
Controversy after Friday prayers in Bareilly, tension over “I Love Mohammed” poster controversy
बरेली में पुलिस-प्रदर्शनकारियों की झड़प, हालात तनावपूर्ण
आई लव मोहम्मद पोस्टर विवाद से बरेली की सियासत गरमाई
📍बरेली|26 सितम्बर 2025|आसिफ़ ख़ान
Bareilly ,(Shah Times1) । बरेली में जुमे की नमाज़ के बाद ‘आई लव मोहम्मद’ पोस्टर विवाद को लेकर विरोध प्रदर्शन भड़क गया। भीड़ ने पुलिस बैरिकेड तोड़ने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। मौलाना तौकीर रज़ा के ऐलान के चलते प्रशासन पहले से अलर्ट पर था और शहर छावनी में तब्दील कर दिया गया था।
घटनाक्रम की झलक
शुक्रवार की नमाज़ के बाद बरेली की फिज़ा अचानक बदल गई। नमाज़ अदा करने के बाद सैकड़ों लोग ‘आई लव मोहम्मद’ पोस्टर विवाद पर सड़कों पर उतर आए। हाथों में बैनर, नारों की गूंज और भीड़ का तेवर देखकर अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि मामला केवल एक पोस्टर तक सीमित नहीं रहने वाला।
शहर के श्यामगंज और नौमहला मस्जिद इलाक़े में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच सीधी टकराव की नौबत आ गई। जैसे ही बैरिकेड टूटे, पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। कुछ ही मिनटों में जो भीड़ नारे लगा रही थी, वही भागती-दौड़ती दिखाई दी। दुकानदारों ने जल्दी-जल्दी शटर गिरा दिए। सड़कें खाली हो गईं लेकिन माहौल में तनाव की गंध फैली रही।
धार्मिक जज़्बात और सियासी रंग
मौलाना तौकीर रज़ा ख़ान का नाम बरेली की सियासत और समाज दोनों से गहराई से जुड़ा है। उनका ऐलान ही काफी होता है कि लोग मस्जिदों से निकलकर सड़क पर आ जाएं। इस बार भी यही हुआ।
‘आई लव मोहम्मद’ पोस्टर विवाद धार्मिक जज़्बात से जुड़ा था। ऐसे मौक़ों पर भीड़ का जुनून क़ाबू से बाहर हो जाता है।
एक बुज़ुर्ग प्रदर्शनकारी से बातचीत में उसने कहा –
“हमारे दिल को चोट पहुँची है, इसलिए हम सड़कों पर आए हैं। अगर आवाज़ नहीं उठाएँगे तो और कौन सुनेगा।”
लेकिन प्रशासन के लिए यह आसान नहीं था। नवरात्रि, दुर्गा पूजा और उर्स जैसे मौक़ों पर पुलिस हर हाल में शांति बनाए रखना चाहती थी। यही वजह थी कि पूरे शहर को छावनी में बदल दिया गया।
पुलिस की चुनौती
सुबह से ही इस्लामिया मैदान और बिहारीपुर इलाक़े पुलिस बल से घिरे थे। सैकड़ों सिपाही, पीएसी और अफ़सर चौराहों पर तैनात थे। मगर सवाल यही है कि क्या पुलिस की रणनीति कामयाब रही?
एक स्थानीय दुकानदार का कहना था –
“हम तो सुबह से देख रहे थे, पूरा इलाका पुलिस से भरा हुआ था। पर जब भीड़ निकली तो हालात फिर भी बिगड़ गए।”
यह बताता है कि भीड़ को रोकना केवल फोर्स लगाने से संभव नहीं होता। संवाद और भरोसा ज़्यादा ज़रूरी है।
सोशल मीडिया और अफ़वाहों की आग
इस पूरे मामले में सोशल मीडिया की भूमिका अहम रही। मौलाना तौकीर रज़ा के नाम से एक लेटर वायरल हुआ जिसमें कहा गया कि कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है। लेकिन कुछ ही घंटों बाद मौलाना ने बयान दिया कि लेटर फ़र्ज़ी है और यह “साज़िश” है।
यहाँ पर एक अहम बात सामने आती है –
Fake News और Social Media की Speed, दोनों मिलकर हालात को पल भर में बदल सकते हैं।
लोग बिना जाँचे-परखे संदेशों पर भरोसा कर लेते हैं। यही ग़लतफ़हमियाँ सड़कों पर टकराव बन जाती हैं।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
बरेली का इतिहास गवाह है कि यहाँ धर्म और सियासत हमेशा आपस में जुड़कर चलते रहे हैं। 19वीं सदी के आंदोलनों से लेकर आज तक, धार्मिक मुद्दे अक्सर भीड़ की शक्ल में सामने आते रहे हैं।
मौलाना अहमद रज़ा ख़ान का नाम अभी भी बरेली की पहचान है। आज मौलाना तौकीर रज़ा उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हैं। यह दिखाता है कि बरेली में धार्मिक नेतृत्व की आवाज़ का असर केवल मस्जिद तक नहीं, बल्कि गली-गली तक पहुँचता है।
सियासत की आहट
सवाल उठता है कि क्या यह विरोध केवल धार्मिक था या इसके पीछे सियासत की भी भूमिका थी?
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि तौकीर रज़ा अपने समर्थकों को एकजुट दिखाना चाहते थे।
दूसरी ओर, विपक्षी दल इस घटना को सरकार की नाकामी बता रहे हैं।
एक कॉलेज छात्र ने कहा –
“हम देख रहे हैं कि हर मुद्दे को राजनीति से जोड़ा जाता है। असल मसला भले ही छोटा हो, पर नेताओं के लिए यह भीड़ जुटाने का ज़रिया बन जाता है।”
आम जनता पर असर
आम आदमी सबसे ज़्यादा परेशान हुआ। जिनके छोटे-छोटे कारोबार हैं, उनकी रोज़ी पर असर पड़ा।
एक सब्ज़ी विक्रेता ने कहा –
“हम तो सुबह से ही डर में थे। दंगा-फसाद में हमारी गाड़ी कौन खरीदेगा? पुलिस आई, लाठी चली, सब भाग गए।”
यह बताता है कि जब भीड़ सड़कों पर उतरती है, सबसे पहले मार आम जनता को झेलनी पड़ती है।
आगे की राह
अब सवाल यह है कि ऐसे हालात दोबारा न हों तो क्या करना चाहिए?
प्रशासन को सिर्फ़ फोर्स लगाने के बजाय धार्मिक नेताओं से संवाद बढ़ाना होगा।
Fake News और अफ़वाहों पर तुरंत कार्रवाई करनी होगी।
समाज को समझना होगा कि अमन-ओ-अमान सबसे बड़ा फ़र्ज़ है।
क़ुरान की तालीम हो या संविधान का संदेश — दोनों यही कहते हैं कि इंसाफ़ और शांति सबसे अहम हैं। अगर लोग इसे समझें तो बरेली ही नहीं, पूरा मुल्क चैन से रह सकता है।
नतीजा
बरेली की इस घटना ने हमें एक बार फिर याद दिलाया कि धर्म, सियासत और सोशल मीडिया का तिहरा मेल कितना विस्फोटक हो सकता है। पुलिस की सख़्ती से हालात क़ाबू में आ गए, लेकिन यह स्थायी हल नहीं है। ज़रूरी है कि समाज, नेतृत्व और प्रशासन सब मिलकर भरोसे का पुल बनाएँ।