
Akhand Bharat Diwas and Sardar Patel Jayanti celebrated at Subharti University, in the presence of 101-year-old Azad Hind Fauj soldier Lieutenant R. Madhavan Pillai.
सुभारती विश्वविद्यालय में सरदार पटेल की जयंती और अखंड भारत का संदेश
एकता, राष्ट्रवाद और शिक्षा का संगम: सुभारती का विशेष समारोह
सुभारती विश्वविद्यालय में अखंड भारत दिवस और सरदार पटेल जयंती के अवसर पर देशभक्ति, शिक्षा और एकता का अद्भुत संगम देखने को मिला। 101 वर्षीय लेफ्टिनेंट आर. माधवन पिल्लई की उपस्थिति ने इस आयोजन को इतिहास और वर्तमान के बीच एक जीवंत पुल बना दिया।
📍मेरठ 🗓️ 30 अक्टूबर 2025✍️आसिफ़ ख़ान
सुभारती विश्वविद्यालय, मेरठ में जब 101 वर्षीय लेफ्टिनेंट आर. माधवन पिल्लई मंच पर आए, तो केवल एक अतिथि नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संघर्ष का सजीव अध्याय सामने था। आज़ाद हिंद फ़ौज के इस सिपाही ने “कदम-कदम बढ़ाए जा” गीत गाकर न सिर्फ़ विद्यार्थियों में ऊर्जा भरी बल्कि यह याद भी दिलाया कि आज़ादी किसी किताब का शब्द नहीं, बल्कि एक भाव है — जो तब तक जीवित रहता है जब तक हम उसे समझते और जीते हैं।
शिक्षा संस्थानों का काम सिर्फ़ किताबें पढ़ाना नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा को सशक्त बनाना भी है। यही संदेश सुभारती विश्वविद्यालय ने इस आयोजन के माध्यम से दिया — कि शिक्षा तब सार्थक है जब वह “एकता” और “कर्तव्य” को जनमानस में जीवित रखे।
इतिहास से भविष्य तक की यात्रा
डॉ. अतुल कृष्ण ने जब कहा कि “हम 21 अक्टूबर 2026 तक अखंड भारत के स्वतंत्रता दिवस के संदर्भ में कई कार्यक्रम करेंगे,” तो यह एक साधारण घोषणा नहीं थी। यह शिक्षा जगत की नई भूमिका की रूपरेखा थी — जहाँ विश्वविद्यालय सिर्फ़ डिग्री नहीं, दिशा भी देगा।
आज के दौर में जब युवा पीढ़ी वैश्विक अवसरों में व्यस्त है, ऐसे आयोजनों से उन्हें अपने इतिहास से जोड़ना आवश्यक है। यह कार्यक्रम एक सांस्कृतिक “री-कनेक्ट” था — जिसने विद्यार्थियों को बताया कि आधुनिकता अपनाते हुए भी जड़ों से जुड़ना ही असली राष्ट्रनिर्माण है।
सरदार पटेल की मूर्ति: एक प्रतीक से बढ़कर
लौह पुरुष सरदार पटेल की प्रतिमा का अनावरण केवल एक औपचारिकता नहीं था, बल्कि यह उस विचार का मूर्त रूप था जिसने भारत को एक सूत्र में पिरोया। प्रो.(डॉ.) पी.के. गुप्ता और डॉ. कुमकुम गुप्ता द्वारा दान की गई यह मूर्ति शिक्षा और राष्ट्रसेवा के एक आदर्श गठबंधन का प्रतीक है।
यह बताना ज़रूरी है कि पटेल की नीतियाँ आज भी प्रशासनिक ढांचे की रीढ़ हैं। उनकी “प्रांतीय एकता” की अवधारणा आज के संघीय भारत की नींव है। इसलिए विश्वविद्यालय में उनकी मूर्ति सिर्फ़ लोहे की नहीं, विचारों की भी है।
नेताजी और आज़ाद हिंद फ़ौज की भूमिका
डॉ. अतुल कृष्ण ने अपने भाषण में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भूमिका को विस्तार से रखा। उन्होंने बताया कि बोस का संघर्ष केवल अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ नहीं था, बल्कि भारतीयों के आत्मविश्वास को पुनर्जीवित करने का आंदोलन था।
“एकता, समर्पण और विश्वास”— यह तीन सूत्र वाक्य पिल्लई ने दोहराए और यही किसी भी राष्ट्र की असली रीढ़ हैं।
आज, जब समाज में विचारधाराएँ टकरा रही हैं, तब नेताजी और सरदार पटेल की शिक्षाएँ बताती हैं कि असहमति का अर्थ विभाजन नहीं, संवाद होना चाहिए। यही लोकतंत्र की आत्मा है।





शिक्षा और राष्ट्रवाद का संतुलन
सुभारती विश्वविद्यालय का यह आयोजन शिक्षा और राष्ट्रवाद के सही संतुलन का उदाहरण है। यहाँ देशभक्ति को किसी राजनीतिक रंग में नहीं, बल्कि एक “साझा भारतीय पहचान” के रूप में प्रस्तुत किया गया।
कुलाधिपति स्तुति नारायण कक्कड़ का वक्तव्य — “हमें अपने देश की आज़ादी में योगदान देने वाले वीरों को कभी नहीं भूलना चाहिए” — दरअसल उस नैतिक जिम्मेदारी की याद दिलाता है जिसे आज की पीढ़ी अक्सर सुविधा के कारण भूल जाती है।
संस्कृति से कक्षा तक: एक नई दिशा
सुभारती विश्वविद्यालय की यह पहल सिर्फ़ समारोह नहीं, बल्कि “शैक्षिक राष्ट्रवाद” का एक व्यावहारिक मॉडल है। यहाँ इतिहास को किताबों में बंद नहीं किया गया, बल्कि उसे अनुभव में बदला गया।
यह आयोजन बताता है कि शिक्षा यदि संवेदनशील हो, तो वह सिर्फ़ करियर नहीं, चरित्र भी गढ़ती है। और शायद यही आज के भारत की सबसे बड़ी ज़रूरत है — “सक्षम और सजग युवा।”
कार्यक्रम का समापन “जय हिंद” के नारों से हुआ, लेकिन वास्तव में यह उद्घोष एक आरंभ था — एक ऐसे विचार का जो आने वाली पीढ़ियों को याद दिलाएगा कि भारत केवल सीमाओं का नहीं, संस्कारों का राष्ट्र है।
शिक्षा, एकता और सम्मान — यही त्रिवेणी इस आयोजन में बहती दिखी। और यही वो संदेश है जिसे सुभारती विश्वविद्यालय ने बहुत सादगी से, लेकिन गहराई से देश तक पहुँचाया।






