
अल्पस्यंखक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम
लखनऊ । अल्पस्यंखक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम (Shahnawaz Alam) ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की इस टिप्पणी को कि वो अपने फ़ैसलों पर उठने वाले सवालों का जवाब नहीं देंगे ग़ैर ज़िम्मेदाराना बयान बताया है।
उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायाधीश संविधान के अभिरक्षक होते हैं इसलिए अगर उनके फैसलों पर संविधान विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं तो वो जवाब देने से भाग नहीं सकते। अगर यह चलन बन गया तो कोई भी सरकार रिटायरमेंट के बाद जजों को उपकृत करने के वादे के साथ अपने पक्ष में फैसले दिलवा लेगी जैसा कि हाल के दिनों में हुआ है। इसलिए चंद्रचूड़ के बयान में न्यायपालिका के माध्यम से तानाशाही थोपने की खतरनाक मंशा झलकती है। जिसे नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता।
शाहनवाज़ आलम (Shahnawaz Alam) ने कहा कि 370 पर आए फैसले पर देश के वरिष्ठ क़ानूनविद रोहिंगटन नरीमन ने विस्तार से बिंदुवार सवाल उठाए थे। देश को उम्मीद थी कि मुख्य न्यायाधीश उनके सवालों पर विस्तार से आश्वस्त करने वाले जवाब देंगे। लेकिन अपने इंटरव्यू में उन्होंने जिस तरह इन सवालों का जवाब देने से मना कर दिया वो उनकी विश्वस्नियता को और संदिग्ध बनाता है।
गैर भाजपा शासित राज्यों में राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर हस्ताक्षर न करने और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर नये क़ानून में संशोधन के मुद्दे पर भी सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी या सरकार के पक्ष में उसका झुकाव सवालों के घेरे में है। जिस पर मुख्य न्यायाधीश को अपना पक्ष रखना चाहिए था। उनकी चुप्पी से ऐसा संदेश गया है कि सरकार का पक्ष ही उनका पक्ष है।
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शाहनवाज़ आलम (Shahnawaz Alam) ने कहा कि डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) का अब तक का कार्यकाल सवालों के घेरे में रहा है। जिस तरह जम्मू कश्मीर (Jammu-Kashmir) के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल द्वारा सार्वजनिक तौर पर संविधान की प्रस्तावना में सेकुलर शब्द के होने को कलंक बताने के बावजूद उन्हें प्रोमोट करके सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जज बना दिया गया, वरिष्ठता के आधार पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जज बनने की पात्रता होने के बावजूद मोदी सरकार (Modi government) के दबाव में जस्टिस अकील क़ुरैशी (Justice Akil Qureshi) का नाम कॉलेजियम द्वारा नहीं भेजा गया, मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ़ हेट स्पीच देने वाली विक्टोरिया गौरी (Victoria Gauri) को तमिलनाडू हाई कोर्ट (TamilNadu High Court) का जज बना दिये जाने या मणिपुर हिंसा (Manipur violence) पर उनके अपर्याप्त हस्तक्षेप के लिए याद किया जायेगा। यह ऐसे उदाहरण हैं जिनसे उनके कार्यकाल में न्यायपालिका की छवि धूमिल हुई है।
शाहनवाज़ आलम (Shahnawaz Alam) ने कहा कि ऐसी धारणा बनती जा रही है कि मौजूदा मुख्य न्यायाधीश अपने कार्यकाल में पूजा स्थल अधिनियम 1991 (Places of Worship Act 1991) को कमज़ोर करने की मंशा से काम कर रहे हैं। ऐसी धारणा बनना लोकतंत्र के भविष्य के लिए खतरनाक है।