
Election Commission launches Special Intensive Revision of electoral rolls across India
चुनाव आयोग का SIR आदेश, क्या मताधिकार पर संकट मंडरा रहा है?
वोटर लिस्ट SIR पर सियासी घमासान, आयोग बनाम विपक्ष
ECI ने देशभर में वोटर लिस्ट SIR शुरू की। विपक्ष ने नागरिकता जांच की आड़ में मताधिकार पर हमले का आरोप लगाया। जानें पूरी पड़ताल।
SIR पर बहस क्यों ज़रूरी है?
भारत में चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए मतदाता सूचियों की शुद्धता अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन जब चुनाव आयोग द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) का आदेश बिहार के बाद पूरे देश में लागू करने की घोषणा हुई, तो यह निर्णय राजनीतिक बहस और असहमति का केंद्र बन गया।
क्या यह मतदाता सूची को फर्जी और अयोग्य नामों से मुक्त करने की संवैधानिक कवायद है? या फिर विपक्ष के आरोपों की तरह एक बड़े स्तर पर नागरिकता जांच और मताधिकार से वंचित करने की चुपचाप रणनीति?
चुनाव आयोग की मंशा: “मतदाता सूची की अखंडता सर्वोपरि”
चुनाव आयोग ने 24 जून को आदेश जारी किया कि वह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के तहत अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाते हुए पूरे देश में SIR लागू करेगा। आयोग का कहना है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची से फर्जी, मृत, दोहरी प्रविष्टि वाले या अयोग्य नामों को हटाना है।
आयोग के अनुसार, “मतदाता सूची की अखंडता बनाए रखना एक निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव की बुनियादी जरूरत है।”
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बिहार से शुरू, देशभर तक विस्तार
बिहार में इस SIR की शुरुआत पहले ही 25 जून से 26 जुलाई तक के शेड्यूल में हो चुकी है। अब इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा। आयोग का दावा है कि बिहार में इस प्रक्रिया के दौरान अनुमानित 56 लाख नामों को सूची से हटाया जा सकता है, जिनमें:
20 लाख मृतक मतदाता
28 लाख स्थायी पलायन कर चुके
1 लाख अज्ञात
7 लाख दोहरे पंजीकरण वाले
विपक्ष का आरोप: “नागरिकता के नाम पर मताधिकार पर हमला”
विपक्षी दल इस SIR को “नागरिकता की आड़ में मतदाता सूची की सफाई” कह रहे हैं। बिहार विधानसभा और संसद में इस मुद्दे को लेकर भारी विरोध हुआ। विपक्ष का आरोप है कि:
यह मतदाता सूची का पुनरीक्षण नहीं, बल्कि लोगों की नागरिकता की अप्रत्यक्ष जांच है।
इससे लाखों गरीब, प्रवासी और अल्पसंख्यक मतदाताओं को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है।
सरकार ‘बैकडोर NRC’ की तर्ज पर असहमति और हाशिए के समुदायों को निशाना बना रही है।
चुनाव आयोग का जवाब: “क्या फर्जी वोटिंग को बर्दाश्त करें?”
ECI ने एक बयान में कहा, “क्या हमें मृत, फर्जी, दोहरी और विदेशी मतदाताओं को वोट डालने की अनुमति देनी चाहिए? क्या लोकतंत्र की माँ – संविधान – को ताक पर रखकर केवल विरोध के डर से हम फर्जीवाड़े को नजरअंदाज करें?”
आयोग का यह बयान दर्शाता है कि वह अपनी कार्रवाई को राष्ट्रहित और लोकतंत्र की सुरक्षा के रूप में देख रहा है।
SIR प्रक्रिया: पारदर्शिता बनाम संदिग्धता
SIR का उद्देश्य स्पष्ट है – मतदाता सूची की शुद्धता। लेकिन इसकी प्रक्रियात्मक पारदर्शिता और डेटा के आधार पर निर्णय की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
क्या नाम हटाने से पहले पर्याप्त नोटिस और पुन: अपील का अधिकार दिया गया है?
क्या पंचायत स्तर तक प्रशिक्षित कर्मी और स्वतंत्र निगरानी है?
क्या मतदाता को खुद को साबित करने के लिए कठोर दस्तावेजों की जरूरत है?
इन सवालों का जवाब ही तय करेगा कि SIR प्रक्रिया लोकतांत्रिक है या प्रशासकीय नियंत्रण का उपकरण।
विश्लेषण: चिंता जायज़, प्रक्रिया ज़रूरी
मतदाता सूची को अद्यतन करना समय-समय पर आवश्यक होता है। यह एक प्रक्रिया है जिससे चुनावी पारदर्शिता को बनाए रखा जा सकता है। लेकिन जब यह प्रक्रिया किसी विशेष राज्य, भाषा या समुदाय को लक्षित करती प्रतीत हो, तो लोकतांत्रिक चेतना सवाल पूछती है।
यदि आयोग इस प्रक्रिया को पूरी पारदर्शिता और जवाबदेही से करता है, तो यह भारतीय लोकतंत्र की मजबूती है। लेकिन यदि विपक्ष की आशंकाएं सही साबित हुईं, तो यह लोकतांत्रिक अधिकारों पर सबसे बड़ा हमला होगा।
निष्कर्ष: लोकतंत्र में प्रक्रियाओं की शुचिता ही सर्वोच्च
SIR प्रक्रिया अपने उद्देश्य में न्यायसंगत और संवैधानिक हो सकती है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में निष्पक्षता, पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों की रक्षा अनिवार्य है।
विपक्ष को जहां अलर्ट रहना चाहिए, वहीं आयोग को जवाबदेह और संवेदनशील व्यवहार करना होगा। लोकतंत्र विरोधियों को रोकना है, तो नागरिकों का भरोसा जीतना भी ज़रूरी है।