
Trump and Putin handshake in Alaska with U.S. and Russian flags, Modi in a phone call frame symbolizing peace diplomacy — Shah Times
Trump–Putin Meeting : मोदी बोले, Dialogue ही रास्ता है
Trump–Putin Meeting पर Modi का Global संदेश: संवाद ही समाधान
अलास्का समिट में ट्रंप–पुतिन मुलाक़ात के बाद पुतिन ने मोदी को कॉल किया। मोदी बोले- संघर्ष का हल सिर्फ़ संवाद और कूटनीति से ही संभव है।
अलास्का में हाल ही में हुई डोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन की मुलाक़ात ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। यह मुलाक़ात ऐसे वक़्त पर हुई जब यूक्रेन जंग अब भी जारी है और लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। मुलाक़ात के तुरंत बाद पुतिन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की और उन्हें बातचीत की पूरी झलक दी। इस कॉल में मोदी ने दोहराया कि इंडिया हर विवाद का हल संवाद और कूटनीति में ही मानता है।
अलास्का समिट: सियासत से ज़्यादा पैग़ाम
ट्रंप और पुतिन की मुलाक़ात से दुनिया को उम्मीद थी कि शायद कोई बड़ा सीज़फ़ायर या शांति समझौता सामने आएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हाँ, एक बात साफ़ हो गई कि अमेरिका ने यूक्रेन मुद्दे पर अपनी पोज़िशन में लचीलापन दिखाया है। ट्रंप ने ज़ेलेंस्की से कहा कि या तो शांति समझौता मान लें या फिर जंग की कीमत चुकाते रहें। साथ ही उन्होंने यह भी क्लियर कर दिया कि अमेरिका अब क्रीमिया को वापस दिलाने की कोशिश नहीं करेगा और न ही यूक्रेन को NATO में शामिल करने पर दबाव डालेगा।
यह मैसेज रूस के लिए एक सियासी जीत जैसा है, क्योंकि क्रीमिया और NATO दोनों ही रूस की पुरानी आपत्तियों से जुड़े मुद्दे हैं। मगर सवाल यह है कि क्या यह लचीलापन यूक्रेन और यूरोप के लिए acceptable होगा।
भारत की भूमिका: शांति का पैग़ाम
पुतिन ने मोदी से कॉल पर जब मुलाक़ात के डिटेल्स शेयर किए तो मोदी ने फिर वही कहा जो इंडिया लगातार कहता रहा है – कि जंग का रास्ता सिर्फ़ dialogue और diplomacy है। मोदी का यह स्टैंड न सिर्फ़ इंडिया की foreign policy की continuity दिखाता है बल्कि यह भी बताता है कि इंडिया आज की multipolar दुनिया में balance of power को लेकर एक responsible approach अपना रहा है।
मोदी ने इस बातचीत में bilateral ties पर भी जोर दिया। इंडिया और रूस के बीच जो Special and Privileged Strategic Partnership है, उसे और गहरा करने पर बात हुई। यह partnership defense, energy, technology और space जैसे critical sectors तक फैली हुई है।
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अमेरिकन पॉलिसी का मोड़
ट्रंप का रुख़ इस बार पहले से अलग है। उन्होंने यह माना कि हर issue पर maximum pressure डालने की strategy कामयाब नहीं होगी। NATO विस्तार का मामला हो या क्रीमिया की वापसी, वॉशिंगटन ने अब backfoot लिया है।
लेकिन यहाँ एक ambiguity भी है – क्या ट्रंप का यह रवैया स्थायी होगा या फिर tactical move। दूसरी बात, क्या यूरोप और यूक्रेन इस compromise को मान लेंगे। अगर ज़ेलेंस्की ने peace deal से इंकार किया तो क्या अमेरिका फिर से hardline पर लौट जाएगा।
इंडिया–रूस रिश्ता: continuity और change
इंडिया और रूस का रिश्ता Cold War के ज़माने से चला आ रहा है। यह partnership सिर्फ़ defense imports तक सीमित नहीं है बल्कि energy cooperation और strategic dialogue तक फैली है।
आज की दुनिया में इंडिया balancing power की तरह काम कर रहा है। एक तरफ़ अमेरिका और यूरोप के साथ economic और strategic ties बढ़ रहे हैं, दूसरी तरफ़ रूस और Global South के साथ historical relations को भी maintain किया जा रहा है। यही वजह है कि इंडिया किसी एक bloc में बंधकर नहीं देखता बल्कि अपनी multi-vector foreign policy के ज़रिए global stage पर neutral और credible voice बना हुआ है।
नतीजा
अलास्का मुलाक़ात ने immediate breakthrough तो नहीं दिया, लेकिन इसने एक नई diplomatic reality को सामने रखा है – कि hardline positions अब soft हो रही हैं। अमेरिका compromise के मूड में है, रूस अपने strategic gains को consolidate करना चाहता है और इंडिया dialogue का झंडा उठा रहा है।
इस पूरी तस्वीर में इंडिया की आवाज़ और अहम हो गई है। मोदी का यह insistence कि “युद्ध का हल सिर्फ़ बातचीत से है” आज की global diplomacy का सबसे ज़रूरी narrative बनता जा रहा है।