
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने पर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिस को फटकार लगाई है। कोर्ट ने ‘ऐ खून के प्यासे बात सुनो’ कविता को अहिंसा को बढ़ावा देने वाला बताया। कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी को समझने की जरूरत पर जोर दिया और पुलिस की संवेदनशीलता की कमी को उजागर किया।
नई दिल्ली (शाह टाइम्स) सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिस को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने पर सवाल उठाए हैं। यह एफआईआर एक सोशल मीडिया पोस्ट पर की गई थी। पोस्ट में ‘ऐ खून के प्यासे बात सुनो’ नाम की कविता थी। कोर्ट ने कहा कि कविता अहिंसा को बढ़ावा देती है। इसका किसी धर्म या देश विरोधी गतिविधि से कोई लेना-देना नहीं है। कोर्ट ने कहा, पुलिस को थोड़ी संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी। उन्हें कार्रवाई करने से पहले कविता पढ़नी चाहिए थी। कोर्ट ने एफआईआर को गलत करार देते हुए कहा कि संविधान के 75 साल के इतिहास में पुलिस को अब तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझ लेना चाहिए था
धर्म से नहीं कोई लेना-देना
कांग्रेस सांसद की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अभय एस ओका और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कविता का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा। अनुवाद था, ‘जो खून के प्यासे हैं, हमारी बात सुनो। न्याय की लड़ाई में अगर अन्याय भी मिले, तो हम उस अन्याय का सामना प्यार से करेंगे।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘यह कविता दरअसल अहिंसा को बढ़ावा देती है। इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। इसका किसी राष्ट्र-विरोधी गतिविधि से कोई लेना-देना नहीं है। पुलिस ने संवेदनशीलता की कमी दिखाई है।
क्या यही है समस्या
राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि लोगों ने प्रतापगढ़ी की सोशल मीडिया पोस्ट को अलग-अलग तरीकों से लिया। इससे समस्या पैदा हुई। पीठ ने जवाब दिया, ‘यही समस्या है। अब किसी के मन में रचनात्मकता के प्रति कोई सम्मान नहीं है।’ इस दौरान कांग्रेस सांसद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को गुजरात हाईकोर्ट के बारे में भी कुछ कहना चाहिए। हाईकोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने की मंजूरी दी थी। मेहता ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि कोर्ट को उस क्षेत्र में नहीं जाना चाहिए कोर्ट ने संकेत दिया कि सांसद के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही की जरूरत नहीं है। फिर भी कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। कोर्ट ने कहा कि मामले में ‘जो भी कहा जाना चाहिए’। वह फैसले में देखा जाएगा।
क्यों है आगे की जांच की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट ने पहले प्रतापगढ़ी को अंतरिम राहत दी थी। उसने एफआईआर पर कोई कार्रवाई न करने का आदेश दिया था। जामनगर के सिटी ए-डिवीजन पुलिस स्टेशन ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था। सांसद पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने का आरोप था। प्रतापगढ़ी ने पहले गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी। लेकिन 17 जनवरी को हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया। कहा कि आगे की जांच की जरूरत है। हाईकोर्ट ने कहा कि कविता की भावना सिंहासन के बारे में कुछ संकेत देती है। सोशल मीडिया पोस्ट पर प्रतिक्रियाएं भी सामाजिक सद्भाव में संभावित गड़बड़ी का संकेत देती हैं। गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के तुरंत बाद, प्रतापगढ़ी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। 21 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें राहत देते हुए कहा कि उन्हें अभी तक इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “एफआईआर के आधार पर किसी भी तरह से आगे कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।