
More than 2 lakh Indians gave up citizenship. Know the reasons, government's response and its political-social implications for the country.
नागरिकता छोड़ना क्यों बना आम? भारत की सामाजिक-आर्थिक चुनौती
भारत में नागरिकता छोड़ने वालों की बढ़ती संख्या: क्या है सरकार की रणनीति?
2024 में 2 लाख से अधिक भारतीयों ने नागरिकता छोड़ी। जानिए कारण, सरकार की प्रतिक्रिया और इसके देश के लिए राजनीतिक-सामाजिक प्रभाव।
भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों की बढ़ती संख्या: सरकार का जवाब और इसके राजनीतिक-सामाजिक आयाम
भारत के लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में जब भी संसद में सवाल उठते हैं, तो वे अक्सर देश के भविष्य, जनमानस की चिंताओं और राष्ट्रीय हितों से जुड़े होते हैं। हाल ही में मानसून सत्र के दौरान कांग्रेस सांसद के.सी. वेणुगोपाल ने एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण सवाल उठाया — पिछले पांच वर्षों में कितने भारतीय नागरिकों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है? इस सवाल के जवाब में विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने लोकसभा में जानकारी दी कि साल 2024 में भारत के लगभग दो लाख से अधिक नागरिकों ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ दी है।
यह आंकड़ा जितना चौंकाने वाला है, उतना ही चिंताजनक भी, क्योंकि यह हमारे देश के युवाओं और परिवारों के बीच नागरिकता की छूट की प्रवृत्ति को दर्शाता है। आइए इस विषय पर गहराई से चर्चा करें कि भारतीय नागरिकता छोड़ने के पीछे क्या कारण हैं, इसका देश के लिए क्या मतलब है, और सरकार इस पर क्या दृष्टिकोण रखती है।
नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या और सरकार की आधिकारिक जानकारी
विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने बताया कि भारत की नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या पिछले पांच वर्षों में तेजी से बढ़ी है। 2020 में यह संख्या 85,256 थी, जो 2021 में 1,63,370, 2022 में 2,25,620, 2023 में 2,16,219 और 2024 में 2,06,378 तक पहुंच गई। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारत छोड़ने या अन्य देशों की नागरिकता अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
अगर पिछले दशक पर नजर डालें तो 2011 से 2014 के बीच भी सालाना लगभग 1.2 लाख से 1.3 लाख लोग भारतीय नागरिकता छोड़ चुके थे। लेकिन अब की तुलना में तब यह संख्या कम थी। इस वृद्धि को भारतीय युवाओं और परिवारों की बदलती प्राथमिकताओं के संदर्भ में समझना आवश्यक है।
क्यों छोड़ रहे हैं भारतीय अपनी नागरिकता?
सरकार ने स्पष्ट किया है कि भारतीय नागरिकता छोड़ने के कारण व्यक्तिगत होते हैं और इन्हें केवल संबंधित व्यक्ति ही ठीक से बता सकता है। हालाँकि मीडिया रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों के मुताबिक कुछ प्रमुख कारण सामने आते हैं:
बेहतर जीवन स्तर और आर्थिक अवसर: अधिक विकसित देशों में बेहतर वेतन, कर लाभ, और उन्नत कारोबारी माहौल लोगों को आकर्षित करता है।
शिक्षा: विदेशी देशों के उच्च शिक्षा संस्थान, बेहतर कोर्स और अंतरराष्ट्रीय स्तर की शिक्षा के कारण परिवार अपने बच्चों के लिए नागरिकता बदलना पसंद करते हैं।
स्वास्थ्य सेवाएं और जीवनशैली: बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ, सामाजिक सुरक्षा, और बेहतर जीवनशैली भी बड़ी वजह हैं।
परिवार और स्थायी निवास: विदेश में परिवार या रिश्तेदार होने पर या दीर्घकालिक प्रवास के कारण भी लोग भारतीय नागरिकता छोड़ते हैं।
दोहरी नागरिकता न होने का नियम: भारत में दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं है, इसलिए विदेशी नागरिकता लेने के लिए भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ती है।
इन कारणों की विविधता दर्शाती है कि यह केवल आर्थिक या सामाजिक वजहें नहीं, बल्कि व्यक्तिगत प्राथमिकताएं और पारिवारिक स्थितियां भी शामिल हैं।
प्रवासी भारतीय: देश के लिए संसाधन या चुनौती?
विदेश राज्य मंत्री ने संसद में यह भी बताया कि वर्तमान में विश्वभर में लगभग 3.43 करोड़ भारतीय और भारतीय मूल के लोग रहते हैं। इनमें से करीब 1.71 करोड़ अनिवासी भारतीय (NRI) और लगभग 1.71 करोड़ प्रवासी भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) हैं। ये प्रवासी भारतीय भारत के लिए ‘सॉफ्ट पावर’ का एक बड़ा स्रोत हैं।
सरकार का मानना है कि सफल और समृद्ध प्रवासी भारतीय देश के लिए बहुमूल्य संपत्ति हैं। वे देश के ज्ञान, व्यापार, और तकनीकी विकास में योगदान देते हैं। इसलिए सरकार प्रवासी भारतीय समुदाय के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रही है ताकि उनकी उपलब्धियों और संसाधनों का लाभ राष्ट्रीय हित में उठाया जा सके।
यह दृष्टिकोण देश की वैश्विक छवि सुधारने और विदेशों में बसे भारतीयों को देश से जोड़ने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
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राजनीतिक दृष्टिकोण और राष्ट्रीय चिंताएं
भारतीय नागरिकता छोड़ने की इस बढ़ती प्रवृत्ति ने राजनीतिक गलियारों में भी बहस छेड़ दी है। विपक्षी दल इसे सरकार की नीतियों की असफलता बता रहे हैं, जबकि सत्ता पक्ष इसे वैश्विक आधुनिकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संकेत मान रहा है।
विपक्ष का कहना है:
भारत में रोजगार के अवसर कम हैं, खासकर युवाओं के लिए।
शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत क्षेत्रों में सरकार की नीतियां प्रभावी नहीं रहीं।
आर्थिक असमानता और सामाजिक तनाव बढ़े हैं, जिसके कारण लोग बेहतर जिंदगी की तलाश में विदेश जाते हैं।
सरकार की प्रतिक्रिया:
वैश्विक आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य बदल रहा है, लोग व्यक्तिगत अवसरों के लिए विदेश जा रहे हैं।
भारत की आर्थिक प्रगति और वैश्विक संबंध मजबूत हो रहे हैं, जिससे देश के लिए बहुमुखी लाभ हो रहे हैं।
प्रवासी भारतीयों के नेटवर्क को देश की विकास रणनीतियों में शामिल किया जा रहा है।
यह बहस देश के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सवाल उठाता है कि क्या भारत अपने युवाओं और परिवारों को इतना अवसर प्रदान कर पा रहा है कि वे देश में ही अपने सपनों को पूरा कर सकें?
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
जब नागरिक बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकता ग्रहण कर लेते हैं, तो इसका असर कई स्तरों पर पड़ता है:
मानसिक और सामाजिक प्रभाव:
अपने देश की नागरिकता छोड़ना किसी व्यक्ति के लिए भावनात्मक रूप से कठिन होता है। यह संकेत देता है कि लोग अपने देश में रहने या उसे नागरिकता के रूप में स्वीकार करने को कम महत्व देने लगे हैं। इससे राष्ट्रीय एकता और सामाजिक ताने-बाने पर असर पड़ सकता है।
आर्थिक प्रभाव:
प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजे गए रेमिटेंस भारत की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद हैं। लेकिन यदि यह प्रवास स्थायी हो जाता है, तो भारत को युवाओं की कमी और कौशल पलायन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
राजनीतिक प्रभाव:
कई बार विदेशी नागरिकता ग्रहण करने वाले भारतीयों का राजनीतिक संबंध देश से कमजोर हो जाता है, जिससे वे चुनावों या अन्य नागरिक दायित्वों में हिस्सा नहीं ले पाते।
वास्तविकता:
भारत में दोहरी नागरिकता नहीं होने के कारण, विदेश में स्थायी निवास के लिए नागरिकता छोड़नी पड़ती है। इसलिए यह समस्या व्यक्तिगत प्राथमिकताओं और कानूनी बाध्यताओं का परिणाम भी है।
सरकार के लिए सुझाव और आगे की राह
भारत को चाहिए कि वह अपने युवाओं को देश में ही बेहतर अवसर दे, ताकि वे नागरिकता छोड़ने के बजाय देश में ही अपनी पहचान बनाए रखें। इसके लिए कुछ जरूरी कदम हो सकते हैं:
रोजगार और उद्यमिता: युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर और स्टार्टअप इकोसिस्टम को मजबूत करना।
शिक्षा सुधार: विश्व स्तरीय शिक्षा संस्थानों की संख्या बढ़ाना और उच्च शिक्षा के लिए विदेशी छात्रों को आकर्षित करना।
स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार: सभी वर्गों के लिए बेहतर और किफायती स्वास्थ्य सेवाएं।
द्वैध नागरिकता या विशेष नागरिकता: प्रवासी भारतीयों के लिए कुछ विशेष नागरिकता अधिकार देना, जिससे उनका देश से जुड़ाव बना रहे।
प्रवासी भारतीयों के लिए नेटवर्किंग: वैश्विक भारतीय समुदाय के साथ मजबूत संपर्क बनाए रखना और उनकी सफलता को देश के हित में उपयोग करना।
नतीजा
भारत की नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या में वृद्धि देश के लिए एक चेतावनी भी है और एक अवसर भी। यह चेतावनी है कि हमें अपनी नीतियों, युवाओं के लिए अवसरों और सामाजिक-आर्थिक माहौल पर ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही यह अवसर भी है कि हम वैश्विक भारतीय समुदाय के अनुभव और संसाधनों को राष्ट्रीय विकास के लिए प्रभावी रूप से जोड़ें।
सरकार ने सही कहा है कि सफल, समृद्ध और प्रभावशाली प्रवासी भारतीय देश की बड़ी संपत्ति हैं। यदि हम उनकी क्षमताओं और नेटवर्क को सही दिशा में उपयोग करें, तो भारत विश्व स्तर पर अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है।
हालांकि, देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह अपने नागरिकों को ऐसा अवसर और सम्मान दे कि वे अपनी मातृभूमि की नागरिकता छोड़ने की बजाय, गर्व से उसे अपनाएं और अपने सपनों को यहीं पूरा करें।