
Puri Rath Yatra Crowd Stampede and Goddess Gundicha Story -Shah Times
भगवान जगन्नाथ की पुरी रथ यात्रा में मची भगदड़, तीन श्रद्धालुओं की मौत
पुरी रथ यात्रा में दर्दनाक हादसा, पुरी में भीड़ में फंसे श्रद्धालु, 50 घायल
पुरी रथ यात्रा में भगदड़ से तीन की मौत, 50 घायल। जानिए देवी गुंडिचा का भगवान जगन्नाथ से क्या संबंध है और क्यों कहलाती हैं मौसी।
रथ यात्रा में हादसा: प्रशासनिक व्यवस्था पर उठे सवाल
ओडिशा के पुरी में रविवार सुबह रथ यात्रा के दौरान बड़ा हादसा हो गया, जिसमें तीन श्रद्धालुओं की मौत हो गई और 50 से अधिक लोग घायल हो गए। हादसा श्रीगुंडिचा मंदिर के सामने, शरधाबली क्षेत्र में हुआ, जब भारी भीड़ भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए एकत्रित हुई थी।
दुर्भाग्यवश, भीड़ पर नियंत्रण न पाने से धक्का-मुक्की बढ़ी और भगदड़ मच गई। मृतकों में दो महिलाएं — प्रभाती दास और बसंती साहू — तथा 70 वर्षीय प्रेमाकांत महांती शामिल हैं। तीनों श्रद्धालु खुर्दा जिले से आए थे। घायलों को पुरी जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जिनमें कुछ की हालत नाजुक बताई जा रही है।
सवालों के घेरे में भीड़ नियंत्रण और प्रशासनिक तैयारियां
हर साल लाखों श्रद्धालु रथ यात्रा में भाग लेने आते हैं। ऐसे आयोजन के दौरान प्रशासन की ओर से सुरक्षा और भीड़ नियंत्रण की समुचित व्यवस्था अनिवार्य मानी जाती है। लेकिन इस बार हादसे ने स्थानीय प्रशासन को कठघरे में खड़ा कर दिया है। इस हादसे ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या धार्मिक उत्सवों में केवल उत्साह की नहीं, बल्कि जिम्मेदार तैयारियों की भी आवश्यकता है?
कौन हैं देवी गुंडिचा और क्या है उनका जगन्नाथजी से संबंध?
पुरी की रथ यात्रा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक परंपरा का प्रदर्शन भी है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा हर वर्ष अपने “मौसी के घर” यानी श्रीगुंडिचा मंदिर जाते हैं। लेकिन यह मंदिर क्यों विशेष है, और देवी गुंडिचा कौन हैं?
देवी गुंडिचा: त्रिदेवों की “मौसी”
देवी गुंडिचा को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मौसी कहा जाता है। किंवदंती के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी रानी गुंडिचा ने अपने पति की अनुपस्थिति में वर्षों तक तप कर मंदिर को जीवित रखा। जब राजा ब्रह्मलोक से लौटे, तो उन्हें न कोई राज्य मिला न परिवार — केवल एक तपस्विनी पत्नी मिली जो अब देवी समान हो चुकी थीं।
भगवान जगन्नाथ ने स्वयं उन्हें “मौसी” कहा और वादा किया कि वे हर वर्ष उनके घर आएंगे, जिससे गुंडिचा मंदिर तीर्थ बन गया।
गुंडिचा मंदिर की आध्यात्मिक महत्ता
गुंडिचा मंदिर, जिसे शक्तिपीठ भी माना जाता है, पुरी मंदिर से लगभग 2.6 किमी दूर स्थित है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का मुख्य पड़ाव यही मंदिर होता है, जहां वे कुछ दिन विश्राम करते हैं। यह यात्रा भक्तों और प्रशासन — दोनों की अग्निपरीक्षा होती है।
परंपरा, आस्था और आधुनिक सुरक्षा के बीच संतुलन की आवश्यकता
रथ यात्रा केवल त्योहार नहीं, बल्कि एक ऐसा आयोजन है जो भारत की सांस्कृतिक एकता, धार्मिक सहिष्णुता और भक्तिपूर्ण श्रद्धा का प्रतीक है। लेकिन इसके साथ ही यह प्रशासन, सुरक्षा एजेंसियों और धार्मिक संस्थाओं के लिए एक चुनौती भी है।
हर वर्ष बदलती भीड़, बढ़ती संख्या और बदलती परिस्थितियों में रथ यात्रा की योजना को और अधिक व्यावहारिक और आधुनिक तकनीकी उपायों से सुसज्जित किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष: श्रद्धा के साथ सुरक्षा भी हो प्राथमिकता
पुरी की रथ यात्रा, लाखों लोगों के विश्वास और भावना की अभिव्यक्ति है। लेकिन जब ऐसी आस्था जनजीवन को प्रभावित करे, और हादसों का कारण बने, तब ज़रूरत होती है धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा प्राथमिकता देने की।
देवी गुंडिचा की कथा और भगवान जगन्नाथ का उनसे संबंध, भारतीय धार्मिक साहित्य का गौरव है। लेकिन इस गौरव को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हमें परंपरा के साथ आधुनिकता को जोड़ने की आवश्यकता है।