राज्यसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक ( Waqf Amendment Bill ) पर जेपीसी रिपोर्ट पेश होते ही विपक्षी सांसदों ने जताई नाराजगी। मल्लिकार्जुन खरगे ने रिपोर्ट को बताया ‘फर्जी’, तो जेपी नड्डा ने कांग्रेस पर देश विरोधी ताकतों का समर्थन करने का आरोप लगाया।
Waqf Amendment Bill: लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर उठते सवाल
संविधान के तहत संसदीय समितियां किसी भी विधेयक पर गहन विचार-विमर्श कर निष्पक्ष रिपोर्ट पेश करने के लिए बनी हैं। लेकिन जब स्वयं समिति की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होने लगें, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए खतरे की घंटी होती है।
राज्यसभा में पेश हुई वक्फ (संशोधन) विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की रिपोर्ट पर विपक्ष ने कड़ा ऐतराज जताया है। विपक्ष का कहना है कि उनके सदस्यों द्वारा दर्ज किए गए डिसेंट नोट्स (असहमति पत्र) को रिपोर्ट से हटा दिया गया, जो संसदीय नियमों के खिलाफ है।
मल्लिकार्जुन खरगे ने इसे “फर्जी रिपोर्ट” करार देते हुए जेपी नड्डा से इसे दोबारा जेपीसी को भेजने की मांग की। दूसरी ओर, नड्डा ने विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस देश विरोधी ताकतों को मजबूत कर रही है।
यह विवाद केवल वक्फ विधेयक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संसद में विपक्ष की राय को दबाने और असहमति को दरकिनार करने की बढ़ती प्रवृत्ति का प्रतीक है। लोकतंत्र की मूल भावना यही है कि हर पक्ष को अपनी बात कहने का अधिकार मिले। यदि किसी संसदीय रिपोर्ट से असहमति के स्वर को ही मिटा दिया जाए, तो यह गंभीर चिंता का विषय बन जाता है।
सरकार को चाहिए कि वह विपक्ष की आपत्तियों पर ध्यान दे और यदि नियमों का उल्लंघन हुआ है, तो उसे ठीक किया जाए। क्योंकि संसद केवल बहुमत के बल पर नहीं, बल्कि विचार-विमर्श और समावेशिता से चलती है।
राज्यसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक पर हंगामा
गुरुवार को राज्यसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक पर विचार करने वाली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की रिपोर्ट पेश की गई, जिसके बाद सदन में हंगामा मच गया। विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाया कि इस रिपोर्ट में उनके द्वारा दर्ज किए गए डिसेंट नोट्स (असहमति पत्र) को हटा दिया गया है, जो कि असंवैधानिक है।
जेपीसी की रिपोर्ट पेश होने के बाद प्रमुख घटनाक्रम:
बीजेपी सांसद मेधा कुलकर्णी ने रिपोर्ट राज्यसभा में रखी।
विपक्षी दलों ने रिपोर्ट को असंवैधानिक और एकतरफा बताया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इसे “फर्जी रिपोर्ट” करार दिया और इसे दोबारा जेपीसी के पास भेजने की मांग की।
जेपी नड्डा ने विपक्ष पर “तुष्टिकरण और देश विरोधी ताकतों का समर्थन” करने का आरोप लगाया।
खरगे ने बताया ‘फर्जी रिपोर्ट’, नड्डा ने दिया जवाब
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, “यह रिपोर्ट सही नहीं है। हमारी असहमति को दबाया गया है, यह लोकतंत्र की हत्या है।” उन्होंने मांग की कि इस रिपोर्ट को दोबारा जेपीसी को भेजा जाए और असहमति पत्रों को शामिल करके संशोधित रिपोर्ट पेश की जाए।
जेपी नड्डा ने खरगे के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि विपक्ष का उद्देश्य केवल “राजनीतिक लाभ उठाना” है, न कि मुद्दों पर गंभीर चर्चा करना। उन्होंने कहा, “संविधान और संसदीय नियमों का पालन किया गया है। विपक्ष केवल जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है।”
संसदीय परंपरा पर उठते सवाल
इस पूरे घटनाक्रम ने संसदीय प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि यदि असहमति के स्वर को ही हटाया जाएगा, तो संसदीय लोकतंत्र की मूल भावना कमजोर होगी।
वहीं, सरकार का पक्ष है कि जेपीसी की रिपोर्ट नियमों के अनुरूप है और कोई छेड़छाड़ नहीं की गई। अब देखना यह होगा कि विपक्ष की मांगों पर सरकार क्या रुख अपनाती है और क्या इस रिपोर्ट को दोबारा विचार के लिए भेजा जाता है या नहीं।