
Dr Girish Chandra Sharma shahtimesnews
भाजपा के साढ़े नौ वर्षों के केंद्रीय शासन में रुपए का आकार सिकुड़ कर लगभग 10 पैसे के बराबर रह गया है
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥
लखनऊ,(Shah Times)। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आज विधानसभा में प्रस्तावित उत्तर प्रदेश के आम बजट को लोकसभा चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिये तैयार किया गया एक पर्चा मात्र करार दिया है। यह बजट किसानों, कामगारों, युवाओं तथा समाज के अन्य विपन्न तबकों की दयनीय दशा को ढकने का आडंबरपुराण है, भाजपा द्वारा धर्म की आड़ में लोगों को ठगने के लिये खेले जा रहे खेल को आगे और तेजी से बढ़ाने का ब्लू-प्रिंट है।
अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते डॉ गिरीश चंद्रा शर्मा ने कहा कि इस बजट को हर बार की तरह अब तक के सबसे बड़े आकार वाला बताया जा रहा है, पर इसके आकार का आंकड़ा इसलिए बड़ा दिख रहा है कि भाजपा के साढ़े नौ वर्षों के केंद्रीय शासन में रुपए का आकार सिकुड़ कर लगभग 10 पैसे के बराबर रह गया है।अनेक झूठों और बड़बोलेपन से लथपथ आंकड़े भी यह नहीं छिपा सके हैं कि बजट महंगाई ग़रीबी बेरोज़गारी स्वास्थ्य एवं अशिक्षा जैसी भयावह समस्याओं के निराकरण में एकदम बोगस है। सच तो यह है कि बजट ग़रीबी को और भी बढ़ाने वाला है तथा अमीरों को और भी मालामाल करेगा।
विकास, और सामाजिक कल्याण की अनेक योजनाएँ भयावह भ्रष्टाचार में डूबी हैं। इसका ताजातरीन उदाहरण यह है कि उत्तर प्रदेश के तमाम लोग ठंड से सिकुड़ कर ईश्वर को प्यारे हो गए और सरकार ने जनवरी मध्य तक अलाव जलाने पर रुपये 53 करोड़ का खर्च दिखाया है। सरकार ने भ्रष्टाचार, महिला उत्पीड़न एवं कमजोर वर्ग की सुरक्षा का खाका भी प्रस्तुत नहीं किया, जबकि जन मानस में भय फैलाने को की जा रही बुलडोज़री कार्यवाहियों पर बेशुमार धन खर्च किया जा रहा है।
वोट और सत्ता के लिये धर्म की आड़ में खेले जारहे खेल को और तेजी से आगे बढ़ाने के लिये तमाम राशि आवंटित की है,जबकि आधुनिक भारत का उन्नयन रोजगार के मंदिरों (उद्योग, कल कारखानों और आधारभूत ढांचे) के निर्माण की उपेक्षा की गई है। आज़ादी के बाद यह पहला बजट है जो ग़रीब और आम लोगों को नहीं, अपितु राम को समर्पित किया गया है। वित्तमंत्री द्वारा बजट पुस्तिका को घरेलू पूजाग्रह में इष्ट देवताओं के समक्ष पहले प्रस्तुत कर यह साबित कर दिया है कि जनता को आगे भी “राम भरोसे” ही जीवन जीना है। यह राजनैतिक उद्देश्यों के लिये आस्था के लालचपूर्ण दोहन का भयंकर उदाहरण है।बड़ा होने का ढिंढोरा पीटे जाने वाले सात लाख छत्तीस हज़ार करोड़ रुपये के इस प्रस्तावित बजट पर यह पंक्ति पूरी तरह लागू होती है।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥