
1991-batch IPS Rajeev Krishna takes charge as Uttar Pradesh's new Director General of Police.
“अनुभव और विश्वास का संगम: राजीव कृष्ण की डीजीपी नियुक्ति से क्या संकेत ?”
1991 बैच के आईपीएस अधिकारी राजीव कृष्ण को उत्तर प्रदेश का नया डीजीपी नियुक्त किया गया है। वरिष्ठता को दरकिनार कर सरकार ने भरोसे और कार्यकुशलता को प्राथमिकता दी। पढ़ें पूरा संपादकीय विश्लेषण।
राजीव कृष्ण का उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP) के रूप में चयन एक प्रशासनिक बदलाव भर नहीं, बल्कि सरकार के “अनुभव आधारित भरोसे” की नीति का प्रत्यक्ष उदाहरण है। 1991 बैच के आईपीएस अधिकारी और तेज-तर्रार छवि वाले अफसर राजीव कृष्ण की ताजपोशी न केवल वरिष्ठता के मानकों को चुनौती देती है, बल्कि यह एक स्पष्ट संकेत भी है कि योगी सरकार भरोसे और कार्यक्षमता को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है।
🔍 सेवा विस्तार की चर्चाओं पर विराम
पिछले कुछ सप्ताहों से यह अटकलें जोरों पर थीं कि वर्तमान डीजीपी प्रशांत कुमार को सेवा विस्तार मिल सकता है। लेकिन 31 मई की सेवानिवृत्ति के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि सरकार अब नेतृत्व परिवर्तन चाहती है। प्रशांत कुमार के खाते में कई जिम्मेदारियां थीं, जिनमें EoW प्रमुख और कार्यवाहक डीजीपी शामिल थे। बावजूद इसके, उन्हें सेवा विस्तार न देना यह दर्शाता है कि शासन अब नई ऊर्जा और दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ना चाहता है।
🧭 राजीव कृष्ण: एक बहुआयामी नेतृत्वकर्ता
राजीव कृष्ण का करियर विविधताओं से भरा रहा है। डीजी विजिलेंस और उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने जिस दक्षता से कार्य किया, उससे उनकी प्रशासनिक कुशलता और रणनीतिक सोच का परिचय मिलता है। खासतौर पर सिपाही भर्ती परीक्षा पेपर लीक मामले में उनकी निर्णायक भूमिका ने राज्य सरकार का विश्वास और मज़बूत किया।
उनका 2004 में आगरा में एसएसपी रहते हुए चलाया गया ऑपरेशन आज भी अपराध नियंत्रण की मिसाल माना जाता है। बीहड़ों में सक्रिय अपहरण गैंग्स के विरुद्ध उनकी कार्रवाई ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह किसी भी चुनौती से पीछे हटने वाले अफसर नहीं हैं।
🏅 11 वरिष्ठ अफसरों को किया सुपरसीड
राजीव कृष्ण की नियुक्ति केवल एक साधारण चयन नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक संदेश है। जब 11 वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को सुपरसीड कर एक ऐसे अफसर को प्रदेश की सर्वोच्च पुलिस जिम्मेदारी दी जाती है, तो यह एक नया मापदंड तय करता है—वरिष्ठता से ज़्यादा प्राथमिकता अब दक्षता और भरोसे को दी जा रही है।
📡 भविष्य की चुनौतियाँ और अपेक्षाएँ
उत्तर प्रदेश जैसे जटिल सामाजिक और राजनीतिक संरचना वाले राज्य में डीजीपी का पद केवल कानून व्यवस्था तक सीमित नहीं होता। यह पद सामाजिक संतुलन, राजनीतिक सूझबूझ और प्रशासनिक समन्वय की त्रिवेणी है।
राजीव कृष्ण के सामने निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियाँ होंगी:
- साम्प्रदायिक और जातीय तनावों की समय रहते रोकथाम
- भ्रष्टाचार और पुलिस महकमे के भीतर पारदर्शिता की पुनर्स्थापना
- भर्ती और पदोन्नति की निष्पक्षता को बनाए रखना
- डिजिटल पुलिसिंग को और उन्नत बनाना
- शहरी और ग्रामीण अपराध दर में संतुलन और नियंत्रण
👨👩👧 व्यक्तिगत पृष्ठभूमि और सामाजिक मूल्यों का मिश्रण
गौतमबुद्धनगर निवासी और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि से आने वाले राजीव कृष्ण की सोच तकनीकी रूप से परिपक्व और विश्लेषणात्मक है। उन्हें दो बार राष्ट्रपति गैलेंट्री अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है, जो उनकी बहादुरी और कार्यकुशलता का प्रमाण है। चार साल और एक महीने की सेवा अवधि शेष होने के चलते वे लंबे समय तक उत्तर प्रदेश पुलिस की कमान संभाल सकते हैं, जिससे रणनीतिक स्थिरता सुनिश्चित हो सकेगी।
उनकी पत्नी मीनाक्षी सिंह एक वरिष्ठ आईआरएस अधिकारी हैं, जो आयकर विभाग, लखनऊ में कार्यरत हैं। यह दर्शाता है कि राजीव कृष्ण का पारिवारिक परिवेश भी सार्वजनिक सेवा के मूल्यों से भरा हुआ है।
🔚 निष्कर्ष:
राजीव कृष्ण की डीजीपी नियुक्ति सत्ता की सोच में हो रहे बदलाव की प्रतीक है। योगी सरकार ने इस फैसले से यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि प्रशासनिक निर्णय अब केवल वरिष्ठता पर नहीं, बल्कि विश्वास, प्रतिबद्धता और जनसेवा के प्रति ईमानदारी पर आधारित होंगे।
आगामी समय में राजीव कृष्ण से अपेक्षा की जा रही है कि वह उत्तर प्रदेश पुलिस को न केवल सुरक्षित, बल्कि संवेदनशील और उत्तरदायी भी बनाएंगे।
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