
Glocal University professors recognized in world top 2% scientists list Stanford Elsevier
ग्लोकल यूनिवर्सिटी को वैश्विक मान्यता, दो संकाय सदस्य बने टॉप 2% वैज्ञानिक
स्टैनफोर्ड-एल्सेवियर सूची में ग्लोकल विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसरों का नाम
रिसर्च और इनोवेशन में ग्लोकल यूनिवर्सिटी ने हासिल की अंतरराष्ट्रीय पहचान
ग्लोकल विश्वविद्यालय के दो प्रतिष्ठित संकाय सदस्य — डॉ. मोहम्मद यूसुफ और डॉ. अब्दुल हफ़ीज़ — विश्व के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी–एल्सेवियर सूची में शामिल हुए। यह उपलब्धि विश्वविद्यालय की शैक्षणिक उत्कृष्टता और शोध-उन्मुख परंपरा की वैश्विक मान्यता है।
Saharanpur,(Shah Times) । उच्च शिक्षा और रिसर्च का असली मक़सद सिर्फ़ डिग्री हासिल करना नहीं बल्कि इंसानी समाज की तरक़्क़ी और इल्म की नई राहें खोलना है। ग्लोकल विश्वविद्यालय ने इस हक़ीक़त को साबित करते हुए एक नई मिसाल कायम की है। जब किसी भारतीय विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसर वर्ल्ड्स टॉप 2% साइंटिस्ट्स लिस्ट में शामिल होते हैं, तो यह सिर्फ़ उनकी व्यक्तिगत कामयाबी नहीं बल्कि पूरे मुल्क की अकादमिक पहचान का सबूत है।
भारतीय उच्च शिक्षा की वैश्विक मान्यता
आज की दुनिया में सायंस और एजुकेशन ही असल सॉफ्ट पावर हैं। ग्लोकल यूनिवर्सिटी के दो स्कॉलर्स का नाम इस लिस्ट में आना इस बात का इशारा है कि इंडियन हायर एजुकेशन इंस्टिट्यूशन्स अब सिर्फ़ लोकल नहीं बल्कि ग्लोबल लेवल पर भी अपने रिसर्च से फर्क़ डाल रहे हैं। यह कामयाबी इंडिया के लिए उस विज़न को मज़बूत करती है जहाँ यूनिवर्सिटीज़ को नॉलेज क्रिएशन और ग्लोबल इनोवेशन का सेंटर माना जाता है।
डॉ. मोहम्मद यूसुफ – तजुर्बा और लगातार कामयाबी
रसायन शास्त्र विभाग के डॉ. मोहम्मद यूसुफ का लगातार चौथी बार इस लिस्ट में शामिल होना कोई मामूली बात नहीं। उनके रिसर्च पेपर्स, इंटरनेशनल जर्नल्स में रेफरेंसेज़ और सिटेशन यह दिखाते हैं कि इल्म की दुनिया में उनका अस्र (impact) क़बूल किया गया है। साइंस का असूल यही है कि नए तजुर्बे (experiments), नयी सोच और लगातार मेहनत से दुनिया को आगे बढ़ाया जाए। डॉ. यूसुफ की यह कामयाबी इस फिलॉसफी की बेहतरीन मिसाल है।
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डॉ. अब्दुल हफ़ीज़ – नई पीढ़ी की उम्मीद
फार्मेसी विभाग के नौजवान प्रोफेसर डॉ. अब्दुल हफ़ीज़ का पहली बार इस लिस्ट में शामिल होना, यह बताता है कि नई नस्ल के रिसर्चर भी इंटरनेशनल स्टेज पर अपनी पहचान बना सकते हैं। उनका काम हेल्थकेयर और फार्मास्यूटिकल साइंस में नए आयाम खोल सकता है। यह कहानी उन तमाम नौजवान स्कॉलर्स के लिए उम्मीद की किरण है जो मेहनत और डेडिकेशन के साथ रिसर्च को अपनी जिंदगी का मक़सद बनाते हैं।
ग्लोकल यूनिवर्सिटी का विज़न और रिसर्च कल्चर
ग्लोकल यूनिवर्सिटी का कहना है कि उसकी तालीमी पॉलिसी सिर्फ़ नॉलेज ट्रांसफर नहीं बल्कि रिसर्च और इनोवेशन को भी बराबर अहमियत देती है। यहां का रिसर्च कल्चर स्टूडेंट्स को ग्लोबल कॉम्पिटिशन के लिए तैयार करता है। यूनिवर्सिटी की कोशिश है कि हर स्कॉलर न सिर्फ़ अकादमिक बल्कि सोसाइटी और टेक्नोलॉजी के लिए भी कुछ क़ीमती योगदान दे सके।
सामूहिक मेहनत और अकादमिक टीमवर्क
अतिरिक्त प्रो-चांसलर सैयद निज़ामुद्दीन और प्रो. शिवानी तिवारी का बयान इसी हक़ीक़त को बयान करता है— “यह सिर्फ़ इंफ़्राद (individual) की सक्सेस नहीं बल्कि पूरी यूनिवर्सिटी के कलेक्टिव एफर्ट का नतीजा है।” किसी भी शैक्षिक संस्था की तरक़्क़ी तभी होती है जब हर फैकल्टी, रिसर्चर और स्टूडेंट मिलकर एक साझा मक़सद के लिए मेहनत करें।
भारत की उच्च शिक्षा के लिए सबक़
यह कामयाबी बताती है कि अगर इंडियन यूनिवर्सिटीज़ अपने करिकुलम को रिसर्च-ओरिएंटेड बनाएँ और इंटरनेशनल कोलैबोरेशन पर ज़ोर दें तो उन्हें ग्लोबल पहचान मिल सकती है।
यह एक केस स्टडी है कि कैसे ग्लोकल यूनिवर्सिटी जैसे इंस्टीट्यूशन ने रिसोर्सेस की लिमिटेशन के बावजूद एक रिसर्च-फ्रेंडली कल्चर तैयार किया और दुनिया में अपनी जगह बनाई।
इस तरह की सक्सेस न सिर्फ़ यूनिवर्सिटी बल्कि इंडिया की सॉफ्ट पावर को भी बढ़ाती है, क्योंकि सायंस और एजुकेशन अब इंटरनेशनल डिप्लोमेसी के अहम टूल्स बनते जा रहे हैं।
समाज और टेक्नोलॉजी पर असर
रिसर्च का फायदा सिर्फ़ अकादमिक जगत तक सीमित नहीं रहता। फार्मेसी और केमिस्ट्री के ये रिसर्च समाज में हेल्थकेयर, दवा निर्माण और टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट में सीधा असर डाल सकते हैं। इस तरह ग्लोकल यूनिवर्सिटी का यह कदम पूरे समाज और मुल्क की तरक़्क़ी से जुड़ा हुआ है।
भविष्य की राहआज की ग्लोबल नॉलेज इकोनॉमी में हर यूनिवर्सिटी को सिर्फ़ एजुकेशन का सेंटर नहीं बल्कि रिसर्च और इनोवेशन हब बनना होगा। ग्लोकल यूनिवर्सिटी की यह कामयाबी हमें यह सबक़ देती है कि एजुकेशन + इनोवेशन = ग्लोबल इम्पैक्ट। यही रास्ता भारत को नॉलेज सुपरपावर बनाने की तरफ़ ले जा सकता है।