
Members of Parliament casting votes for Vice President Election 2025 inside Parliament house
उपराष्ट्रपति चुनाव:विपक्ष की एकता बनाम NDA की संख्या, कौन होगा भारी
उपराष्ट्रपति चुनाव : एनडीए बनाम विपक्ष की रणनीतिक जंग
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 में एनडीए बहुमत में, विपक्ष भी संयुक्त उम्मीदवार उतारने की तैयारी में, जानिए पूरा राजनीतिक विश्लेषण।
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: एनडीए की तैयारियों के बीच विपक्ष की रणनीति पर टिकी निगाहें
भारत के संवैधानिक ढांचे में उपराष्ट्रपति का पद न केवल प्रतिष्ठित है, बल्कि राज्यसभा के सभापति के रूप में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। 21 जुलाई को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा दिए गए इस्तीफे के बाद अब यह पद रिक्त है, और निर्वाचन आयोग ने 9 सितंबर को चुनाव की तारीख तय कर दी है। ऐसे में यह चुनाव सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए राजनीतिक समीकरणों का केंद्र बन चुका है।
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चुनाव आयोग की अधिसूचना: प्रक्रिया और समय-सीमा
निर्वाचन आयोग ने गुरुवार को चुनाव की अधिसूचना जारी की, जिसमें नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख 21 अगस्त, दस्तावेजों की जांच 22 अगस्त और नाम वापस लेने की अंतिम तिथि 25 अगस्त तय की गई है। मतदान 9 सितंबर को सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक होगा, और मतगणना उसी दिन होगी।
चुनाव आयोग ने यह अधिसूचना राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम-1952 की धारा 4 की उपधारा (4) और (1) के तहत जारी की है। अधिसूचना जारी होते ही नामांकन की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है।
धनखड़ का इस्तीफा: समय और संकेत
21 जुलाई को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अचानक इस्तीफा दे दिया। हालांकि उनका कार्यकाल अगस्त 2027 तक था, परंतु इस्तीफे के बाद संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार मध्यावधि चुनाव की स्थिति में चुने गए व्यक्ति को नया कार्यकाल (पूर्ण पांच साल) मिलेगा।
विपक्ष का आरोप है कि धनखड़ पर सरकार का दबाव था, जिससे यह इस्तीफा हुआ। यह आरोप इस चुनाव को और अधिक राजनीतिक बना रहा है।
कौन हो सकता है उपराष्ट्रपति? पात्रता और सीमाएं
भारतीय संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति बनने के लिए उम्मीदवार को:
भारत का नागरिक होना चाहिए
न्यूनतम 35 वर्ष की आयु पूरी होनी चाहिए
राज्यसभा सदस्य चुने जाने के योग्य होना चाहिए
वह व्यक्ति किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए, चाहे वह केंद्र सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय निकाय के अधीन हो
यह प्रक्रिया राज्यसभा और लोकसभा — दोनों सदनों के निर्वाचित एवं मनोनीत सदस्यों द्वारा मतदान से पूरी होती है।
नंबर गेम: किसे मिलेगा बहुमत?
दोनों सदनों की कुल प्रभावी सदस्य संख्या 786 है (543 लोकसभा + 243 राज्यसभा, 2 मनोनीत सदस्य)। बशीरहाट लोकसभा सीट खाली है और राज्यसभा की 5 सीटें रिक्त हैं (4 जम्मू-कश्मीर, 1 पंजाब)। यानी प्रभावी मतदाताओं की संख्या 786 में से 780 के आसपास मानी जा रही है।
जीत के लिए आवश्यक वोट: 394
एनडीए का कुल समर्थन:
लोकसभा में 293
राज्यसभा में 129 (मनमानी गणना सहित)
कुल अनुमानित समर्थन: 422+
स्पष्ट है कि संख्याबल के आधार पर एनडीए को बहुमत से कहीं अधिक समर्थन प्राप्त है।
एनडीए की रणनीति: एकजुटता और आंतरिक समन्वय
शिवसेना (शिंदे गुट) ने सार्वजनिक रूप से एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया है। जेडीयू और टीडीपी जैसे सहयोगी दल भी मतदान में भागीदारी के लिए प्रतिबद्ध हैं। हाल ही में अमित शाह, जेपी नड्डा, बीएल संतोष, विनोद तावड़े और सुनील बंसल की बैठक इस बात का संकेत है कि एनडीए संगठनात्मक और राजनीतिक स्तर पर तैयार है।
एनडीए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को उम्मीदवार तय करने का अधिकार दिया है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने यह जानकारी सार्वजनिक रूप से दी।
इससे स्पष्ट संकेत जाता है कि उम्मीदवार के नाम को लेकर एनडीए के अंदर कोई मतभेद नहीं है और उसे एकजुट समर्थन प्राप्त होगा।
विपक्ष की स्थिति: संयुक्त मोर्चे की कवायद
हालांकि विपक्षी गठबंधन INDIA का संख्याबल कमजोर है, लेकिन वह एक संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने की दिशा में प्रयासरत है। विपक्ष के रणनीतिकारों का मानना है कि NDA को टक्कर देने के लिए उन्हें एक ऐसा चेहरा सामने लाना होगा जो वैचारिक रूप से स्पष्ट और नैतिक रूप से मजबूत हो।
राहुल गांधी की डिनर पार्टी, जिसमें विपक्षी नेताओं के बीच टैरिफ से लेकर संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई, उसे एक संभावित रणनीति-चर्चा के रूप में देखा जा रहा है।
विपक्ष इस चुनाव को सत्ता के दबाव के विरुद्ध एक राजनीतिक संदेश देने का मौका भी मान रहा है।
क्या 2022 जैसी जीत दोहराएगा NDA?
2022 में जगदीप धनखड़ ने विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को भारी अंतर से हराया था। अब सवाल है कि क्या NDA 2025 के चुनाव में भी वैसा ही बहुमत जुटा पाएगा?
हालांकि संख्याबल में NDA की स्थिति पहले से बेहतर दिख रही है, लेकिन विपक्ष इस बार सामूहिकता के माध्यम से चुनाव को केवल औपचारिकता तक सीमित नहीं रहने देना चाहता।
राजनीतिक संदेश और आगामी चुनावों पर प्रभाव
इस चुनाव को एक अकेले चुनाव के रूप में नहीं देखा जा रहा है, बल्कि यह आगामी राज्यों के चुनाव और 2026 के आम चुनाव के लिए भी राजनीतिक टोन सेट कर सकता है। यदि विपक्ष एक प्रभावशाली उम्मीदवार पेश करता है और अपेक्षाकृत अधिक वोट प्राप्त करता है, तो यह 2026 के लोकसभा चुनावों से पहले सत्तापक्ष के लिए एक संकेत हो सकता है।
संवैधानिक और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान
हालांकि यह चुनाव संख्या की दृष्टि से शायद पूर्वनिर्धारित हो सकता है, फिर भी भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में यह प्रक्रिया अपने आप में महत्वपूर्ण है। यह केवल एक व्यक्ति के चयन का नहीं, बल्कि संवैधानिक संस्थाओं की साख और जनविश्वास का भी प्रश्न है।
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 एक प्रतीकात्मक चुनाव से अधिक राजनीतिक सशक्तिकरण का माध्यम बनता जा रहा है। जहां एक ओर एनडीए अपनी संगठित और संख्यात्मक शक्ति के बल पर निर्णायक स्थिति में है, वहीं विपक्ष भी यह चुनाव लोकतांत्रिक गरिमा और वैचारिक टकराव के मंच के रूप में देख रहा है।
अब निगाहें दोनों खेमों द्वारा घोषित उम्मीदवारों पर हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह चुनाव केवल जीत-हार का आंकड़ा बनकर रह जाएगा या फिर भारत की लोकतांत्रिक राजनीति को एक नई दिशा देगा।l