
Shah Times Exclusive: PM Narendra Modi and US President Donald Trump in a diplomatic standoff after US tariff hike on Indian goods.
टैरिफ विवाद: पीएम मोदी का चीन दौरा अमेरिका को खल रहा
ट्रंप के टैरिफ झटके से बचने के लिए पीएम मोदी के पास 19 दिन: भारत के विकल्प और वैश्विक समीकरण
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय उत्पादों पर टैरिफ 50% करने के फैसले से भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव बढ़ा। पीएम मोदी के पास 19 दिन हैं—क्या भारत चीन की ओर झुक सकता है?
वैश्विक राजनीति में भारत का नया इम्तिहान
अंतरराष्ट्रीय राजनीति और व्यापार के बदलते समीकरणों के बीच भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां उसे कूटनीति, आर्थिक हितों और वैश्विक साझेदारी के बीच संतुलन साधना होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 6 अगस्त को एक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए भारत से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया। यह फैसला 27 अगस्त से लागू होगा, यानी भारत के पास समाधान निकालने के लिए महज 19 दिन हैं।
ट्रंप का तर्क है कि भारत रूस से तेल की खरीद जारी रखे हुए है, जबकि अमेरिका चाहता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के दबाव में रूस को आर्थिक रूप से अलग-थलग किया जाए। यह कदम न केवल भारत-अमेरिका आर्थिक रिश्तों में नई दरार का संकेत है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की स्थिति को भी चुनौती देता है।
टैरिफ निर्णय का आर्थिक असर
ट्रंप का यह कदम भारतीय निर्यातकों के लिए बड़ा झटका है। प्रभावित सेक्टर में कृषि उत्पाद, फार्मास्युटिकल्स, स्टील, टेक्सटाइल और ऑटोमोबाइल प्रमुख हैं। इससे भारतीय कंपनियों की अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा क्षमता घट सकती है और कई उद्योगों को राजस्व में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
अमेरिकी बाजार भारत के लिए महत्वपूर्ण है—2024-25 में भारत का अमेरिका को निर्यात 118 बिलियन डॉलर के करीब रहा। टैरिफ के दोगुना होने से भारतीय वस्तुओं की कीमत अमेरिकी बाजार में बढ़ जाएगी, जिससे मांग पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
अमेरिका का रणनीतिक संदेश
ट्रंप के फैसले के पीछे केवल आर्थिक कारण नहीं हैं, बल्कि स्पष्ट रूप से भू-राजनीतिक संदेश भी है। व्हाइट हाउस का कहना है कि यह कदम रूस पर दबाव बढ़ाने का हिस्सा है ताकि राष्ट्रपति पुतिन युद्धविराम पर विचार करें। ट्रंप का इशारा साफ है—जो देश रूस से ऊर्जा आयात जारी रखेंगे, उन्हें आर्थिक कीमत चुकानी होगी।
अमेरिकी विदेश विभाग के प्रिंसिपल डिप्टी प्रवक्ता टॉमी पिगॉट ने कहा कि भारत एक रणनीतिक साझेदार है और दोनों देशों के बीच ‘स्पष्ट और ईमानदार संवाद’ जारी है। यह बयान ऐसे समय आया है जब पीएम मोदी चीन दौरे की तैयारी कर रहे हैं।
पीएम मोदी का कड़ा रुख
टैरिफ फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कहा कि भारत किसानों, डेयरी और मछुआरों के हितों से समझौता नहीं करेगा, चाहे इसके लिए उन्हें व्यक्तिगत कीमत ही क्यों न चुकानी पड़े। यह बयान अमेरिकी दबाव को सीधे तौर पर चुनौती देने जैसा है और भारत के स्वाभिमानी रुख को दर्शाता है।
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ब्राजील का समर्थन और सामूहिक रणनीति
पीएम मोदी ने ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा से बातचीत की, जिसमें ट्रंप की टैरिफ नीति पर चर्चा हुई। ब्राजील ने भी कहा कि वे इस नीति से सबसे अधिक प्रभावित देशों में हैं और इसे सामूहिक रूप से चुनौती देने की जरूरत है। इससे संकेत मिलता है कि भारत एक बहुपक्षीय रणनीति अपना सकता है, जिसमें अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाएं भी शामिल होंगी।
रूस से बढ़ते संवाद
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस जयशंकर की हालिया रूस यात्राएं इस बात का संकेत हैं कि भारत रूस के साथ अपने संबंध बनाए रखने के पक्ष में है। राष्ट्रपति पुतिन के इस वर्ष भारत आने की संभावना भी है, जो दोनों देशों के बीच ऊर्जा और रक्षा सहयोग को और मजबूत कर सकती है।
चीन कारक और SCO सम्मेलन
31 अगस्त से 1 सितंबर के बीच चीन के तिआंजिन में होने वाले SCO सम्मेलन में पीएम मोदी की भागीदारी अमेरिका के लिए संकेत है कि भारत कूटनीतिक संतुलन बना रहा है। सात वर्षों में यह मोदी का पहला चीन दौरा होगा और इसमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय बैठक की भी संभावना है।
भारत में चीन के राजदूत शू फेइहोंग ने अमेरिका पर ‘शोषणकारी टैरिफ हथियार’ इस्तेमाल करने का आरोप लगाया और कहा कि दादागीरी को एक इंच दो तो वह एक मील ले लेगा। यह बयान अमेरिकी नीति के खिलाफ एक स्पष्ट संदेश है।
अमेरिका की चिंता: भारत का झुकाव चीन की ओर
अमेरिकी नीति-निर्माताओं को चिंता है कि टैरिफ विवाद भारत को चीन के साथ रिश्ते सुधारने के लिए प्रेरित कर सकता है। हालांकि, अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि यह संपूर्ण संवाद का हिस्सा है और दोनों देश स्पष्टता के साथ आपसी चिंताओं पर चर्चा करते हैं।
भारत के सामने उपलब्ध विकल्प
भारत के पास इस संकट से निपटने के लिए कई रणनीतिक विकल्प हैं:
अमेरिका से सीधी बातचीत – टैरिफ में नरमी लाने के लिए उच्चस्तरीय वार्ता।
बहुपक्षीय दबाव – ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों के साथ मिलकर WTO में चुनौती देना।
नए व्यापार साझेदार – ASEAN, यूरोप और अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार बढ़ाना।
घरेलू बाजार पर फोकस – आयात-निर्यात में आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहन।
चीन और रूस के साथ संतुलन – अमेरिका को यह संदेश देना कि भारत के पास वैकल्पिक कूटनीतिक रास्ते मौजूद हैं।
वैश्विक समीकरण और भारत की भूमिका
भारत आज ऐसी स्थिति में है, जहां वह किसी एक ध्रुव पर पूरी तरह निर्भर नहीं रह सकता। अमेरिका, चीन और रूस तीनों के साथ रिश्तों का प्रबंधन उसकी विदेश नीति का मुख्य स्तंभ है। टैरिफ विवाद यह भी दर्शाता है कि भू-राजनीतिक टकराव का असर सीधे आर्थिक हितों पर पड़ सकता है।
कूटनीति की अगली परीक्षा
ट्रंप का टैरिफ फैसला केवल एक आर्थिक चुनौती नहीं, बल्कि भारत की कूटनीतिक परिपक्वता की भी परीक्षा है। आने वाले 19 दिनों में यह तय होगा कि भारत इस झटके को कैसे संभालता है—क्या वह अमेरिका से समझौता करता है, बहुपक्षीय मंचों का सहारा लेता है या फिर चीन और रूस के साथ समीकरण मजबूत कर अमेरिका पर दबाव बनाता है।
जो भी हो, यह स्पष्ट है कि आने वाले हफ्तों में भारत वैश्विक राजनीति का केंद्र बना रहेगा और उसकी हर चाल पर वॉशिंगटन, बीजिंग और मॉस्को की नजरें टिकी रहेंगी।