
Justice V. G. Arun addressing the need for a secular and questioning society at a Kerala event.
“धर्म और जाति से परे परवरिश: Justice V. G. Arun की सोच भारतीय समाज के भविष्य की नई दिशा”
बिना पहचान की बेड़ियों के बच्चों की परवरिश: Justice V. G. Arun की प्रेरणा
Justice V. G. Arun ने धर्म और जाति की पहचान से परे बच्चों की परवरिश को महत्वपूर्ण बताते हुए तर्क, समानता और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर आधारित भविष्य की वकालत की है
Shah Times Editorial Analysis
📰 तर्क, समानता और धर्मनिरपेक्षता की ओर एक प्रेरणादायक दृष्टिकोण
केरल हाईकोर्ट के Justice V. G. Arun ने हाल ही में एक सशक्त सामाजिक संदेश दिया, जो न केवल धर्मनिरपेक्षता की ओर एक सकारात्मक कदम है, बल्कि भारतीय समाज के भविष्य के लिए एक नया सोच का आधार भी है। केरल युक्तिवादी संगम द्वारा आयोजित एक समारोह में, जहां प्रसिद्ध लेखक वैषाखन को सम्मानित किया गया और तर्कवादी लेखक पावनन की स्मृति में श्रद्धांजलि दी गई, वहां जस्टिस अरुण ने उस सोच की सराहना की जो बच्चों को धर्म और जाति से परे पाले जाने की वकालत करती है।
🔍 बच्चे जो सवाल करते हैं, वही भविष्य का निर्माण करते हैं
Justice V. G. Arun की टिप्पणी, “जो बच्चे धर्म और जाति की पहचान से परे पाले जाते हैं, वे एक अधिक विवेकपूर्ण और प्रश्न करने वाले समाज की आशा हैं,” भारतीय समाज में चल रही गहन बहसों को एक नई दिशा देती है। जब कोई बच्चा बिना किसी धार्मिक या जातिगत लेबल के बड़ा होता है, तो उसकी सोच अधिक स्वतंत्र और वैज्ञानिक होती है। वह अंधविश्वास और पूर्वाग्रह से मुक्त होकर दुनिया को समझने की कोशिश करता है। यह स्वतंत्र सोच ही लोकतंत्र की नींव है, जो तर्क और समानता पर आधारित होती है।
📚 पावनन और वैषाखन: तर्कशीलता के प्रतीक
कार्यक्रम में जिन दो हस्तियों को विशेष रूप से याद किया गया—पावनन और वैषाखन—वे दोनों भारतीय बौद्धिक आंदोलन के मजबूत स्तंभ रहे हैं। इन्होंने न केवल अपने लेखन से समाज को जागरूक किया, बल्कि स्वयं जाति-आधारित उपनामों को त्याग कर एक उदाहरण प्रस्तुत किया। यह कदम भारतीय समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव के खिलाफ एक सशक्त प्रतीकात्मक विरोध था।
🗞️Shah Times E-Paper 10 July 2025🗞️
👨👦 निजी अनुभव की झलक: एक पिता की प्रेरणा
जस्टिस अरुण ने अपने पिता टी. के. जी. नायर का उल्लेख करते हुए बताया कि वे पावनन से प्रेरित होकर ‘अनिलन’ के नाम से लेखन करते थे। यह आत्मकथात्मक संदर्भ इस बात को स्पष्ट करता है कि स्वतंत्र सोच और धर्मनिरपेक्ष मूल्य उनके जीवन में बचपन से ही रचे-बसे थे। यही पारिवारिक माहौल आज उन्हें एक संवेदनशील और तर्कशील न्यायाधीश के रूप में प्रस्तुत करता है।
📱 सोशल मीडिया और तर्कहीनता का बढ़ता प्रभाव
जस्टिस अरुण ने आज के सोशल मीडिया माहौल की विषाक्तता पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जब वे सोशल मीडिया पोस्टों के आधार पर दायर आपराधिक मामलों की सुनवाई करते हैं, तो यह देखना बेहद पीड़ादायक होता है कि भाषा और विचार कैसे स्तरहीन हो जाते हैं। मलयाली भाषा, जो कि साहित्य और संस्कृति की एक समृद्ध धरोहर है, वह भी इस कटुता और असहिष्णुता की चपेट में आ गई है। यह सामाजिक पतन तब और बढ़ जाता है जब समाज में तर्कशीलता और खुले संवाद की आवाजें कमजोर पड़ जाती हैं।
⚖️ न्यायिक दृष्टिकोण: ‘अधार्मिक’ घोषित करने का अधिकार
जस्टिस अरुण का दृष्टिकोण केवल भाषणों तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके न्यायिक फैसलों में भी यह स्पष्ट दिखाई देता है। 2022 के एक ऐतिहासिक फैसले में उन्होंने व्यक्तियों को यह अधिकार दिया कि वे आधिकारिक दस्तावेजों में स्वयं को ‘अधार्मिक’ घोषित कर सकें। यह फैसला उन छात्रों के पक्ष में आया था जो धार्मिक पहचान के बजाय एक धर्मनिरपेक्ष श्रेणी में कॉलेज में प्रवेश लेना चाहते थे। यह निर्णय भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना को और सुदृढ़ करता है।
🌱 एक विवेकशील समाज की ओर
जस्टिस अरुण का यह वक्तव्य भारतीय समाज के उस हिस्से को एक नई दिशा देता है जो धर्म और जाति के चश्मे से समाज को देखने का आदि हो चुका है। आज जब दुनिया भर में पहचान की राजनीति, धार्मिक ध्रुवीकरण और कट्टरता बढ़ रही है, ऐसे में यह विचार कि एक बच्चा बिना धार्मिक पहचान के बड़ा हो सकता है और एक बेहतर नागरिक बन सकता है—वास्तव में क्रांतिकारी है।
🧭 निष्कर्ष: क्या यही भारत का भविष्य है?
जस्टिस वी. जी. अरुण की बातें केवल न्यायिक दृष्टिकोण नहीं हैं, बल्कि यह सामाजिक चेतना का आह्वान भी हैं। पावनन और वैषाखन जैसे तर्कशील विचारकों की विरासत को जीवित रखने की आवश्यकता आज पहले से कहीं अधिक है। एक ऐसा समाज जो सवाल पूछे, जो तर्क करे, जो विचारों के आदान-प्रदान में विश्वास रखे—वही एक समावेशी और प्रगतिशील भारत का निर्माण कर सकता है।