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इंडिया गठबंधन का इतना राजनीतिक दबाव केंद्र सरकार पर पड़ा कि उसने एक देश, एक चुनाव का नारा लगा दिया

रोहिताश सिंह वर्मा
देश में इस समय सारे मुद्दों को पीछे छोड़ते हुए एक देश, एक चुनाव पर चर्चा जोरों से चल रही है। इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक समिति का गठन भी कर दिया गया है, जिसने अपना काम शुरू भी कर दिया है। एक देश, एक चुनाव की जरूरत सरकार को क्यों पड़ी और इसे क्यों लागू करना चाहती हे, इस पर गौर करने की जरूरत है। दरअसल विपक्ष के एलाइंस ‘इंडिया गठबंधन’ से मोदी सरकार की नींद उड़ गई है। या ये कहें कि इंडिया गठबंधन का इतना राजनीतिक दबाव केंद्र सरकार पर पड़ा कि उसने एक देश, एक चुनाव का नारा लगा दिया। सरकार अब इस बिल को लागू करने के लिए बहुत ज्यादा जल्दी में है।
इसीलिए उसने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा की है। संभव है कि इसी सत्र में सरकार एक देश, एक चुनाव अध्यादेश को मंजूरी दे दे। अगर ऐसा हुआ तो केंद्र को राज्यों में विपक्ष की सरकार भंग करके नए चुनाव कराने का अधिकार मिल जाएगा। इस समय भाजपा की हालत ये है कि राज्यों में वह कमजोर हुई है। बीजेपी को राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जीत की कोई उम्मीद नहीं है। हालांकि विपक्ष ने अभी से इस बिल का विरोध करना शुरू कर दिया है। विपक्ष के हो-हल्ले का केंद्र पर कितना असर होगा, यह आने वाला समय बताएगा। यदि एक देश, एक चुनाव फार्मूला लागू किया जाता है, तो यूपी, कर्नाटक व पंजाब जैसे पांच राज्यों में समय से पहले चुनाव हो जाएंगे। लोकसभा चुनाव के बाद बाकी ढाई साल बाद शेष राज्यों में विधानसभा चुनाव करा दिए जाएंगे। इसके हिसाब से 2026 के बीच में बाकी बचे राज्यों में चुनाव हो सकते हैं। कर्नाटक में चुनाव के बाद विपक्ष को आभास हो गया था कि राज्यों के चुनाव में बीजेपी को हराया जा सकता है। इसके बाद विपक्ष ने एकजुटता की प्रक्रिया शुरू कर दी। कर्नाटक नतीजों से पहले ही बिहार के सीएम नीतीश कुमार दिल्ली में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस के बड़े नेताओं से मिल चुके थे। इसके बाद एक अगस्त तक विपक्ष की तीन बैठकें हुईं, जिनमें सरकार पर दबाव बनाने की प्रक्रिया जारी रही। अब तेरह सदस्यों की कमेटी बना दी गई है, जिससे सरकार पर दबाव और ज्यादा बढ़ गया है। 1983 में भी चुनाव आयोग ने ऐसा ही एक प्रस्ताव रखा था, जिसे तत्कालीन सरकार ने नहीं माना था। 1999 में विधी आयोग ने एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें कहा गया था कि देश में एक साथ चुनाव हो सकते हैं। 2022 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र ने कहा था कि इसके लिए चुनाव आयोग तैयार है, लेकिन इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा। यानि अगर उनकी बात को सही मान लिया जाए, तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा, कि सरकार ने संसद का विशेष सत्र संविधान में संशोधन के लिए ही बुलाया हो।
जहां तक पूर्व राष्ट्रपति के नेतृत्व में गठित समिति का है, तो ये समिति संविधान, जन प्रतिनिधि अधिनियम और किसी भी अन्य कानून की समीक्षा करेगी। इसके बाद विशिष्ट संशोधनों की सिफारिश करेगी, जिनकी एक साथ चुनाव कराने की जरूरत होगी। समिति इस बात की समीक्षा भी करेगी कि क्या संविधान में संशोधन के लिए राज्यों की मंजूरी की जरूरत होगी। समिति त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव का विश्लेषण और संभावित समाधान भी सुलझाएगी। इस समय राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड , पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और दिल्ली में इंडिया गठबंधन की सरकारें हैं। राजस्थान व छत्त्तीसगढ़ को छोड़कर अन्य राज्यों में चुनाव के लिए एक साल से अधिक का कार्यकाल है। दिल्ली में फरवरी 2025, बिहार में नवंबर 2025, केरल, तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल में मई 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन आठ राज्यों में से छह में बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी है। चूकि अप्रैल 2023 के बाद से देश में राजनीतिक हालात बदले हैं। भाजपा-कांग्रेसी की प्रतिद्वंद्विता बढ़ गई है। जो एनडीए बनाम इंडिया में बदल चुकी है। जनता में अभी से 2024 के चुनाव और राजनीतिक हालातों पर चर्चा होने लगी है। अब देखना ये है कि सरकार संसद के विशेष सत्र में क्या-क्या कर सकती है। वह जनता के लिए कुछ जरूरी कानून बनाएगी, या अपनी विपक्षी पार्टियों के खिलाफ कोई अन्य रणनीतिक कदम उठाती है। सरकार कुछ भी कहे या करे, इतना तय है कि इस बार इंडिया गठबंधन ने उसे तगड़ी चुनौती दी है।