
The biggest test of humanity in Gaza
बच्चों की मौत से गूंजता गाज़ा, दुनिया बेपरवाह
भूख और बमों के साये में गाज़ा की मासूम ज़िंदगियां
गाज़ा में इज़रायल की क्रूर कार्रवाई ने इंसानियत को शर्मसार किया। मासूम बच्चों की मौत और भूख से तड़पती ज़िंदगी पर दुनिया क्यों खामोश है?
गाज़ा की धरती पर इस वक़्त इंसानियत का सबसे बड़ा कत्लेआम हो रहा है। वहां की गलियों में मातम पसरा है, माओं की सूनी आंखों में दर्द है और छोटे-छोटे बच्चों की भूख से तड़पती तस्वीरें पूरी दुनिया को झकझोर रही हैं। मगर अफ़सोस कि दुनिया की बड़ी-बड़ी ताक़तें इस बर्बरता पर खामोश हैं। उन्हें गाजा के छोट-छोटे बच्चों की चीखें तक सुनाई नहीं दे रही हैं।
गाज़ा का दर्दनाक मंजर
गाज़ा की नन्हीं रूहें भूख और प्यास से दम तोड़ रही हैं।खाने और पानी की किल्लत से महिलाओं की छातियां सूख चुकी हैं, वे अपने मासूम बच्चों को दूध तक नहीं पिला पा रही हैं। अस्पतालों में दवा नहीं, गलियों में पानी नहीं, और आसमान से बरसते बमों के बीच ज़िंदगी हर रोज़ मौत से हार रही है। ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि अब तक लगभग 55 हज़ार से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें 17 हज़ार से अधिक बच्चे शामिल हैं।यह सिर्फ आंकड़े हैं, हक़ीक़त इससे कहीं ज़्यादा दर्दनाक और भयावह है।
इज़रायल ने क्रूरता की सारी हदें की पार
इज़रायल ने मानवीय मूल्यों की तमाम हदें पार कर दी हैं। युद्धभूमि पर टैंक और मिसाइलें चलाना एक बात है, मगर स्कूलों और अस्पतालों पर बम बरसाना, बच्चों की जान लेना और मानवीय सहायता तक रोक देना यह कोई जंग नहीं बल्कि खुला नरसंहार है। भोजन, पानी, दवा—ये किसी भी इंसान की बुनियादी ज़रूरत हैं, मगर इज़रायल ने इन पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। यह सिर्फ़ जंग नहीं बल्कि ज़ुल्म है, और यह इंसानियत का कत्ल है।जिस तरह से गाजा में मानवाधिकारों को कुचला जा रहा है, उससे ऐसा लगता है गाजा में मानवाधिकार का अस्तित्व ही खत्म हो गया है।
दुनिया की खामोशी और दोहरापन
दुनिया की बड़ी ताक़तें सिर्फ़ निंदा करने तक सीमित हैं। अमेरिका, यूरोप और अन्य पश्चिमी देश मानवाधिकार की बातें तो करते हैं, मगर गाज़ा पर जुल्म देखते हुए चुप हैं। क्या यही अंतरराष्ट्रीय राजनीति का सच है कि मज़लूम की आह भी किसी काम नहीं आती? संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। 193 देशों का यह संगठन क्या सिर्फ़ प्रस्ताव पारित करने के लिए है? अगर यह संगठन विश्वशांति के लिए ही बनाया गया था, तो गाज़ा में मासूमों की जानें बचाने के लिए ठोस कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे?
प्रतिबंध क्यों नहीं?
आज सवाल यह है कि इज़रायल पर सैन्य, आर्थिक और राजनायिक प्रतिबंध क्यों नहीं लगाए जाते? क्यों अंतरराष्ट्रीय न्यायालय उसके नेताओं पर युद्ध अपराध का मुक़दमा दर्ज नहीं करता? अगर यही हाल रहा, तो पूरी दुनिया के लिए यह एक ख़तरनाक मिसाल बन जाएगी कि ताक़तवर मुल्क जो चाहे कर सकता है और बाकी दुनिया सिर्फ़ देख सकती है।
इतिहास की गवाही
दुनिया पहले भी नरसंहार देख चुकी है—रवांडा, बोस्निया, सीरिया—हर जगह मासूमों का खून बहा। मगर इतिहास गवाह है कि जब इंसानियत पर जुल्म होता है और दुनिया खामोश रहती है, तो उसका बोझ आने वाली पीढ़ियों को उठाना पड़ता है। गाज़ा का यह नरसंहार भी आने वाली नस्लों के दिलों पर ज़ख़्म छोड़ जाएगा।
पलटवार और इज़रायल का पक्ष
इज़रायल का दावा है कि वह अपनी सुरक्षा के लिए यह कार्रवाई कर रहा है, क्योंकि गाज़ा से रॉकेट हमले होते हैं। मगर सवाल यह है कि क्या सुरक्षा के नाम पर मासूम बच्चों की जान लेना जायज़ है? क्या भूखे और बीमारों पर बम बरसाना आतंकवाद से लड़ाई है या इंसानियत से?
मुस्लिम उम्मा और अरब दुनिया की चुप्पी
सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि अरब और मुस्लिम देश क्यों खामोश हैं? ओआईसी जैसे संगठन सिर्फ़ बयान जारी करने तक क्यों सीमित हैं? अगर उम्मा एकजुट हो तो गाज़ा के लिए मदद और दबाव दोनों बन सकते हैं। मगर अफ़सोस, राजनीतिक हित और सत्ता की मजबूरियां इंसानियत पर भारी पड़ रही हैं।
नतीजा और उम्मीद
आज दुनिया एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ी है। अगर गाज़ा के बच्चों की चीख़ें भी दुनिया को झकझोर नहीं पा रही हैं, तो कल किसी और मुल्क के मासूमों की बारी आ सकती है। इंसानियत का तकाज़ा यही कहता है कि दुनिया अब और चुप न बैठे। जरूरी है कि संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय और बड़ी ताक़तें इंसाफ़ करें। गाज़ा के लिए मानवीय गलियारे खोले जाएं, दवाइयों और खाने का इंतज़ाम किया जाए और इज़रायल को उसकी बर्बरता के लिए जवाबदेह ठहराया जाए।
नतीजा
गाज़ा की गलियों में बहता खून और भूख से तड़पती मासूम रूहें पूरी इंसानियत पर सवाल खड़े कर रही हैं। यह सिर्फ़ एक जंग नहीं, बल्कि इंसानियत का इम्तिहान है। अगर आज दुनिया खामोश रही, तो कल इतिहास भी उसे माफ़ नहीं करेगा। दुनिया के तमाम ताकतवर देशों को चाहिए कि वह इंसानियत को बचाने के लिए आगे आयें और इजरायल की क्रूरता को रोकें।

~ मो राशिद अल्वी
(एडवोकेट & सोशल एक्टिविस्ट)
alvimohdrashid@gmail.com