
भारत के इतिहास में ऐसी सरकार है जो अपने उद्योगपतियों की चिंता करती है बस बाकी कौन मर रहा है या कौन मरने को मजबूर हो रहा है इसकी चिंता सरकार को नहीं है एक तरफ़ तो नीट की परीक्षा में पेपर लीक होने की बात से इंकार कर रही है
लखनऊ,(Shah Times)। पेपर लीक आम होता जा रहा मेहनत करके भी सफल होने की कोई उम्मीद नहीं। भारत के इतिहास में ऐसी सरकार है जो अपने उद्योगपतियों की चिंता करती है बस बाकी कौन मर रहा है या कौन मरने को मजबूर हो रहा है इसकी चिंता सरकार को नहीं है एक तरफ़ तो नीट की परीक्षा में पेपर लीक होने की बात से इंकार कर रही है वही गुजरात पुलिस ऐसे आरोपियों को गिरफ्तार करने का दावा करती है कौन गलत है सरकार या पुलिस और पुलिस भी गुजरात की अगर किसी ऐसे राज्य की होती जहां मोदी की भाजपा वाला रामराज्य नहीं है ।
सरकार भले ही पेपर लीक की बात स्वीकार न करे लेकिन सारे बच्चे जिन्होंने NEET की परीक्षा में भाग लिया है, वह यह मानने को मजबूर हैं कि परीक्षा में जमकर धांधली हुई है पच्चीस लाख नवयुवकों का भविष्य अंधकारमय होने को है और अडानी अम्बानी की फिक्र में दुबली हुईं जा रही है कि उनको कैसे दुनिया का नंबर वन अमीर बनाया जा सकता हैं।
आईएएस बनने के लिए होने वाली परीक्षा यूपीएससी सिविल सेवा का पेपर आउट नही होता है, तो फिर दूसरी परीक्षाओं का क्यों होता है ? क्या इसमें वह सिस्टम शामिल है, जो सरकार के समानांतर काम कर रहा है ? क्या नकल माफिया शामिल है ? या सरकार खुद शामिल है या इसके लिए बच्चे स्वयं दोषी हैं, जिन्होंने अच्छे भविष्य का सपना देखा सवाल बहुत सारे हैं लेकिन किसी का कोई जवाब नही क्या सरकार सभी युवाओं को खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने जा रही है वैसे अच्छा ही होता कम से कम पढ़ाई और भविष्य की चिंता से तो निजात मिल जाती जब भी कोई पेपर आउट होता है तो पुलिस साल्वर टाइप के छोटे लोगों को गिरफ्तार करके अपनी पीठ थपथपा लेती है, लेकिन नकल का सिंडिकेट चलाने वालों पर कोई कार्रवाई नही होती है लगातार हो रही नवयुवकों की आत्म हत्या के लिए जिम्मेदार कौन है ?
अब तो ऐसा लग रहा है कि बच्चों को परीक्षा की तैयारी करने के साथ धरना-प्रदर्शन की भी ट्रेनिंग लेनी चाहिए जिससे वे पेपर आउट होने के बाद एक अकेला सब पर भारी अहंकारी सरकार के ध्यानाकर्षण हेतु प्रोटेस्ट कर सकें मोदी सरकार से भरोसा उठना हताशा व निराशा के साथ-साथ व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह के भाव आना भी खतरनाक संकेत हैं। मोदी सरकार को अडानी अम्बानी की नाव से उतर कर बच्चों के लिए भी सोचना चाहिए।