
Indian Army soldiers alongside Russian troops in Zapad-2025 military exercise with Indian and Russian flags, NATO symbol faded in background | Shah Times
यूक्रेन जंग के साए में भारत की रूस संग सैन्य मौजूदगी, पश्चिम में हलचल
भारतीय सेना की मौजूदगी ने NATO और अमेरिका को चौंकाया
भारत ने रूस और बेलारूस संग ‘जापद 2025’ में हिस्सा लिया है। NATO और अमेरिका की बेचैनी बढ़ी। यह कदम भारत-रूस रक्षा रिश्तों की गहराई दिखाता है। | Shah Times
रूस-यूक्रेन जंग की तपिश अब सिर्फ कीव और मॉस्को तक सीमित नहीं रही बल्कि पूरी दुनिया की राजनीति और सिक्योरिटी स्ट्रक्चर को हिला रही है। इसी दौरान रूस और बेलारूस की ज़मीन पर हो रहे विशाल सैन्य अभ्यास जापद 2025 में भारतीय सेना की मौजूदगी ने NATO और अमेरिका को असहज कर दिया है। सवाल यह है कि जब रूस और पश्चिम के बीच तनाव चरम पर है, भारत ने क्यों अपनी टुकड़ी इस ड्रिल में भेजने का फ़ैसला किया? क्या यह भारत की स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी का सबूत है या रूस के साथ लंबे रिश्तों की मजबूरी?
जापद 2025: सैन्य अभ्यास या पावर प्रोजेक्शन?
‘जापद’ यानी West — यह रूस और बेलारूस का संयुक्त युद्धाभ्यास है, जिसे हर चार साल में आयोजित किया जाता है। इस बार का आयोजन पहले से कहीं बड़ा और संवेदनशील माना जा रहा है।
रूस का दावा है कि इसमें 1 लाख सैनिक हिस्सा ले रहे हैं।
बेलारूस ने शुरुआती तौर पर केवल 7,000 सैनिकों की बात कही थी।
भारत की ओर से कुमाऊं रेजिमेंट के 65 सैनिक मुलिनो ट्रेनिंग ग्राउंड (Nizhny Novgorod, Russia) में तैनात हुए।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन खुद इस अभ्यास का निरीक्षण करने पहुंचे। यह सिर्फ डिफेंस एक्सरसाइज नहीं बल्कि दुनिया को यह संदेश है कि रूस अब भी सैन्य रूप से ताक़तवर है और उसके साथ भारत जैसे सहयोगी मौजूद हैं।
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NATO की बेचैनी और यूरोप की प्रतिक्रिया
नाटो पहले से ही पूर्वी मोर्चे पर तनाव महसूस कर रहा है। हाल ही में रूस के 21 ड्रोन पोलैंड की सीमा में दाखिल हो गए थे, जिसके बाद वारसॉ ने 40,000 सैनिक तैनात कर दिए।
यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख काजा कल्लास ने कहा कि भारत का रूस संग बढ़ता सहयोग हमारे लिए चुनौती है।
EU और भारत के बीच ट्रेड डील की बात हो रही है, लेकिन रूस के साथ भारत का तेल और रक्षा सहयोग पश्चिमी ताक़तों को परेशान कर रहा है।
NATO के थिंक-टैंक इस बात से चिंतित हैं कि भारत की मौजूदगी रूस को इंटरनेशनल लेवल पर वैधता दे सकती है।
अमेरिका का निरीक्षण मिशन
पेंटागन ने भी मान लिया है कि उसके प्रतिनिधि बेलारूस जाकर इस अभ्यास को देखने पहुंचे। यह 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पहली बार है जब अमेरिकी अधिकारी किसी रूसी-बेलारूसी मिलिट्री एक्सरसाइज को नज़दीक से देख रहे हैं।
अमेरिकी डिफेंस अटैचे को डिस्टिंग्विश्ड विज़िटर डे पर न्योता मिला।
उन्होंने बेलारूस के रक्षा मंत्री से मुलाक़ात की।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह डिप्लोमैटिक warming up का संकेत है।
यानी अमेरिका सिर्फ भारत को ही नहीं बल्कि बेलारूस और रूस को भी नए तरीके से परख रहा है।
भारत की स्ट्रैटेजिक सोच: मजबूरी या मौका?
भारत और रूस के रिश्ते दशकों पुराने हैं।
भारतीय हथियारों का लगभग 60-65% हिस्सा रूसी निर्माण का है।
S-400 मिसाइल सिस्टम से लेकर T-90 टैंक तक, भारत की डिफेंस कैपेसिटी रूस पर निर्भर है।
रूस से सस्ते तेल की खरीद ने भारत को अरबों डॉलर बचाने का मौका दिया।
लेकिन: भारत अब ‘आत्मनिर्भर भारत’ की डिफेंस पॉलिसी के तहत वेस्टर्न टेक्नोलॉजी भी ला रहा है। फ्रांस से राफेल, अमेरिका से C-17 और अपाचे हेलीकॉप्टर इसकी मिसाल हैं।
भारत का मकसद साफ है – Balance of Power बनाए रखना। यानी रूस से रिश्ते भी टूटे नहीं और अमेरिका-यूरोप के साथ नए अवसर भी खुले रहें।
क्या यह भारत की ‘Non-Alignment 2.0’ पॉलिसी है?
1950-60 के दशक में नेहरू ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी थी। आज भारत उसी पॉलिसी का नया वर्ज़न चला रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि अब भारत ‘multi-alignment’ पर काम कर रहा है।
रूस के साथ सैन्य अभ्यास
अमेरिका और जापान संग QUAD पार्टनरशिप
फ्रांस संग इंडो-पैसिफिक डिफेंस डील
ईरान और खाड़ी देशों संग ऊर्जा सहयोग
यानी भारत किसी एक ब्लॉक में बंधा नहीं बल्कि हर जगह अपना कार्ड खेल रहा है।
NATO बनाम रूस: भारत की पोज़िशनिंग
नाटो को डर है कि भारत की मौजूदगी से रूस को स्ट्रैटेजिक बूस्ट मिलेगा।
यूरोप पहले ही गैस और ऑयल पर रूस की निर्भरता से परेशान है।
अब अगर एशिया की बड़ी ताक़तें रूस के साथ खड़ी दिखेंगी तो NATO का दबाव कमजोर होगा।
NATO के एनालिस्ट कह रहे हैं कि भारत ने रूस को diplomatic breathing space दी है।
अमेरिका-भारत ट्रेड टकराव और नई डील्स
भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ विवाद पहले से चला आ रहा है।
ट्रंप प्रशासन ने भारत पर कई टैरिफ लगाए।
भारत ने कड़ा रुख अपनाया लेकिन रिश्ते बिगड़ने नहीं दिए।
आज भी दोनों देशों में स्ट्रैटेजिक डायलॉग जारी है।
जापद 2025 में भारत की मौजूदगी ने वाशिंगटन को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि दिल्ली अब भी मॉस्को को छोड़ेगा नहीं।
रूस-भारत पार्टनरशिप: Energy + Defence Equation
भारत रूस से सबसे बड़ा कच्चे तेल का खरीदार बन चुका है।
रियायती दामों पर खरीदे गए तेल से भारत ने रिफाइन करके यूरोप को भी सप्लाई किया।
डिफेंस सेक्टर में ब्रह्मोस मिसाइल, सुखोई जेट और S-400 सबसे अहम उदाहरण हैं।
रूस के लिए भारत एक ऐसा दोस्त है जिसे खोना मुश्किल है। भारत के लिए रूस एक ऐसा पार्टनर है जो संकट में भी हथियार और ऊर्जा देता है।
भविष्य का संकेत: Indo-Russian Axis या Global Balancing?
भारत की इस कवायद से तीन बड़े संकेत निकलते हैं:
भारत रूस से दूरी बनाने के बजाय सहयोग बनाए रखेगा।
भारत की विदेश नीति वेस्टर्न ब्लॉक्स से पूरी तरह कंट्रोल नहीं होगी।
Indo-Pacific और Eurasia दोनों जगह भारत अपनी पोज़िशनिंग मज़बूत करेगा।
निष्कर्ष
‘जापद 2025’ में भारतीय सेना की मौजूदगी केवल एक सैन्य अभ्यास का हिस्सा नहीं बल्कि एक बड़े कूटनीतिक संदेश का हिस्सा है। NATO और अमेरिका को यह समझना होगा कि भारत अब policy autonomy पर काम कर रहा है। न वह रूस को छोड़ेगा, न पश्चिम को नाराज़ करेगा। यही भारत की Non-Alignment 2.0 की असल परिभाषा है।
Zapad 2025 में भारत की एंट्री ने रूस-भारत रक्षा साझेदारी को और गहरा किया। NATO और EU बेचैन, अमेरिका कूटनीतिक समीकरण पर नजर रखे।




