
DDCA selection controversy wicketkeeper scandal in Delhi cricket
दिल्ली क्रिकेट में चयन विवाद: सवालों के घेरे में डीडीसीए की पारदर्शिता
विकेटकीपर चयन पर हंगामा: लोकपाल के आदेश की फिर हुई अनदेखी
दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (DDCA) की चयन प्रक्रिया पर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। वीनू मांकड़ ट्रॉफी अंडर-19 टीम में ऐसे खिलाड़ी को विकेटकीपर के रूप में शामिल कर लिया गया जो असल में कीपिंग करना ही नहीं जानता। लोकपाल के आदेशों की अनदेखी और चयनकर्ताओं पर दबाव की बातें इस विवाद को और गहराई दे रही हैं। क्रिकेट के मैदान से ज्यादा अब सुर्खियाँ चयन समिति की कार्यशैली बटोर रही हैं।
📍नई दिल्ली II शाह टाइम्स II ✍️संदीप शर्मा II 🗓️ 08 अक्टूबर 2025
Selection Scandal in DDCA: Politics Over Merit in Cricket
दिल्ली क्रिकेट की सियासत और चयन प्रक्रिया का रिश्ता अब किसी से छिपा नहीं। हर साल जब भी किसी नए टूर्नामेंट के लिए टीम घोषित होती है, विवादों का एक नया पन्ना खुल जाता है। इस बार वीनू मांकड़ ट्रॉफी की टीम को लेकर जो हंगामा हुआ, उसने फिर यह सवाल खड़ा किया है कि क्या प्रतिभा अब डीडीसीए में ‘दबाव’ और ‘पहचान’ के आगे बेमानी हो चुकी है?
3 अक्टूबर को जब अंडर-19 टीम की घोषणा हुई, तो क्रिकेट प्रेमियों को लगा कि इस बार चयन पारदर्शी होगा। लेकिन कुछ ही घंटों में खबर आई कि दूसरे विकेटकीपर के रूप में चुने गए खिलाड़ी प्रियांश असल में विकेटकीपिंग करना जानते ही नहीं। जैसे ही यह बात सामने आई, टीम मैनेजमेंट में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में असली विकेटकीपर को बुलाकर रांची रवाना किया गया — जहां 9 अक्टूबर से वीनू मांकड़ ट्रॉफी शुरू हो रही है।
यह सिर्फ एक गलती नहीं, बल्कि क्रिकेट के सिस्टम पर एक करारा तमाचा है। चयन समिति में बैठे लोग जानते थे कि लोकपाल ने साफ आदेश दिए हैं — किसी भी चयन बैठक में कोई पदाधिकारी शामिल नहीं होगा। फिर भी सचिव अशोक शर्मा और संयुक्त सचिव अमित ग्रोवर बैठक में मौजूद रहे। सवाल उठता है कि जब आदेश स्पष्ट थे तो यह अवहेलना क्यों?
सूत्र बताते हैं कि चयनकर्ताओं पर दबाव डाला गया था। आखिरकार अध्यक्ष रोहन जेटली को खुद दखल देना पड़ा। लेकिन यह हस्तक्षेप तब हुआ जब विवाद मीडिया में पहुंच चुका था। सवाल अब सिर्फ एक खिलाड़ी का नहीं, बल्कि उस पूरे सिस्टम का है जो वर्षों से दिल्ली क्रिकेट को राजनीति का अखाड़ा बना चुका है।
कई वरिष्ठ क्रिकेटर और पूर्व चयनकर्ता मानते हैं कि डीडीसीए के भीतर पारदर्शिता केवल कागजों पर है। अंदरखाने लॉबिंग, ग्रुपबाज़ी और सिफारिश संस्कृति का बोलबाला है। यह वही संस्था है जहां कभी बिशन सिंह बेदी और कपिल देव जैसे नामों ने देश को गौरव दिलाया था। अब वहीं ‘मेरिट’ की जगह ‘मैनेजमेंट’ ने ले ली है।
एक दिलचस्प बात यह भी है कि इसी टीम से एक खिलाड़ी को कागजी गड़बड़ी के चलते बाहर किया गया, और एक अन्य को अचानक ड्रॉप कर दिया गया। यानी पूरी चयन प्रक्रिया सवालों के घेरे में है। क्रिकेट में गलती होना असामान्य नहीं, लेकिन जब गलती ‘इरादतन’ दिखे तो उसका बचाव नामुमकिन होता है।
खेल का असली मज़ा तब है जब हर खिलाड़ी को उसके प्रदर्शन के आधार पर मौका मिले। अगर चयन इस तरह के ‘प्रभावों’ के अधीन होता रहेगा, तो युवा खिलाड़ियों का मनोबल टूटेगा। आज यह मामला अंडर-19 टीम का है, कल सीनियर टीम तक पहुँच जाएगा।
आज का शाह टाइम्स ई-पेपर डाउनलोड करें और पढ़ें
लोकपाल के निर्देशों का पालन न करना सिर्फ नियमों का उल्लंघन नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी का भी अपमान है। डीडीसीए जैसे संस्थान को चाहिए कि वह साफ-सुथरे चयन की परंपरा को पुनर्जीवित करे। अध्यक्ष रोहन जेटली की छवि एक सुधरते सिस्टम की रही है, लेकिन ऐसे विवाद उनकी छवि पर भी असर डालते हैं।
क्रिकेट दिल्ली में सिर्फ खेल नहीं, ‘पहचान’ का सवाल है। हजारों बच्चे रोज़ सुबह मैदान में पसीना बहाते हैं इस उम्मीद में कि उन्हें एक दिन डीडीसीए की टीम से खेलने का मौका मिलेगा। पर जब चयन ‘कुर्सियों के हिसाब’ से होने लगे, तो मेहनत करने वालों का भरोसा टूट जाता है।
खेल भावना यही कहती है कि गलती स्वीकार कर सुधार किया जाए। लेकिन अगर गलती को ‘नॉर्मल’ बना दिया गया तो यह पूरी पीढ़ी को गलत संदेश देगा। दिल्ली क्रिकेट को अब आत्ममंथन की ज़रूरत है — पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता के साथ।
यह विवाद सिर्फ एक खिलाड़ी का नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का आईना है जो दशकों से खिलाड़ियों की प्रतिभा को राजनीति के वजन में तौल रही है। शायद वक्त आ गया है कि डीडीसीए यह तय करे — वह क्रिकेट चला रही है या सत्ता की रणनीति?




