
"Saudi Arabia and Pakistan sign Strategic Mutual Defense Agreement in Riyadh, raising questions for India on terrorism and regional security."
सऊदी-पाक डिफेंस पैक्ट पर भारत की पैनी नज़र, ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि में बढ़ा तनाव
भारत के खिलाफ आतंकी हमलों पर सऊदी की ज़िम्मेदारी तय होगी या नहीं?
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने सऊदी अरब का सहारा लिया। क्या यह करार भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को ढकने का नया औज़ार है?
दुनिया की राजनीति में समझौते अक्सर सिर्फ़ काग़ज़ी नहीं होते बल्कि भविष्य के समीकरण तय करते हैं। पाकिस्तान और सऊदी अरब के दरमियान हुआ स्ट्रैटीजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट एक ऐसा ही दस्तावेज़ है जिसने पूरे दक्षिण एशिया और खाड़ी क्षेत्र में नई हलचल पैदा कर दी है।
रियाद के यमामा पैलेस में हुए इस करार का पैगाम साफ़ है—”एक पर हमला, यानी दोनों पर हमला।” लेकिन असली सवाल ये है कि जब पाकिस्तान की ज़मीन से भारत के ख़िलाफ़ आतंकी हमले होते हैं तो क्या सऊदी अरब उनकी गारंटी लेगा?
पाकिस्तान की हकीकत और सुरक्षा की भीख
आर्थिक तंगी, IMF के लोन और चीनी क़र्ज़ के बोझ तले दबा पाकिस्तान इस समय अपनी सुरक्षा और अस्तित्व दोनों के लिए बाहरी सहारे की तलाश में है।
पाकिस्तान की हुकूमत सऊदी सब्सिडी वाले तेल पर निर्भर है।
देश की विदेशी मुद्रा भंडार बेहद कमज़ोर हालत में है।
आतंकी तंज़ीमें (जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद) पाकिस्तानी ज़मीन से भारत पर हमला करने का सिलसिला जारी रखे हुए हैं।
ऐसे हालात में रियाद के साथ “Mutual Defense Pact” इस्लामाबाद के लिए एक आर्थिक संजीवनी और राजनीतिक ढाल बनकर आया है।
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भारत की चिंता: आतंकवाद की गारंटी कौन लेगा?
भारत का अनुभव साफ़ कहता है कि पाकिस्तान “State-sponsored Terrorism” का केंद्र है।
2001 संसद हमला
2008 मुंबई हमला
2019 पुलवामा
2025 पहलगाम हमला
हर बड़ी आतंकी वारदात में पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क और ISI की भूमिका उजागर हुई है। सवाल यह है कि अगर भविष्य में पाकिस्तान से पनपते आतंकी भारत पर हमला करते हैं तो क्या सऊदी अरब जवाबदेह होगा?
करार की कानूनी पेचीदगी
समझौते में लिखा गया है:
“Any aggression against either country shall be considered aggression against both.”
लेकिन Aggression शब्द का मतलब आमतौर पर किसी राज्य या उसके प्रायोजित हमले से लिया जाता है। नॉन-स्टेट एक्टर्स यानी आतंकी गुटों के हमले को इस श्रेणी में लाना मुश्किल है।
यानी साफ़ है कि आतंकवाद जैसे मुद्दों पर यह समझौता अस्पष्ट है।
पाकिस्तान का घरेलू नैरेटिव
इस्लामाबाद की कोशिश है कि इस समझौते को घरेलू स्तर पर “कामयाबी” के तौर पर बेचा जाए।
पाकिस्तानी मीडिया इसे भारत और इज़राइल के लिए “डराने वाला संदेश” बता रहा है।
पूर्व सीनेटर मुशाहिद हुसैन जैसे लोग कह रहे हैं कि “भारत शॉक्ड है।”
पाक सेना “ऑपरेशन सिंदूर” से लगे ज़ख़्मों को ढकने के लिए इसे सुरक्षा छतरी के रूप में पेश कर रही है।
लेकिन हकीकत यह है कि करार की धार आतंकवाद के खिलाफ बहुत कमजोर है।
भारत का जिम्मेदाराना रुख़
भारत ने हमेशा अपने कदम आत्मरक्षा में उठाए हैं:
सर्जिकल स्ट्राइक 2016
बालाकोट एयर स्ट्राइक 2019
ऑपरेशन सिंदूर 2025
नई दिल्ली ने हर बार दिखाया है कि उसकी कार्रवाई आतंकी ठिकानों के ख़िलाफ़ है, न कि नागरिक आबादी के। यही वजह है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिलता रहा है।
सऊदी अरब का असली इम्तिहान
भारत और सऊदी अरब के बीच मजबूत आर्थिक और सुरक्षा रिश्ते हैं:
सऊदी भारत का सबसे बड़ा एनर्जी पार्टनर है।
दोनों देशों के बीच काउंटर-टेररिज़्म कोऑपरेशन पहले से मौजूद है।
रियाद ने पहलगाम हमले की भी निंदा की थी।
तो क्या ऐसी स्थिति में सऊदी अरब भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान का बचाव करेगा? इसकी संभावना बेहद कम है।
भू-राजनीतिक सन्दर्भ
आज पाकिस्तान के पास तीन बड़े सहयोगी हैं—
चीन
तुर्की
सऊदी अरब
जबकि भारत के पास है—
अमेरिका
फ़्रांस
जापान
GCC देशों से गहरे आर्थिक रिश्ते
यानी एक “Multi-polar World Order” में दोनों खेमों की अपनी ताक़तें और कमजोरियां हैं।
विशेषज्ञों की राय
अमेरिकी विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन: “यह समझौता भारत को रोक नहीं पाएगा।”
मुक्तदर खान (डेलावेयर यूनिवर्सिटी): “सऊदी अरब डॉलर और टेक्नोलॉजी से पाकिस्तान को सपोर्ट कर सकता है।”
भारतीय रक्षा विशेषज्ञ शंकर प्रसाद: “भारत को चौकन्ना रहना होगा लेकिन ज़्यादा चिंतित होने की ज़रूरत नहीं।”
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल: “यह करार सऊदी अरब की गंभीर चूक है।”
भारत के लिए रणनीतिक विकल्प
भारत को इस नई स्थिति में तीन बातों पर ध्यान देना होगा:
सैन्य ताक़त का आधुनिकीकरण – क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने के लिए।
डिप्लोमैटिक एंगेजमेंट – सऊदी अरब के साथ संवाद और साझेदारी बढ़ाना।
काउंटर-टेररिज़्म कोऑपरेशन – अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के आतंकी चरित्र को उजागर करना।
नतीजा
पाकिस्तान-सऊदी करार दक्षिण एशिया की राजनीति में एक नई परत ज़रूर जोड़ता है, लेकिन इसकी सीमाएं साफ़ हैं। यह करार “State-level Aggression” के लिए ढाल है, न कि आतंकवाद के लिए।
भारत के लिए यह एक चेतावनी है कि उसे सतर्क रहना होगा और अपने वैश्विक रिश्तों को और मज़बूत करना होगा।
आख़िरकार आतंकवाद की गारंटी कोई भी देश नहीं ले सकता—न सऊदी अरब और न ही पाकिस्तान।




