कुंभ के दौरान कौन से सम्राट करते थे अपनी समस्त धनराशि दान, क्या है इस मेले का इतिहास?

(Shah Times):हमारे भारत की धरती पर बहुत से शूरवीरों और महापुरुषों ने जन्म लिया है। जिनका उल्लेख आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। हमारी बहुत से राजा महाराजाओं ने ऐसे काम किए हैं, जिनका वर्णन आज भी किया जाता है। ऐसे ही एक दानवीर राजा के बारे में हम बताने वाले हैं। कहा जाता है कि यह राजा हर कुंभ में अपनी सारी संपत्ति तब तक दान करते थे जब तक उनका राजकोष पूरी तरह से खाली नहीं हो जाता था। तो चलिए जानते हैं कौन थे वह महान सम्राट?

प्रयागराज की धरती पर इस समय सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन महाकुंभ चल रहा है, और देश-विदेश से आए साधु-संत, संन्यासी और श्रद्धालु पवित्र त्रिवेणी संगम पर आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। वहीं कुछ लोग कल्पवास भी कर रहे हैं। कुंभ दान-पुण्य, मोक्ष प्राप्ति और पापों से मुक्ति का श्रेष्ठ अवसर होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज जिस आयोजन को दुनिया का सबसे विशाल धार्मिक आयोजन कहा जाता है उसकी शुरुआत आखिर किसने की थी।

वेद-पुराणों में भी है कुंभ का जिक्र

कुंभ का जिक्र वैसे तो वेद-पुराणों में भी वर्णित है। लेकिन मेले के रूप में कुंभ के आयोजन की शुरुआत राजा हर्षवर्धन के द्वारा मानी जाती है। इतिहासकारों की माने तो 16 वर्ष की आयु में राजा बने हर्षवर्धन ने कुंभ मेले की शुरुआत कराई थी। इतना ही नहीं वे हर साल में कुंभ में अपनी सारी संपत्ति दान कर दिया करते थे और तब तक दान करते थे जब तक उनके पास का सब कुछ समाप्त न हो जाए। इन सभी बातों का जिक्र इतिहासकार केसी श्रीवास्तव ने अपनी किताब ‘प्राचीन भारत का इतिहास’ में किया है।

कौन थे सम्राट हर्षवर्धन

जानकारी के अनुसार सम्राट हर्षवर्धन 7वीं शताब्दी के एक महान भारतीय शासक थे जो अपनी उदारता, धर्मपरायणता और प्रजा के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते हैं. वे 606 ईस्वी से 647 ईस्वी तक शासन करते रहे और उनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान उत्तर प्रदेश) थी। आज कुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला कहलाता है। बता दें कि भारत का आखिरी महान सम्राट हर्षवर्धन कुंभ के दौरान जमकर दान करते थे। लेकिन ये बात कम लोग जानते हैं कि वो दान से पहले भगवान सूर्य, शिव और बुध की उपासना किया करते थे। ऐसा बताया गया है कि वो दान को चार भागों में बांटते थे, पहला शाही परिवार फिर सेना/प्रशासन इसके बाद धार्मिक निधि और अंत में गरीबों के लिए वो अपना सारा धन लुटा दिया करते थे। साक्ष्यों के आधार पर इस 2000 वर्ष पुराने धार्मिक मेले का महत्व समय के साथ-साथ और भी बढ़ता जा रहा है।

कैसे शुरू ही कुंभ में दान की परंपरा

बताया जाता है कि सम्राट हर्षवर्धन हर पांच साल में कुंभ मेले के अवसर पर संगम (प्रयागराज) में अपनी समस्त संपत्ति दान कर देते थे। यह भी कहा जाता है कि वह दान करने के बाद केवल एक वस्त्र रख लेते थे। उनके दान का उद्देश्य धर्म और समाज की भलाई करना था। ये परंपरा उनके न्यायप्रिय शासन और समाज के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाती है। राजकोष दान करने की कहानियां बेहद दिलचस्प हैं। राजा हर्षवर्धन ने ये सुनिश्चित किया कि उनकी संपत्ति से धर्म और समाज को लाभ पहुंचे। चीनी यात्री ह्वेनसांग जो उनके शासनकाल में भारत आए थे उन्होने भी हर्षवर्धन के इस दान का उल्लेख किया है। उनके अनुसार सम्राट ने अपनी संपत्ति तब तक दान की जब तक राजकोष पूरी तरह से खाली नहीं हो गया।

कुंभ का सबसे पहला लिखित वर्णन

वेद-पुराणों में कुंभ का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार जिन स्थानों पर सागर मंथन के दौरान निकले अमृत कलश की बूंदे गिरी थी, वहीं कुंभ का आयोजन होता है। वहीं इतिहासकारों द्वारा इतिहास में दर्ज कुंभ मेले के पुराने लिखित साक्ष्यों के अनुसार, इसका इतिहास 2000 साल पुराना माना जाता है। कुंभ का जिक्र चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने राजा हर्षवर्धन के समय यानि छठी शताब्दी ईसवी में बताया है। ह्वेनसांग ने कन्नौज में आयोजित भव्य सभा का उल्लेख किया है, जिसमें हजारों भिक्षु हिस्सा लेते थे और हर पांच साल में महामोक्ष हरिषद नाम के धार्मिक उत्सव का आयोजन करते थे।