
Debate on military action after 26/11: Chidambaram's revelations and BJP's response
26/11 हमलों के बाद जवाबी कार्रवाई पर रणनीतिक द्वंद्व: पी चिदंबरम की स्वीकारोक्ति और बीजेपी की आलोचना
आतंकवाद, कूटनीति और राजनीति: 26/11 के बाद भारत का मुश्किल फैसला
📍 नई दिल्ली
🗓️ 30 सितम्बर 2025
✍️ आसिफ़ ख़ान
मुंबई 26/11 हमलों के बाद तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम का हालिया खुलासा भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति और राजनीतिक विमर्श दोनों में नई बहस छेड़ता है। कांग्रेस संयम को कूटनीतिक विवशता बताती है, जबकि भाजपा इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता मानती है। यह विश्लेषण दिखाता है कि कैसे आतंकवाद, अंतर्राष्ट्रीय दबाव और आंतरिक राजनीति मिलकर भारत की रणनीतिक दिशा तय करते हैं।
2008 के मुंबई आतंकी हमले (26/11) भारत के इतिहास का सबसे गहरा जख्म छोड़ गए। पी. चिदंबरम का यह खुलासा कि यूपीए सरकार ने पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई का विचार किया मगर उसे टाल दिया, राष्ट्रीय सुरक्षा पर लिए जाने वाले कठिन निर्णयों की परतें खोलता है।
उनका स्वीकार कि “प्रतिशोध मेरे मन में आया” लेकिन अंतर्राष्ट्रीय दबाव और विदेश मंत्रालय की सलाह पर संयम दिखाना पड़ा, इस बात का संकेत है कि आतंकवाद के बाद के हर कदम का असर केवल सीमाओं तक नहीं बल्कि वैश्विक राजनीति तक जाता है।
भाजपा इस स्वीकारोक्ति को कांग्रेस की कमजोरी और पाकिस्तान को क्लीन चिट देने की सियासत से जोड़ती है। कांग्रेस इसे विवशता और परमाणु जोखिम प्रबंधन का परिणाम मानती है। यही बहस भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और राजनीतिक दलों की सुरक्षा सोच के अंतर को उजागर करती है।
संदर्भ और चिदंबरम का खुलासा
26/11 का आतंक और संकट
मुंबई की गलियों, ताज होटल, नरीमन हाउस और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर बरपा वह आतंक तीन दिन तक देश को दहला गया। 175 से ज़्यादा लोग मारे गए। इस हमले ने भारत की आंतरिक सुरक्षा और ख़ुफ़िया तंत्र की कमज़ोरियों को बेनक़ाब किया।
यही पृष्ठभूमि थी जब चिदंबरम गृह मंत्री बने। देशभर में ग़ुस्सा था, जनता जवाब चाहती थी। सवाल था — क्या भारत पाकिस्तान को सीधे जवाब देगा?
स्वीकारोक्ति के अहम बिंदु
चिदंबरम कहते हैं कि सैन्य जवाबी कार्रवाई का विचार उनके मन में आया था। मगर प्रधानमंत्री और शीर्ष सलाहकारों के साथ बैठकों में नतीजा यही निकला कि युद्ध से बचना है।
दो मुख्य वजहें सामने आईं:
अंतर्राष्ट्रीय दबाव: अमेरिका और पश्चिमी देश चाहते थे कि भारत संयम दिखाए।
विदेश मंत्रालय का रुख: MEA का मानना था कि युद्ध से पाकिस्तान अलग-थलग होने के बजाय भारत ही वैश्विक मंच पर आक्रामक दिखेगा।
रणनीतिक विवशता
अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीज़ा राइस दिल्ली आईं और साफ कहा “please don’t react”। दुनिया को डर था कि भारत की जवाबी कार्रवाई सीधे परमाणु युद्ध की दिशा ले सकती है। यही दबाव दिल्ली की रणनीति पर भारी पड़ा।
जवाबी कार्रवाई न करने का तर्क
अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप
भारत ने सैन्य कार्रवाई नहीं की तो दुनिया पाकिस्तान पर दबाव डाल सकी। अगर भारत युद्ध छेड़ देता तो सहानुभूति पाकिस्तान के पक्ष में भी जा सकती थी।
कूटनीतिक अलगाव की नीति
MEA का मानना था कि पाकिस्तान को युद्ध से नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करके ही चोट पहुँचाई जाए। साक्ष्यों के साथ भारत ने लीटी (LeT) को वैश्विक आतंकवादी संगठन घोषित करवाने में सफलता पाई।
डॉ. मनमोहन सिंह की दृष्टि
उनका नज़रिया था — युद्ध अल्पकालिक संतुष्टि देगा, मगर दीर्घकालिक रणनीतिक संतुलन बिगाड़ेगा। इसलिए संयम दिखाना ही बेहतर था।
सामरिक विवशता और परमाणु जोखिम
भारत-पाक संबंधों में सबसे बड़ी चुनौती यही रही है कि सीमा पार आतंकवाद पर जवाब देने में परमाणु युद्ध का डर हमेशा बना रहता है।
2001-02 में ऑपरेशन पराक्रम महीनों चला, पर नतीजा नहीं निकला। 26/11 के बाद यूपीए को लगा कि वही गलती दोहराना और खतरनाक होगा।
संयम ने पाकिस्तान को यह संदेश ज़रूर दिया कि उसका न्यूक्लियर अम्ब्रेला आतंकवादियों को सुरक्षा देता है। यही कमी बाद में 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक जैसी कार्रवाइयों की पृष्ठभूमि बनी।
भाजपा की आलोचना
“बहुत कम, बहुत देर”
भाजपा नेताओं ने कहा — चिदंबरम का स्वीकार देर से आया और यह यूपीए की कमजोरी साबित करता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा का मिसहैंडलिंग
बीजेपी का आरोप रहा कि कांग्रेस ने विदेशी दबाव में आकर राष्ट्रीय हितों से समझौता किया। संयम को सावधानी नहीं, बल्कि कमजोरी कहा गया।
एनडीए की नीति को सही ठहराना
भाजपा ने इस स्वीकारोक्ति का इस्तेमाल अपनी आक्रामक नीतियों को सही साबित करने के लिए किया। मोदी सरकार की “निर्णायक कार्रवाई” की छवि इसी तुलना से बनाई जाती है।
‘क्लीन चिट’ आख्यान और ‘हिंदू आतंक’
भाजपा का आरोप है कि यूपीए ने 26/11 के बाद पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने की बजाय हिंदू आतंक की थ्योरी को बढ़ावा दिया।
समझौता एक्सप्रेस और मालेगांव ब्लास्ट जैसी जांचों में हिंदू गुटों पर फोकस कर पाकिस्तान की भूमिका को दबाने की कोशिश हुई। भाजपा का कहना है कि यह कांग्रेस की सियासी चाल थी, ताकि पाकिस्तान पर दबाव कम किया जा सके और घरेलू राजनीति में लाभ मिल सके।
दीर्घकालिक प्रभाव
कूटनीतिक उपलब्धि: LeT को वैश्विक आतंकी संगठन घोषित करना।
निवारक क्षमता पर असर: पाकिस्तान को संदेश गया कि भारत युद्ध से बचेगा।
नई रणनीति की ज़रूरत: बाद में सीमित सैन्य कार्रवाई (surgical strike, air strike) की राह खुली।
आंतरिक सुरक्षा सुधार: NIA का गठन, शहरी आतंक से निपटने की तैयारियों पर जोर।
नज़रिया
चिदंबरम का खुलासा बताता है कि 26/11 के बाद जवाब न देने का फ़ैसला डरपोक नहीं था, बल्कि परमाणु जोखिम और अंतर्राष्ट्रीय दबाव का नतीजा था।
लेकिन भाजपा ने इसे राजनीति में इस्तेमाल किया और संयम को कमजोरी साबित कर दिया। यही भारत की सुरक्षा नीति की विडंबना है — आतंकवाद के ख़िलाफ़ लिए गए रणनीतिक फ़ैसले अंततः घरेलू राजनीति में हथियार बन जाते हैं।




