
A powerful composition of global leaders—Donald Trump, Benjamin Netanyahu, Ayatollah Khamenei, and Narendra Modi—set against the burning backdrop of the Iran-Israel conflict, representing geopolitical tension and India's strategic balancing role. Image courtesy: Shah Times
मिडिल ईस्ट में चल रही इजरायल-ईरान जंग से भारत समेत दुनियाभर में चिंता बढ़ी है। इस संघर्ष का असर तेल की कीमतों, FMCG उत्पादों, छात्रों की सुरक्षा और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। जानिए भारत की रणनीति और संभावित समाधान।
जंग की लपटों में झुलसती दुनिया
मिडिल ईस्ट में इजरायल और ईरान के बीच जारी भीषण संघर्ष न केवल क्षेत्रीय राजनीति को झकझोर रहा है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक समीकरणों पर भी गहरा असर डाल रहा है। भारत समेत कई देशों की चिंता इस बात को लेकर है कि यह युद्ध कब तक चलेगा, कितना व्यापक होगा और इसका असर घरेलू बाजार व आम आदमी पर कितना होगा।
युद्ध की जड़ें – ईरान-इजरायल टकराव कैसे बना महायुद्ध
ईरान और इजरायल के बीच दशकों से तनाव रहा है। हालिया संघर्ष में यह टकराव खुली जंग में बदल चुका है, जब इजरायल ने ईरान के न्यूक्लियर इंस्टॉलेशन्स पर सीधा हमला कर दिया। इसके जवाब में ईरान ने भी तेल अवीव और हाइफा जैसे शहरों पर बमबारी शुरू कर दी है। इस टकराव में अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं और हजारों घायल हैं।
इस युद्ध में अमेरिका की सक्रियता और डोनाल्ड ट्रंप का बयान – “तेहरान तुरंत खाली करें” – वैश्विक समुदाय को बता रहा है कि यह केवल दो देशों की जंग नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाली स्थिति है।
भारत के लिए संकट के संकेत – व्यापार और छात्रों की सुरक्षा
(1) कच्चे तेल पर निर्भरता और महंगाई का खतरा
भारत अपनी जरूरत का लगभग 85% कच्चा तेल आयात करता है, जिसमें मिडिल ईस्ट देशों की प्रमुख भूमिका होती है। युद्ध की स्थिति में सप्लाई चेन पर असर पड़ता है, जिससे कीमतें आसमान छूने लगती हैं।
(2) FMCG सेक्टर पर संकट के बादल
साबुन, तेल, बिस्किट जैसे दैनिक उपभोग की वस्तुओं के दाम तेजी से बढ़ सकते हैं क्योंकि कच्चे माल की लागत बढ़ेगी। कंपनियों को निर्माण लागत बढ़ानी होगी और इसका सीधा असर उपभोक्ता की जेब पर पड़ेगा।
(3) भारतीय छात्रों की चिंता
ईरान, इराक और अन्य मिडिल ईस्ट देशों में हजारों भारतीय छात्र मेडिकल और टेक्निकल स्टडीज़ कर रहे हैं। युद्ध के कारण एयरस्पेस बंद होने से वे वहीं फंस गए हैं। भारत सरकार ने अर्मेनिया के रास्ते छात्रों को सुरक्षित निकालने की योजना शुरू की है, लेकिन खतरा बरकरार है।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर गहराता संकट
मिडिल ईस्ट में संकट का असर सिर्फ तेल तक सीमित नहीं है। कई महत्वपूर्ण शिपिंग रूट्स जैसे स्ट्रेट ऑफ होरमुज़ और रेड सी मार्ग अब खतरनाक बन चुके हैं। यह वैश्विक सप्लाई चेन को धीमा कर सकता है, जिससे कंटेनर ट्रैफिक, फर्टिलाइज़र, खाद्य तेल, स्टील और दवा उद्योग प्रभावित होंगे।
अमेरिका-ईरान-इजरायल ट्रायंगल – सुपरपावर की रणनीति
डोनाल्ड ट्रंप के बयान ने इस युद्ध में एक नई आग जला दी है। उन्होंने ईरान के खिलाफ “फाइनल वार्निंग” देते हुए न्यूक्लियर डील न करने को “मूर्खता” बताया। इजरायली राजदूत ने यह साफ कर दिया है कि अमेरिका ही ईरान के फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट पर हमला कर सकता है क्योंकि उसके पास ही ऐसी गहराई तक मार करने वाले बम हैं।
इससे स्पष्ट है कि अगर अमेरिका खुलकर इजरायल के साथ आ खड़ा होता है, तो यह युद्ध सीरिया, लेबनान, सऊदी अरब, तुर्की और रूस तक फैल सकता है। यह वर्ल्ड वॉर जैसे हालात बना सकता है।
नेतन्याहू की रणनीति और खामेनेई पर सीधा निशाना
इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि “अगर खामेनेई को खत्म कर दिया जाए, तो जंग खुद खत्म हो जाएगी।” यह बयान दर्शाता है कि इजरायल अब केवल आत्मरक्षा की नीति नहीं बल्कि रेजीम चेंज की दिशा में बढ़ रहा है।
इसी बीच खामेनेई ने सोशल मीडिया पर इजरायली शहरों पर ईरानी एयरस्ट्राइक का वीडियो शेयर कर युद्ध को मनोवैज्ञानिक मोर्चे पर भी तेज कर दिया है।
एयरस्पेस बंद, लोग बेसमेंट में – जमीनी सच्चाई
तेहरान, मेहराबाद और खोमेनी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे बंद कर दिए गए हैं। इजरायल ने बेन गुरियन एयरपोर्ट बंद कर दिया है। सड़कों पर सन्नाटा है। टैक्सी मिलना मुश्किल है। लोग अपने घरों के बेसमेंट में छिपे हुए हैं।
यह स्थिति बताती है कि युद्ध अब केवल सैन्य टकराव नहीं रहा, यह आम जनता के जीवन को सीधे प्रभावित कर रहा है।
भारत की रणनीति क्या होनी चाहिए?
भारत को तीन स्तरों पर सोचने की आवश्यकता है:
(1) राजनयिक सक्रियता:
भारत को संयुक्त राष्ट्र, G20 और अन्य मंचों पर मिडिल ईस्ट में शांति स्थापना के लिए खुलकर आवाज उठानी चाहिए।
(2) सुरक्षा तैयारियाँ:
भारत को अपने NRI नागरिकों और छात्रों के लिए सुरक्षित निकासी योजनाओं को तुरंत कार्यान्वित करना चाहिए। एयरफोर्स और नेवी को अलर्ट मोड पर रखा जाना चाहिए।
(3) आर्थिक योजना:
महंगाई और आपूर्ति संकट से निपटने के लिए भारत को वैकल्पिक तेल आपूर्तिकर्ताओं जैसे ब्राजील, नॉर्वे, और अफ्रीकी देशों से संपर्क बढ़ाना चाहिए। साथ ही घरेलू उत्पादन और भंडारण पर ज़ोर देना चाहिए।
अध्याय 8: मीडिया, सोशल मीडिया और युद्ध का मनोवैज्ञानिक असर
खामेनेई और नेतन्याहू दोनों की सोशल मीडिया रणनीति बताती है कि युद्ध अब केवल मैदान में नहीं, मोबाइल स्क्रीन पर भी लड़ा जा रहा है। युद्ध का प्रोपेगेंडा, सत्ताधीशों की घोषणाएं और वीडियो फुटेज आम जनता के डर को और गहरा कर रहे हैं।
भारत में भी मीडिया को संतुलित रिपोर्टिंग करनी होगी ताकि जनता में घबराहट न फैले और उन्हें सटीक जानकारी मिल सके।
अध्याय 9: ग्लोबल मार्केट्स और निवेशकों की प्रतिक्रिया
इस युद्ध का असर न्यूयॉर्क, टोक्यो और मुंबई स्टॉक एक्सचेंज तक दिख रहा है। सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट दर्ज की गई है। विदेशी निवेशक (FIIs) अपने पैसे निकाल रहे हैं जिससे रूपया भी कमजोर हो रहा है।
FMCG, ट्रांसपोर्ट और एविएशन सेक्टर के शेयरों में भारी दबाव है। अगर युद्ध लंबा चला तो मंदी के हालात भी बन सकते हैं।
निष्कर्ष: शांति ही समाधान है
मिडिल ईस्ट का यह युद्ध किसी भी पक्ष के लिए लाभदायक नहीं होगा। इसका सबसे बड़ा नुकसान आम आदमी को होगा – चाहे वह इजरायली हो, ईरानी, भारतीय या अमेरिकी।
भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह समय बहुत नाजुक है। हमें इस युद्ध की आग से अपने देश को बचाकर एक जिम्मेदार राष्ट्र की भूमिका निभानी होगी। युद्ध का समाधान युद्ध नहीं, शांति और संवाद है। यही नीति भारत को अपनानी होगी – बुद्ध के देश के रूप में।
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