
Iran-Israel conflict effect on Pakistan border with EU diplomacy in background – Shah Times Editorial 2025
क्या EU की कूटनीति रोक सकेगी मध्य पूर्व में फैलती जंग की आग?
ईरान की अस्थिरता से चिंतित पाकिस्तान, परमाणु संघर्ष की आशंका
ईरान-इजरायल संघर्ष के बीच पाकिस्तान ने इजरायली हमले को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया और ईरान को नैतिक समर्थन देने की बात कही। वहीं यूरोपीय यूनियन ने जेनेवा में शांति वार्ता की संभावनाओं को लेकर कूटनीतिक पहल शुरू की है। जानिए Shah Times पर इस टकराव के क्षेत्रीय और वैश्विक असर का विश्लेषण।
ईरान और इज़रायल के दरमियान जारी टकराव की तपिश सिर्फ मिडिल ईस्ट ही नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया तक महसूस की जा रही है। खासकर पाकिस्तान की चिंता गहराती जा रही है। पश्चिमी एशिया के इस जलते हुए समीकरण में अब यूरोपीय यूनियन भी सक्रिय हुआ है और जेनेवा में संभावित वार्ताओं की हलचल शुरू हो चुकी है। ऐसे समय में जब परमाणु हथियारों और धार्मिक अस्मिताओं की राजनीति गहराती जा रही है, यह विश्लेषण बताता है कि कूटनीति अब भी संभव है – अगर दुनिया तैयार हो तो।
🔥 पाकिस्तान क्यों चिंतित है?
पाकिस्तान की चिंता केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि सामरिक और रणनीतिक भी है। इज़रायल द्वारा ईरान के ठिकानों पर हालिया हमलों ने इस्लामी दुनिया को झकझोर दिया है। पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि उन्हें ईरान से सैन्य सहायता का कोई अनुरोध नहीं मिला है, लेकिन इस बयान के पीछे चिंता की लकीरें छिपी नहीं रह सकीं।
ईरान-पाकिस्तान सीमा पर स्थित बलूचिस्तान लंबे समय से अलगाववादी और चरमपंथी गतिविधियों का गढ़ रहा है। अगर ईरान में अस्थिरता और अराजकता फैलती है, तो पाकिस्तान के लिए यह सीमा सुरक्षा की दृष्टि से एक गंभीर चुनौती बन सकती है।
🧨 इज़रायली हमला और अंतरराष्ट्रीय कानून
पाकिस्तानी विदेश कार्यालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने इज़रायली हमले को “अंतरराष्ट्रीय कानून का घोर उल्लंघन” बताया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ईरान को नैतिक समर्थन देता है और उसका बचाव करने का अधिकार मानता है।
यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मुस्लिम देशों की एकता का संदेश देता है। 21 मुस्लिम देशों ने एक संयुक्त बयान में इज़रायली आक्रमण की निंदा की और उसे संयुक्त राष्ट्र चार्टर के विरुद्ध बताया। पाकिस्तान इस समय कूटनीतिक संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है—एक ओर अमेरिका और इज़रायल से पारंपरिक संबंध, दूसरी ओर मुस्लिम दुनिया के साथ सहानुभूति और रणनीतिक एकता।
☢️ परमाणु मुद्दा: अस्थिरता या संतुलन?
ईरान का परमाणु कार्यक्रम इस संघर्ष की जड़ है। पाकिस्तान जानता है कि यदि इज़रायल ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाता है, तो यह एक ख़तरनाक मिसाल कायम करेगा। भारत और पाकिस्तान जैसे परमाणु राष्ट्रों के बीच तनाव की पृष्ठभूमि में यह विशेष रूप से चिंताजनक है।
यह डर इस तथ्य से भी जुड़ा है कि पाकिस्तान का खुद का परमाणु कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय संदेह के घेरे में रहा है। अगर प्री-एम्प्टिव स्ट्राइक (पहले हमला) को एक रणनीति के रूप में वैश्विक मान्यता मिलने लगी, तो दक्षिण एशिया की सुरक्षा पूरी तरह से डांवाडोल हो सकती है।
🇺🇸 ट्रंप, मुनीर और कूटनीति की चाल
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर की हालिया मुलाकात भी इसी पृष्ठभूमि में हुई। पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इस मुलाकात को “78 वर्षों के संबंधों का सबसे बड़ा मोड़” बताया।
यह बयान एक संकेत है कि पाकिस्तान अब सेना और सरकार के ‘हाइब्रिड मॉडल’ के ज़रिये वैश्विक कूटनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। ट्रंप के साथ इस संवाद से पाकिस्तान ने अपनी सुरक्षा चिंताओं को वैश्विक मंच पर रखने की रणनीति अपनाई है।
🇪🇺 EU की अचानक सक्रियता: शांति की एक नई उम्मीद?
सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम यह है कि यूरोपीय यूनियन ने जेनेवा में ईरान के साथ बातचीत की पहल की है। फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन (E3) के विदेश मंत्री जल्द ही ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराकची से मुलाकात करेंगे।
हालांकि EU औपचारिक रूप से इन वार्ताओं का हिस्सा नहीं है, लेकिन बैकडोर डिप्लोमेसी के ज़रिये वह शांति स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। यूरोन्यूज़ की रिपोर्ट के मुताबिक, यह बैठक ईरान के परमाणु कार्यक्रम और इज़रायल-ईरान युद्ध के खतरे को कम करने की दिशा में एक ठोस पहल हो सकती है।
🔄 2015 की डील और आज की ज़रूरत
2015 में हुए ईरान परमाणु समझौते (Joint Comprehensive Plan of Action – JCPOA) में यूरोप की अहम भूमिका थी। लेकिन ट्रंप प्रशासन द्वारा इससे पीछे हटने के बाद पूरे क्षेत्र में अस्थिरता का दौर शुरू हो गया।
अब जब ट्रंप फिर से अमेरिकी राजनीति के केंद्र में हैं, EU के लिए यह एक मौका है कि वह अपना खोया हुआ संतुलन फिर से पाए। अगर यूरोपीय देशों ने ईरान के साथ पुन: संवाद स्थापित किया, तो इससे इज़रायल पर भी दबाव बढ़ सकता है कि वह सैन्य कार्रवाई के बजाय कूटनीतिक रास्ता अपनाए।
🌐 मुस्लिम विश्व की भूमिका
इस पूरे संकट में मुस्लिम देशों की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। सऊदी अरब, कतर, तुर्की, मलेशिया जैसे देशों ने इज़रायल की कार्रवाई की आलोचना की है, लेकिन अभी तक कोई एकजुट रणनीति सामने नहीं आई है।
पाकिस्तान ने जहां नैतिक समर्थन की बात की है, वहीं सऊदी अरब और UAE ने अपेक्षाकृत शांत रुख अपनाया है। यह मुस्लिम विश्व की बंटी हुई स्थिति को दर्शाता है, जो इज़रायल को और अधिक आत्मविश्वास देता है।
📉 पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति पर प्रभाव
इस संघर्ष का प्रभाव पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति पर भी पड़ रहा है। विपक्षी दल सरकार पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वह विदेश नीति में ‘आर्मी-ड्रिवन’ एजेंडा चला रही है। वहीं सरकार इसे ‘संवेदनशील समय में राष्ट्रीय हितों की रक्षा’ कह रही है।
जनरल मुनीर की भूमिका इस संकट में अहम मानी जा रही है, और यह साफ संकेत है कि पाकिस्तान की विदेश नीति में सेना की पकड़ अब भी निर्णायक है।
✍️ निष्कर्ष: क्या शांति की उम्मीद बाकी है?
ईरान-इज़रायल संघर्ष जिस मोड़ पर है, वहां से वापस लौटना मुश्किल है – लेकिन नामुमकिन नहीं। पाकिस्तान की चिंता इस बात की है कि अगर मध्य-पूर्व पूरी तरह से अस्थिर हो गया, तो इसकी लपटें दक्षिण एशिया तक पहुंचेंगी। और यह खतरा पूरी दुनिया के लिए चेतावनी है।
यूरोप की कूटनीतिक पहल, अमेरिका की रणनीतिक रुचि और मुस्लिम देशों की सामूहिक चेतना अगर सही दिशा में काम करें, तो एक और युद्ध को टाला जा सकता है। सवाल यह है कि क्या दुनिया अब भी शांति के लिए तैयार है या केवल प्रतिक्रियाओं की राजनीति खेलनी है?
📌 Shah Times विशेष टिप्पणी:
“युद्ध से न कोई जीता है, न जीतेगा। लेकिन संवाद से दिशा बदल सकती है। जब बम खामोश होते हैं, तब शब्द काम करते हैं।”
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