
आर्थिक अपराधियों की वापसी पर भारत-यूके रिश्तों में नई रफ़्तार
भारत-यूके डिप्लोमेसी: आर्थिक अपराधियों की वापसी पर बड़ी डील की तैयारी
ब्रिटेन की CPS टीम ने तिहाड़ जेल का निरीक्षण किया। भारत ने भरोसा दिलाया कि विजय माल्या-नीरव मोदी जैसे भगोड़ों को सुरक्षित और मानवीय माहौल मिलेगा।
New Delhi, (Shah Times)। आर्थिक अपराध आज वैश्विक व्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं। जब कोई उच्च-प्रोफ़ाइल कारोबारी या राजनैतिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति अपने ही मुल्क में वित्तीय संस्थानों को धोखा देकर अरबों रुपयों का नुकसान करता है और फिर विदेश भाग जाता है, तो यह केवल आर्थिक संकट नहीं बल्कि क़ानूनी और नैतिक संकट भी बन जाता है। भारत में पिछले एक दशक से विजय माल्या, नीरव मोदी और संजय भंडारी जैसे भगोड़ों का मुद्दा न सिर्फ़ अदालतों बल्कि संसद और सड़कों पर भी चर्चा का विषय रहा है।
ब्रिटेन की क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (CPS) ने किया तिहाड़ जेल का निरीक्षण
ब्रिटेन की क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (CPS) की हालिया दिल्ली यात्रा और तिहाड़ जेल का निरीक्षण इसी लंबी प्रक्रिया का हिस्सा है। यह दौरा भारत सरकार की उन कोशिशों का सबूत है जिनमें वह ब्रिटेन की अदालतों को यह विश्वास दिलाना चाहती है कि प्रत्यर्पित किए गए भगोड़ों को यहां इंसाफ़संग और इंसानियत-भरे हालात मिलेंगे।
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तिहाड़ जेल का निरीक्षण: भरोसे की कड़ी
CPS की पांच सदस्यीय टीम ने जुलाई 2025 में तिहाड़ जेल का दौरा किया। यह दौरा दिखाता है कि भारत की सरकार अपने वादों को सिर्फ़ काग़ज़ पर नहीं छोड़ना चाहती बल्कि उसे ज़मीनी स्तर पर साबित करना चाहती है। ब्रिटेन की अदालतें पहले ही कई मामलों में भारत की प्रत्यर्पण याचिकाओं को इस आधार पर खारिज कर चुकी हैं कि तिहाड़ की हालत अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरी नहीं उतरती।
इस पृष्ठभूमि में, टीम को हाई-सिक्योरिटी वार्ड, मेडिकल सुविधाओं और कैदियों के लिए उपलब्ध संसाधनों का जायज़ा कराया गया। जेल प्रशासन ने यहां तक भरोसा दिलाया कि अगर ज़रूरत पड़ी तो विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे हाई-प्रोफ़ाइल आरोपियों के लिए अलग “एन्क्लेव” बनाया जाएगा।
आर्थिक अपराध और वैश्विक राजनीति
भारत सरकार के आँकड़ों के मुताबिक़, वर्तमान में 178 प्रत्यर्पण अनुरोध विदेशी अदालतों में लंबित हैं, जिनमें से लगभग 20 ब्रिटेन में अटके हुए हैं। इनमें सबसे प्रमुख मामले माल्या और नीरव मोदी के हैं।
विजय माल्या पर लगभग 9,000 करोड़ रुपये के बैंक लोन डिफ़ॉल्ट का आरोप है।
नीरव मोदी पंजाब नेशनल बैंक घोटाले में 14,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का आरोपी है।
ये दोनों मामले महज़ वित्तीय घोटाले नहीं बल्कि भारतीय बैंकिंग व्यवस्था की विश्वसनीयता और सरकार की जवाबदेही से भी जुड़े हैं। अगर भारत इन अपराधियों को वापस लाकर अदालतों में पेश करने में सफल होता है, तो यह केवल वित्तीय न्याय नहीं बल्कि वैश्विक मंच पर राजनीतिक और क़ानूनी विश्वसनीयता का प्रतीक भी होगा।
प्रतिवाद और चुनौतियाँ
हालाँकि इस प्रक्रिया में कई गंभीर सवाल भी उठते हैं।
मानवाधिकार की चुनौती: यूरोपीय अदालतें और ब्रिटेन की हाईकोर्ट बार-बार कह चुकी हैं कि भारत की जेलों में भीड़, हिंसा और अपर्याप्त मेडिकल सुविधाएँ गंभीर समस्या हैं।
क़ानूनी पेचीदगियाँ: ब्रिटेन की न्याय प्रणाली अत्यधिक पारदर्शी और जटिल है। एक बार मंजूरी मिलने के बाद भी गोपनीय कानूनी रास्ते (जैसे शरण या मानवाधिकार याचिकाएँ) प्रत्यर्पण को वर्षों तक टाल सकते हैं।
राजनीतिक सवाल: कुछ आलोचकों का मानना है कि भारत सरकार इन मामलों का इस्तेमाल केवल राजनीतिक प्रचार के लिए करती है, जबकि वास्तविक सुधार जेल व्यवस्थाओं या क़ानूनी प्रक्रियाओं में दिखाई नहीं देते।
विश्वसनीयता की कसौटी
भारत सरकार की यह पहल सराहनीय है कि वह ब्रिटिश न्याय प्रणाली को आश्वस्त करने के लिए अपने जेल तंत्र का दरवाज़ा अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण के लिए खोल रही है। लेकिन असली परीक्षा अभी बाकी है।
अगर माल्या, नीरव मोदी या अन्य भगोड़ों को भारत लाकर न्याय के कटघरे में खड़ा किया जाता है, तो यह न केवल भारतीय बैंकों और करदाताओं के लिए न्याय होगा, बल्कि यह संदेश भी देगा कि क़ानून से ऊपर कोई नहीं।
फिर भी, यह सच है कि प्रत्यर्पण केवल क़ानूनी प्रक्रिया नहीं बल्कि राजनयिक संतुलन, मानवाधिकार मानकों और राजनीतिक इच्छाशक्ति की संयुक्त परीक्षा है। आने वाले महीनों में यह साफ़ हो जाएगा कि भारत की कोशिशें वास्तविक सफलता में बदलेंगी या फिर यह भी एक अधूरा वादा बनकर रह जाएगी।