
Supreme Court halts Bombay HC acquittal in 2006 Mumbai train blast case
सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई ट्रेन धमाका मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 ट्रेन धमाका केस में हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 मुंबई ट्रेन धमाके केस में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई, लेकिन आरोपियों की रिहाई पर फिलहाल कोई बदलाव नहीं किया।
New Delhi (Shah Times )।2006 के मुंबई लोकल ट्रेन धमाकों ने न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। 11 जुलाई 2006 को सात अलग-अलग बम धमाकों में 187 लोगों की मौत और 800 से अधिक घायल हुए थे। इस केस में कई वर्षों की जांच और मुकदमे के बाद जिन 12 आरोपियों को दोषी करार दिया गया था, उन्हें हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी है, जिससे मामला एक बार फिर कानूनी बहस के केंद्र में आ गया है।
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला: हाईकोर्ट के निर्णय पर अस्थायी विराम
24 जुलाई 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा 12 आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले पर अस्थायी रोक लगा दी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक अंतिम निर्णय नहीं आ जाता, तब तक रिहा किए गए आरोपियों को दोबारा जेल नहीं भेजा जाएगा।
अदालत की मुख्य टिप्पणियां:
“हाईकोर्ट के फैसले को मिसाल नहीं माना जाएगा” — इससे तात्पर्य है कि अन्य आतंकवाद या बम धमाका मामलों में आरोपी इस फैसले का हवाला देकर जमानत की मांग नहीं कर सकेंगे।
अदालत ने आरोपियों को और महाराष्ट्र सरकार दोनों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।
जस्टिस एमएम सुंदरेश और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ इस मामले की अगली सुनवाई करेगी।
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हाईकोर्ट का फैसला: अभियोजन की विफलता या न्याय की जीत?
2023 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह कहते हुए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष “आरोप सिद्ध करने में पूरी तरह विफल रहा”। न्यायालय ने कहा कि यह विश्वास करना कठिन है कि इन व्यक्तियों ने यह अपराध किया।
हाईकोर्ट का निर्णय क्यों था विवादास्पद?
निचली अदालत ने पहले ही इन 12 में से 11 को दोषी ठहराया था।
5 को मौत की सजा, जबकि 7 को आजीवन कारावास दी गई थी।
अभियोजन का दावा था कि ये सभी सिमी (SIMI) से जुड़े थे और पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के सहयोग से धमाकों की साजिश रची थी।
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एटीएस की भूमिका और आरोप
महाराष्ट्र एटीएस का आरोप:
सभी आरोपी प्रतिबंधित संगठन सिमी के सक्रिय सदस्य थे।
आरोपियों ने पाकिस्तान के आतंकियों के साथ मिलकर धमाके की साजिश रची।
धमाकों में आईईडी (Improvised Explosive Device) का प्रयोग किया गया जो ट्रेन की भीड़ में फटे।
अभियोजन की कमज़ोरियाँ:
कई गवाह मुकर गए।
फॉरेंसिक रिपोर्ट में विरोधाभास पाए गए।
पुलिस की जांच में प्रक्रियात्मक खामियाँ सामने आईं।
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राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
महाराष्ट्र सरकार:
हाईकोर्ट के फैसले के तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई।
सरकार का तर्क था कि इतने गंभीर आतंकी हमले में दोषियों को बरी करना जनता के विश्वास पर आघात है।
मानवाधिकार संगठनों की राय:
कुछ संगठनों ने फैसले को न्याय की जीत बताया।
उनका कहना है कि शक के आधार पर किसी को सजा देना लोकतंत्र के खिलाफ है।
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आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई:
चार सप्ताह के भीतर आरोपियों और महाराष्ट्र सरकार को अपना पक्ष रखना होगा।
यह तय होगा कि हाईकोर्ट के फैसले को पलटा जाए या बरकरार रखा जाए।
संभावित विकल्प:
1. सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर सकती है और दोषियों को फिर से जेल भेज सकती है।
2. मामला दोबारा सुनवाई के लिए ट्रायल कोर्ट को भेजा जा सकता है।
3. सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के निर्णय को अंतिम रूप दे सकती है, जिससे आरोपी हमेशा के लिए बरी हो जाएंगे।
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नतीजा: कानून, न्याय और राष्ट्रीय सुरक्षा की जटिल त्रिकोण
मुंबई लोकल ट्रेन धमाकों की भयावहता आज भी लोगों के मन में ताजा है। हाईकोर्ट के फैसले ने न्याय व्यवस्था में सबूतों के महत्व को रेखांकित किया, वहीं सुप्रीम कोर्ट का रुख यह दर्शाता है कि ऐसे मामलों में हर पहलू को बारीकी से परखा जाना चाहिए। न्यायपालिका की भूमिका निष्पक्ष और संतुलित होनी चाहिए, लेकिन साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा और पीड़ितों के न्याय का भी ध्यान रखा जाना जरूरी है।
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प्रमुख बिंदु
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
आरोपियों की रिहाई बरकरार, लेकिन फैसला मिसाल नहीं बनेगा।
मामले में न्यायिक प्रक्रिया अब सर्वोच्च अदालत के समक्ष।
हाईकोर्ट का निर्णय अभियोजन पक्ष की जांच पर गंभीर सवाल।
महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी।