
Palla village families displaced by landslide, THDC project under criticism for broken school promise.
टीएचडीसी विवाद: शिक्षा का सपना अधूरा, राहत का वादा खोखला
टीएचडीसी का वादा झूठा निकला, भू-धंसाव ने उजाड़ा गांव
विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना से प्रभावित गांवों में टीएचडीसी ने 15 वर्षों से कॉन्वेंट स्कूल का वादा अधूरा रखा, भू-धंसाव से संकट गहराया।
~रणबीर नेगी
Chamoli, (Shah Times) । उत्तराखंड के पहाड़ी इलाक़ों में प्राकृतिक आपदाएँ कोई नई बात नहीं, मगर जब इन आपदाओं की जड़ इंसानी दख़ल और सरकारी-कार्पोरेट लापरवाही से जुड़ी हो तो मसला और गंभीर हो जाता है। चमोली ज़िले में निर्माणाधीन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना का असर स्थानीय जनता के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं। एक तरफ़ कंपनी ने प्रभावित परिवारों से कॉन्वेंट स्कूल खोलने का वादा किया, दूसरी तरफ़ भू-धंसाव ने गाँवों को रहने लायक़ नहीं छोड़ा।
टीएचडीसी का वादा और हक़ीक़त
साल 2006 में टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (टीएचडीसी) ने 444 मेगावाट विष्णुगाड परियोजना का काम शुरू किया। 2010-11 में कंपनी ने प्रभावित परिवारों से वादा किया कि उनके बच्चों को आधुनिक और अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा देने के लिए 12वीं तक का कॉन्वेंट स्कूल खोला जाएगा। प्रभावित ग्रामीणों ने सेमलडाला और गडोरा इंटर कॉलेज की ज़मीन तक प्रस्तावित की, मगर कंपनी ने वर्षों तक सिर्फ़ काग़ज़ी प्रक्रिया और आश्वासन का खेल खेला। नतीजा यह कि 15 साल बाद भी न स्कूल बना और न ही ज़मीन का चयन हुआ।
जनता का ग़ुस्सा और मोहभंग
गांव के बुज़ुर्गों से लेकर नौजवानों तक सबका कहना है कि टीएचडीसी ने उन्हें “development का सपना” दिखाकर दरअसल exploitation किया।
बंड विकास संगठन के पूर्व अध्यक्ष अतुल साह का कहना है कि कंपनी ने कभी भी गंभीरता से पहल नहीं की।
हाट गांव के पूर्व प्रधान राजेंद्र हटवाल के मुताबिक़, 15 साल तक सिर्फ़ झूठा वादा किया गया।
गांववालों का आरोप है कि परियोजना की 70 फ़ीसदी से अधिक construction complete होने के बावजूद जनता से किया गया social commitment अभी तक अधूरा है।
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पल्ला गांव और भू-धंसाव का ख़तरा
ज्योर्तिमठ के नज़दीकी अंबेडकर पल्ला गांव में पिछले दिनों भू-धंसाव ने 30 से अधिक परिवारों को बेघर कर दिया। उनके घरों में गहरी दरारें पड़ गईं, प्रशासन ने सुरक्षा कारणों से उन्हें टेंट में शिफ़्ट किया। प्रभावितों का साफ़ आरोप है कि टीएचडीसी की भूमिगत टनलिंग से ये ज़मीन खिसक रही है।
बदरीनाथ विधायक लखपत बुटोला ने गाँव का दौरा किया और कहा कि “पल्ला गांव का पुनर्वास तत्काल होना चाहिए। राहत महज़ टिनशेड देने तक सीमित नहीं रह सकती, हमें स्थायी समाधान चाहिए।




विकास बनाम विनाश
Economic Argument: सरकार और कंपनी कहती है कि hydropower projects clean energy के लिए ज़रूरी हैं।
Social Reality: प्रभावित परिवारों को livelihood loss, environmental risk और displacement झेलना पड़ा।
Educational Betrayal: स्कूल का वादा पूरा न होना उस “inclusive growth” की असलियत दिखाता है जिसे सरकार प्रचारित करती है।
प्रतिवाद और कंपनी का पक्ष
टीएचडीसी के महाप्रबंधक अजय वर्मा का कहना है कि “हमने मानसून के बाद प्रभावितों के लिए टिनशेड बनाने की योजना बनाई है और शिक्षा से जुड़े commitments को भी आगे बढ़ाया जाएगा।” मगर सवाल है कि अगर 15 साल में एक स्कूल तक नहीं बन पाया, तो आगे जनता कितना भरोसा करेगी?
व्यापक निहितार्थ
इस केस से तीन बड़ी बातें निकलकर आती हैं:
Policy Gap: बड़े प्रोजेक्ट्स में rehabilitation को हमेशा नज़रअंदाज़ किया जाता है।
Trust Deficit: जब promises पूरे नहीं होते, तो लोग development model पर ही सवाल उठाने लगते हैं।
Disaster Preparedness: भू-धंसाव जैसे ख़तरों को local geology समझे बिना projects शुरू करना सीधा ecological gamble है।
निष्कर्ष
पल्ला गांव और विष्णुगाड परियोजना की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि development सिर्फ़ power generation और GDP growth का नाम नहीं। असली विकास तभी है जब प्रभावित जनता को शिक्षा, रोज़गार और सुरक्षित आवास मिले। अगर टीएचडीसी वाक़ई social responsibility निभाना चाहती है, तो पहला कदम यही होना चाहिए कि वह तुरंत कॉन्वेंट स्कूल का निर्माण शुरू करे और भू-धंसाव प्रभावितों का स्थायी पुनर्वास सुनिश्चित करे।




