
गहरेबाजी विशेष प्रकार की घुडदौड़ है। इस घुड़दौड़ में घोड़े सरपट नहीं दौड़ते बल्कि इक्के के साथ एक खास अंदाज में कदम दर कदम लयबद्ध टाप की चाल से दौड़ते है।
प्रयागराज। धार्मिक मान्यताओं का अक्षरश: पालन करने वाले तीर्थराज प्रयाग के बाशिंदे सदियों पुरानी ऐतिहासिक परंपरा गहरेबाजी (विशेष प्रकार की घुड़दौड़) को श्रावण मास (shravan month) में न सिर्फ निभा रहे हैं बल्कि हर सोमवार उसका जमकर आनंद भी उठा रहे हैं।
सावन महीने के प्रत्येक सोमवार को आयोजित होने वाली गहरेबाजी की परंपरा करीब 200 साल पुरानी बताई जाती है। इसमें हिस्सा लेने के लिए हिन्दू-मुस्लिम (Hindu-Muslim) साल भर पहले से ही तैयारी करते हैं। यह गंगा-जमुनी (Ganga-Jamuni) तहजीब की मिसाल भी है। गहरेबाजी विशेष प्रकार की घुडदौड़ है। इस घुड़दौड़ (Horse Race) में घोड़े सरपट नहीं दौड़ते बल्कि इक्के के साथ एक खास अंदाज में कदम दर कदम लयबद्ध टाप की चाल से दौड़ते है। गहरेबाजी का लुत्फ उठाने के लिए निर्धारित सड़क के दोनों तरफ हजारों की संख्या में लोग खड़े रहते हैं।
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शहर के नामचीन गहरेबाज अभय अवस्थी ने बताया कि गहरेबाजी सावन के महीने में प्रत्येक सोमवार को आयोजित होती है। गहरेबाजी में दौड़ के लिए घोड़ों को साल भर प्रशिक्षित किया जाता है। प्रशिक्षित घोड़े सरपट भागने के बजाय एक-एक कदम बढ़ाकर लय में दौड़ते हैं। उन्होंने बताया कि कुछ शहर के अपने सिगनेचर शौक होते हैं। प्रयागराज का पसंदीदा शौक गहरेबाजी है। यह सैकड़ों साल पुरानी परंपरा है। गहरेबाजी तो दिल्ली (Delhi) लखनऊ (Lucknow), बनारस (Banaras), मिर्जापुर (Mirzapur) समेत तमाम शहरों में सुनी जाती है। सावन के सोमवार को प्रयागराज (Prayagraj) में ही यह परंपरा देखने को मिलती है।
उन्होने बताया कि इसके पीछे का कारण है सावन शिव का महीना है। शिव शक्ति के प्रतीक हैं। घोड़ा भी शक्ति का प्रतीक है। घोडों की ताकत और उसके चाल की ताकत को परखने का शौक गहरेबाजी है। इसमें घोड़ों की टाप और ताल पर थिरकती चाल के साथ उसका कलात्मक सौंदर्य भी देखा जाता है। इसमें दो बुनियादी चीजें महत्वपूर्ण होती हैं। इनमें से एक घोड़े की टाप और दूसरी चाल। एक मिनट में कितने टाप घोड़े ने मारा और दूसरा घोड़े किस चाल से दौड़ा है।
श्री अवस्थी ने बताया कि “तबले की ताल और घोड़े की टाप को समझना सामान्य लोगों के बस की बात नहीं है। घोड़े जब भागते हैं तब उनकी चाल और टाप की गिनती होती है। घोड़ा एक मिनट में कितने टाप मारता है और कौन सी चाल चलता है। जो गहरेबाजी के पारखी हैं वो इसको बारकी से बखूबी परखते हैं।
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गहरेबाजी में तीन चाल मशहूर है। पहला सबसे श्रेष्ठ सिंधी मादरी चाल। इसमें घोड़ा जमीन पर सिल्की टच मारते हुए एक -दो टाप के बाद कान खड़ाकर वेग मे भागता है। इस चाल में एक मिनट में 40 से 45 टाप निकलने चाहिए। दूसरी चौटाला चाल । इसमें घोडा अपनी टाप को जमीन पर जोर से चोट मारने के बाद टप-टप पर करता हुआ भागता है। और तीसरी निम्न श्रेणी का ढ़ोलकी या घसीटा चाल है। इसमें घोड़ा खटपट-खटपट करते हुए भागता है।
बाबा अभय अवस्थी बताते हैं कि गहरेबाजी घोड़ों की दौड़ तक सीमित नहीं बल्कि इसका अर्थ बहुत गहरा है। इस प्रतियोगिता में शामिल होने वाले घोड़ों को सालों या बचपन से उनके पैरों में लय डाली जाती है। यह वही खूबसूरत चाल होती है जिसका प्रदर्शन साल में एक बार केवल सावन के प्रत्येक सोमवार पर ही देखने को मिलता है। गहरेबाजी में सब कुछ देखा जाता है। इक्का या रेहड़ी की बनावट, घोड़े का रख रखाव, उसकी चाल, उसका शैष्ठव, उसके बालों और पूंछ की कटिंग इन सभी चीजों को मिलाकर गहरेबाजी का खेल बनता है।
अवस्थी ने कहा कि उनका मानना है सरकार को चाहिए कि जैसे खो-खो आज नेशल गेम (National game) हो गया और कबड्डी (Kabaddi) एशियाड में आ गयी। उसी प्रकार गहरेबाजी को भी खेल शामिल किया जाना चाहिए। इसकी चाल का भी एक कोड आफ कनडक्ट बनाएं। इसके चाल को परखने वाले रेफरी रखे जाए, तब देखिए यह खेल कैसे परवान चढता है और देश में एक नये खेल के रूप में अपना स्थान बनाएगा।