regulatory approval या clinical delay पूरा परिदृश्य बदल सकता है।
बजाज फिनसर्व और वित्तीय सेक्टर की स्थिरता
2,244 करोड़ रुपये के प्रॉफिट के साथ बजाज फिनसर्व ने संकेत दिया कि वित्तीय सेक्टर फिलहाल मजबूत है। ब्याज दरों में स्थिरता से बैंकिंग और एनबीएफसी दोनों को राहत मिली है।
फिर भी, क्रेडिट ग्रोथ और डिफॉल्ट रेट्स को लेकर सतर्क रहना होगा। जब लोन आसान होते हैं, तब डिफॉल्ट भी धीरे-धीरे बढ़ने लगते हैं — यह एक आर्थिक सच है जिसे निवेशकों को समझना चाहिए।
गॉदरेज इंडस्ट्रीज़ और मार्जिन की चुनौती
गॉदरेज इंडस्ट्रीज़ का मुनाफा 16% घटा है। यह बताता है कि लागत दबाव अब भी इंडस्ट्रियल सेक्टर पर हावी है। कच्चे माल की कीमतें और ग्लोबल सप्लाई चेन की अस्थिरता से कंपनियों के मार्जिन पर असर पड़ रहा है।
निवेशकों की मनोवृत्ति – डर और लालच का खेल
हर तेजी अपने साथ डर भी लाती है। जो कल तक बेचने की सोच रहे थे, वे आज खरीदारी की कतार में हैं। यही मार्केट की खूबसूरती है — डर और लालच का संतुलन ही इसे जीवंत रखता है।
पर सच यह भी है कि इंट्राडे के शोर में लॉन्ग-टर्म निवेश की समझ खो जाती है। मुनाफे के पीछे भागने से ज़्यादा जरूरी है कंपनियों की फंडामेंटल कहानी को समझना।
एडिटोरियल व्यू – संतुलन ही असली बुद्धिमानी
जो मार्केट आज उछल रहा है, वह कल गिर भी सकता है। लेकिन समझदार निवेशक वही है जो दोनों स्थितियों में संयम रखे।
विचार यह नहीं होना चाहिए कि “आज कौन-सा स्टॉक चढ़ेगा”, बल्कि यह कि “कौन-सी कंपनी अगले पाँच साल में टिकेगी”। यही निवेश को सट्टेबाज़ी से अलग करता है।
उर्दू में कहें तो —
“बाज़ार की हवा हर रोज़ बदलती है, मगर अक़्लमंद वो है जो अपने इरादे नहीं बदलता।”







