
PM Modi and India US trade war with 50% tariff impact on economy and jobs #ShahTimes
भारत पर ट्रंप की आर्थिक चोट, मोदी ने दिया आत्मनिर्भरता का संदेश
मोदी बनाम ट्रंप: टैरिफ टकराव से भारतीय उद्योग पर मंडराया खतरा
ट्रंप का 50% टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था और रिश्तों पर गहरा असर। मोदी की रणनीति, रोजगार संकट और वैश्विक राजनीति का गहन विश्लेषण।
New Delhi,(Shah Times)। आज 27 अगस्त 2025 की सुबह जब भारत में घड़ी ने 9:30 बजाए, तो अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित नया आदेश लागू हो चुका था। भारत के सामानों पर कुल 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया गया। यह केवल आर्थिक झटका नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश और कूटनीतिक दबाव भी है।
भारत के लिए चुनौती दोहरी है—एक तरफ़ निर्यात, रोज़गार और उद्योगों पर सीधा असर, दूसरी तरफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीतिक प्रतिक्रिया।
यह टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर रहा है, वैश्विक व्यापार में इसकी क्या गूंज है और मोदी सरकार इसे किस तरह अवसर में बदलने की कोशिश कर रही है।
टैरिफ किन सेक्टरों पर और कितना
कपड़ा उद्योग: पहले 9% और 13.9%, अब 59% और 63.9%। तिरुपुर, सूरत, लुधियाना प्रभावित।
स्टील, एल्यूमिनियम, कॉपर: 1.7% से 51.7%। 55 लाख मज़दूरों की चिंता।
फर्नीचर और मैट्रेस: 2.3% से 52.3%।
झींगे (Shrimps): पहले शून्य, अब 50%। 15 लाख किसान प्रभावित।
हीरे और सोना: 2.1% से 52%।
मशीनरी: 1.3% से 51.3%।
ऑटो पार्ट्स: 1% से 26%।
छूट वाले क्षेत्र: स्मार्टफोन और दवाइयां फिलहाल बाहर।
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असर: रोज़गार और घरेलू अर्थव्यवस्था
भारत का कपड़ा उद्योग लेबर-इंटेंसिव है, लगभग साढ़े 4 करोड़ लोग इससे जुड़े हैं। 50% टैरिफ के बाद 5–7% नौकरियों पर खतरा है।
तिरुपुर में यूनिट्स ने उत्पादन रोक दिया।
सूरत और लुधियाना में आर्डर कैंसल हुए।
सी-फ़ूड किसान संकट में क्योंकि अमेरिका भारतीय झींगा निर्यात का 40% लेता है।
मोदी सरकार के सामने यह आर्थिक से ज़्यादा राजनीतिक संकट बन गया है।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा: कौन जीतेगा बाज़ार?
अमेरिका में अब भारतीय माल महंगा होगा, जबकि पड़ोसी देशों का सामान सस्ता।
चीन: 30% टैरिफ
वियतनाम: 20%
कंबोडिया: 19%
बांग्लादेश: 20%
यानी भारत के हिस्से का बाज़ार अब ये देश ले सकते हैं। यही कारण है कि भारतीय निर्यातक संगठन FIEO और CITI ने सरकार से राहत पैकेज की मांग की है।
मोदी का रुख: अमेरिकी दबाव के सामने इनकार
जर्मन अख़बार FAZ ने दावा किया कि पीएम मोदी ने ट्रंप के चार फ़ोन कॉल नहीं उठाए। यह स्पष्ट संकेत है कि मोदी अमेरिकी दबाव झेलने को तैयार हैं, मगर झुकने को नहीं।
ट्रंप का मक़सद था कि भारत अपने बाज़ार अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए खोले। मगर मोदी ने कहा था कि भारत किसानों के हितों के लिए दोस्ती की कुर्बानी भी दे सकता है। यही राजनीतिक संदेश अब पूरी दुनिया तक जा रहा है।
फिजी पीएम की टिप्पणी: मोदी की वैश्विक छवि
फिजी के प्रधानमंत्री राबुका ने कहा, “कुछ लोग आपसे खुश नहीं हैं, लेकिन आपका व्यक्तित्व इतना बड़ा है कि आप असहज परिस्थितियों को झेल सकते हैं।”
यह बात दर्शाती है कि मोदी अब केवल भारत के नेता नहीं बल्कि वैश्विक राजनीति में स्वतंत्र आवाज़ के प्रतीक बनते जा रहे हैं।
तेल विवाद और अमेरिका का तर्क
अमेरिका का कहना है कि भारत रूस से तेल खरीदकर रूस की युद्ध मशीन को मज़बूत कर रहा है। मगर सच्चाई यह है कि यूरोपीय यूनियन और खुद अमेरिका भी रूस से कई वस्तुएं खरीदते रहे हैं।
मोदी सरकार का संदेश है:
“भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों पर किसी के दबाव में निर्णय नहीं लेगा।”
क्वॉड बनाम RIC: बदलती ध्रुवीयता
अमेरिका चाहता है कि भारत क्वॉड (India-US-Japan-Australia) में उसकी केंद्रीय भूमिका निभाए।
मगर भारत धीरे-धीरे रूस-इंडिया-चाइना (RIC) समीकरण की ओर झुक रहा है।
अगर यह गठबंधन आकार लेता है, तो हिंद-प्रशांत में अमेरिकी रणनीति कमजोर पड़ जाएगी।
मोदी का संतुलन यही है—अमेरिका को नाराज़ किए बिना RIC और SCO के साथ भी मजबूत रिश्ते।
भारतीय उद्योग संगठनों की मांग
छोटे व्यापारियों और MSMEs को सस्ता कर्ज़
एक साल की मोहलत लोन चुकाने में
प्रभावित कंपनियों को बिना गारंटी लोन
नए FTAs खासकर यूरोप और लैटिन अमेरिका से
ब्रांड इंडिया अभियान को मजबूत करना
मोदी की घरेलू रणनीति
स्वदेशी पर जोर: मोदी ने दुकानदारों से अपील की कि दुकान पर ‘Made in India’ बोर्ड लगाएँ।
मेक इन इंडिया: विदेशी निर्भरता कम करने की कोशिश।
गुणवत्ता सुधार: ताकि भारतीय उत्पाद वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिकें।
घरेलू खपत: मोदी जानते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था घरेलू मांग पर आधारित है, इसलिए आत्मनिर्भरता ही स्थायी रास्ता है।
राजनीतिक असर: मोदी बनाम विपक्ष
यह मुद्दा केवल आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक नैरेटिव भी है।
मोदी समर्थक इसे “राष्ट्रीय स्वाभिमान” बताते हैं।
विपक्ष कह रहा है कि मोदी की कूटनीतिक नीति विफल रही है।
किसानों और कामगारों पर असर से घरेलू राजनीति में दबाव बढ़ सकता है।
2025 के चुनावी परिदृश्य में यह टैरिफ बहस का केंद्रीय मुद्दा बनने वाला है।
संकट या अवसर?
ट्रंप का 50% टैरिफ भारत के लिए तात्कालिक संकट है। मगर मोदी का रुख साफ़ है—न झुकेंगे, न रुकेंगे।
अगर भारत इस मौके पर अपनी उत्पादन क्षमता, घरेलू बाज़ार और नए वैश्विक गठबंधन को मजबूत कर लेता है तो यह झटका भविष्य में आत्मनिर्भर भारत की नींव बन सकता है।