
"Celebrating 40 years of the Shah Bano case, a landmark judgement that continues to inspire legal and social debates in India."
1985 के ऐतिहासिक शाह बानो केस को 40 साल हो गए हैं। यह फैसला आज भी यूनिफॉर्म सिविल कोड, लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता पर बहस की धुरी बना हुआ है। अब इसी पर आधारित एक फिल्म आ रही है, जिसमें यामी गौतम और इमरान हाशमी मुख्य भूमिका में हैं।
शाह बानो केस के 40 साल: जब एक महिला की आवाज़ ने कानून को हिला दिया — अब उसी पर बनेगी फिल्म
1985 — एक ऐसा साल जिसने भारत की न्यायिक और सामाजिक चेतना को झकझोर कर रख दिया। सुप्रीम कोर्ट का मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम में दिया गया ऐतिहासिक फैसला, आज 40 साल बाद भी चर्चा और बहस का विषय बना हुआ है।
इस फैसले ने न सिर्फ भारत की कानूनी व्यवस्था में नया अध्याय जोड़ा, बल्कि धर्म, लैंगिक समानता और राजनीतिक इच्छाशक्ति की जटिल परतों को भी उजागर किया।
अब वही कहानी, बड़े पर्दे पर लौट रही है।
खबरों के मुताबिक, शाह बानो केस और उससे जुड़े सामाजिक-राजनीतिक विवादों से प्रेरित एक फिल्म का निर्माण हो रहा है। इस फिल्म का निर्देशन कर रहे हैं सुपर्ण वर्मा, और इसमें यामी गौतम और इमरान हाशमी लीड रोल में नजर आएंगे। फिल्म की शूटिंग हाल ही में लखनऊ में पूरी हुई है।
यह फिल्म यामी की सफल “आर्टिकल 370” के बाद एक और पावरफुल परफॉर्मेंस मानी जा रही है, जिसमें वह एक बार फिर कानून और राजनीति के टकराव को इंसानी नजरिए से पेश करेंगी।
शाह बानो की कहानी क्या थी?
1978 में, 62 वर्षीय शाह बानो — पाँच बच्चों की माँ — को उनके वकील पति मोहम्मद अहमद खान ने तीन तलाक दे दिया। जब उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत गुज़ारा भत्ता माँगा, तो पति ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देकर उसे देने से इनकार कर दिया।
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 1985 में अदालत ने फैसला सुनाया कि धारा 125 सभी भारतीय नागरिकों पर लागू होती है और तलाकशुदा महिलाओं को गुज़ारा भत्ता मिलना चाहिए, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।
यह फैसला एक मील का पत्थर था, जिसने लैंगिक न्याय और धर्मनिरपेक्ष संविधान के सिद्धांतों को मजबूती दी।
लेकिन यही फैसला बना राजनीतिक घमासान का कारण।
कई मुस्लिम संगठनों ने फैसले का विरोध किया और राजीव गांधी सरकार ने दबाव में आकर 1986 में मुस्लिम महिला (विवाह विच्छेद पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम पास किया, जिससे सुप्रीम कोर्ट का फैसला लगभग निष्प्रभावी हो गया।
यह घटना भारतीय राजनीति के उस मोड़ की शुरुआत थी जहाँ वोट बैंक बनाम संवैधानिक मूल्य की बहस सामने आई — और तब से आज तक वह बहस जारी है।
आज भी है प्रासंगिक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह कई बार इस केस का हवाला देकर यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की वकालत कर चुके हैं। उनके अनुसार, यह केस बताता है कि समान नागरिक संहिता भारत की न्याय प्रणाली के लिए क्यों आवश्यक है।
अब सिनेमा से लौटेगी शाह बानो की आवाज
चार दशक पहले जो आवाज कोर्टरूम की दीवारों में गूंजी थी, वह अब फिल्मी पर्दे पर सुनाई देगी — और शायद, एक नई पीढ़ी को यह समझा सके कि कानून सिर्फ किताबों में नहीं, लोगों की ज़िंदगी में भी बसता है।