
The history of Aurangzeb's tomb and its journey from simplicity to decoration. Know why Aurangzeb chose Khuldabad as his final resting place, how much money was spent, and how Lord Curzon decorated it. The full story of Aurangzeb's spiritual journey and his will
औरंगजेब (Aurangzeb)की कब्र का इतिहास और उसकी सादगी से सजावट तक की यात्रा। जानें क्यों औरंगजेब ने खुल्दाबाद को अपना अंतिम विश्राम स्थल चुना, कितना पैसा खर्च हुआ, और कैसे लॉर्ड कर्जन ने इसे सजाया। औरंगजेब की आध्यात्मिक यात्रा और उसकी वसीयत की पूरी कहानी।
नई दिल्ली (शाह टाइम्स) मुगल बादशाह औरंगजेब (Aurangzeb) की कब्र को लेकर महाराष्ट्र की राजनीति में गर्मागर्म बहस छिड़ी हुई है। औरंगजेब ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में एक साधारण कब्र बनवाने की इच्छा जताई थी, लेकिन 20वीं सदी में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन ने इसे सजाने का काम किया। आखिर क्यों औरंगजेब ने खुल्दाबाद को अपना अंतिम विश्राम स्थल चुना और उसकी कब्र पर कितना पैसा खर्च हुआ? इस सवाल का जवाब औरंगजेब के जीवन और उसकी आध्यात्मिक यात्रा में छिपा है।
औरंगजेब का खुल्दाबाद से नाता
औरंगजेब ने दौलताबाद में रहते हुए सैयद जैनुद्दीन दाऊद शिराजी को अपना गुरु माना था। शिराजी चिश्ती परंपरा के संस्थापक थे और उनकी शिक्षाओं ने औरंगजेब को गहराई से प्रभावित किया। शिराजी का जन्म ईरान के शिराज शहर में हुआ था, और वे दिल्ली होते हुए दौलताबाद पहुंचे थे। औरंगजेब ने खुल्दाबाद को अपना अंतिम विश्राम स्थल इसलिए चुना क्योंकि यह शिराजी की कब्र के नजदीक था।
1658 में बादशाह बनने के बाद भी औरंगजेब 1681 में दक्कन लौट आया। उसने अहमदनगर के किले को अपना ठिकाना बनाया और अपने आखिरी दिनों में एक साधारण कब्र बनवाने की इच्छा जताई।
कब्र बनाने में कितना पैसा खर्च हुआ?
औरंगजेब ने अपनी वसीयत में स्पष्ट निर्देश दिया था कि उसकी कब्र पर सिर्फ़ वही पैसा खर्च किया जाए, जो उसने खुद कमाया था। वह टोपियाँ सिलकर और कुरान लिखकर पैसा कमाता था। उसने अपनी कब्र पर सिर्फ़ 4 रुपये और 2 आने खर्च करने का आदेश दिया था। यह पैसा उसने अपने महल के पहरेदारों के पास रख दिया था। औरंगजेब ने यह भी कहा था कि उसकी कब्र पर छायादार पेड़ न लगाए जाएं।
लॉर्ड कर्जन ने कब्र को सजाया
1904-05 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन ने औरंगजेब की कब्र को देखा और इसकी सादगी से प्रभावित हुए। उन्होंने कब्र के चारों ओर संगमरमर का काम करवाया, ग्रिल लगवाई और इसे सजाने का काम किया। यह काम औरंगजेब की इच्छा के विपरीत था, लेकिन इसने कब्र को एक नया रूप दे दिया।
औरंगजेब की आखिरी इच्छा
औरंगजेब ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपने पिछले पापों को याद किया और अपने बेटों के बीच सल्तनत का बंटवारा कर दिया, ताकि वे आपस में न लड़ें। उसकी कब्र की सादगी उसकी आध्यात्मिक सोच और गुरु शिराजी के प्रभाव को दर्शाती है।
आज औरंगजेब की कब्र न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि उसकी सादगी और आध्यात्मिकता की गवाह भी है।