नई दिल्ली (शाह टाइम्स): नए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को अंतिम रूप देने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति अगले सप्ताह की शुरुआत में बैठक करेगी। मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार का कार्यकाल 18 फरवरी को समाप्त हो रहा है। सूत्रों के मुताबिक चयन समिति में पीएम, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और पीएम द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे। यह बैठक 16 या 17 जनवरी को हो सकती है।
कौन करेगा नियुक्ति
सर्च कमेटी द्वारा शॉर्टलिस्ट किए गए नामों को बैठक में रखा जाएगा। चयन समिति एक नाम को अंतिम रूप देकर उसकी सिफारिश करेगी। समिति की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करेंगे। मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के बाद सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार हैं, जिनका कार्यकाल 26 जनवरी 2029 तक है। दूसरे चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू हैं।
यह है जरूरी योग्यता
केंद्र सरकार ने चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023 लागू किया था। इसके तहत पीएम, विपक्ष के नेता और पीएम द्वारा नियुक्त एक केंद्रीय मंत्री वाली तीन सदस्यीय समिति चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की सिफारिश करेगी। इससे पहले सर्च कमेटी पांच नामों को शॉर्टलिस्ट करती है। इनमें से एक नाम मुख्य चुनाव आयुक्त के लिए चयन समिति द्वारा फाइनल किया जाता है। कानून के मुताबिक उम्मीदवार भारत सरकार का सचिव स्तर का अधिकारी होना चाहिए या रह चुका हो। वह ईमानदार, निष्पक्ष और चुनाव प्रबंधन और संचालन का अनुभव रखने वाला व्यक्ति होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट में कब है सुनवाई
चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए बने नए कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 19 फरवरी को सुनवाई करेगा। 2023 के कानून के तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को हटा दिया गया था। नए कानून के तहत नियुक्ति समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री को शामिल किया गया है।
किसको दिया गया अधिकार?
याचिकाकर्ता ने कहा कि 2023 के कानून ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया से सीजेआई को हटा दिया और यह अधिकार प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री की समिति को दे दिया। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि चुनाव आयोग को राजनीतिक और कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाना चाहिए, ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो सकें।