
हर बात पर FIR समाधान नहीं’ : सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर दी नसीहत
सोशल मीडिया पर बढ़ती दुश्मनी पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, जिम्मेदारी का आह्वान
सोशल मीडिया पर बढ़ती नफरत और विभाजनकारी प्रवृत्तियों पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता। अभिव्यक्ति की आजादी के साथ स्व-नियंत्रण और जिम्मेदारी की जरूरत पर दिया ज़ोर। पढ़ें Shah Times Editorial Analysis।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को सोशल मीडिया पर फैलती नफरत और समाज में विभाजनकारी प्रवृत्तियों पर गहरी चिंता जताई है।
आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया सिर्फ एक संवाद का मंच नहीं बल्कि जनमत निर्माण, विचार-प्रसार और सामाजिक चेतना का सशक्त माध्यम बन गया है। हालांकि, इसी के साथ हेट स्पीच, धार्मिक वैमनस्य और विभाजनकारी कंटेंट का प्रसार भी एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। इसी संदर्भ में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार, 14 जुलाई 2025 को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की जो सोशल मीडिया के उपयोग और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of speech) को लेकर एक नई बहस की शुरुआत कर सकती है।
🔹 Supreme Court की टिप्पणी का मूल भाव
“अभिव्यक्ति की आज़ादी लोकतंत्र की रीढ़ है, लेकिन यह स्व-नियंत्रण और सामाजिक जिम्मेदारी से जुड़ी होनी चाहिए।” यह बात सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका की सुनवाई के दौरान कही जिसमें वजाहत खान नामक शख्स ने सोशल मीडिया पर धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोपों को लेकर खुद के खिलाफ दर्ज FIRs को रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि:
राज्य (State) को हर बार हस्तक्षेप करने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए।
नागरिकों को खुद जिम्मेदार बनना होगा और संयमित भाषा का उपयोग करना होगा।
सोशल मीडिया पर फैल रही नफरत की राजनीति और विभाजनकारी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण ज़रूरी है।
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🔷 Case Background | मामला क्या है?
याचिकाकर्ता वजाहत खान पर आरोप है कि उन्होंने एक हिंदू देवी के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट किए, जिससे देश के विभिन्न राज्यों में FIR दर्ज हुईं।
उन्होंने बताया कि पहले उन्होंने खुद एक सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनौली के खिलाफ शिकायत की थी, जिसके जवाब में उनके खिलाफ ही केस दर्ज हो गए।
फिलहाल वे दो FIRs में पुलिस व न्यायिक हिरासत में हैं, और सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत प्राप्त है।
🔹 न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाँ (Key Observations)
✅ “पोस्ट डिलीट करने से अब फर्क नहीं पड़ता”
Justice BV Nagarathna ने कहा,
“इंटरनेट पर डाली गई सामग्री स्थायी हो जाती है। इसलिए सोच-समझकर पोस्ट करना ज़रूरी है।”
✅ “हेट स्पीच पर नियंत्रण आवश्यक”
“यह ज़रूरी है कि हेट स्पीच को नियंत्रित किया जाए लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचला न जाए।”
✅ “FIRs का अतिरेक समाधान नहीं”
“हर नई पोस्ट पर नई FIR और जेल में डालना न तो समाधान है, न ही यह न्यायसंगत है।”
🔷 समाज के लिए संदेश | Supreme Court’s Broader Message to Citizens
न्यायपालिका का उद्देश्य सेंसरशिप (Censorship) थोपना नहीं है। बल्कि नागरिकों को स्वैच्छिक अनुशासन (voluntary restraint) और सामाजिक ज़िम्मेदारी के प्रति प्रेरित करना है:
सोशल मीडिया के ज़रिए घृणा और फूट फैलाने से बचें।
अभिव्यक्ति की आज़ादी को ‘दायित्व’ के साथ जोड़ें।
कानून का डर नहीं, नैतिकता और भाईचारे का भाव ज़रूरी है।
🔷 विधायी पहल का संकेत | Need for a Digital Conduct Code
Supreme Court ने संकेत दिया कि क्या सोशल मीडिया पर नागरिकों के लिए एक Code of Digital Conduct लाया जा सकता है, जिससे:
फ्री स्पीच और सोशल हार्मनी के बीच संतुलन बन सके
AI algorithms और platform policies को लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप लाया जा सके
🔚 निष्कर्ष | Conclusion
भारत का संविधान नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल अधिकार देता है, लेकिन यह निर्बाध नहीं है। इसमें युक्तियुक्त प्रतिबंध (reasonable restrictions) संविधान के अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत आते हैं। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं बल्कि डिजिटल युग में सामाजिक चेतना का आह्वान है।
➡️ हमें तय करना है कि हम अपने विचारों से पुल बनाएंगे या दीवारें।
सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, हेट स्पीच नियंत्रण
सोशल मीडिया पर बढ़ती नफरत और विभाजनकारी प्रवृत्तियों पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता। अभिव्यक्ति की आजादी के साथ स्व-नियंत्रण और जिम्मेदारी की जरूरत पर दिया ज़ोर। पढ़ें पूरी एडिटोरियल विश्लेषण।