
A powerful economic collage featuring US dollars, Indian ₹500 notes, gold bars, and coins – depicting the global currency shift. Shah Times Exclusive.
क्या डॉलर की बादशाहत खत्म हो रही है? अमेरिकी करेंसी के गिरते दबदबे और भारतीय रुपए के उभरते प्रभाव पर विश्लेषण
2025 में डॉलर की हालत खराब! रुपए और गोल्ड ने छीनी चमक
Shah Times Economic News
अमेरिकी डॉलर 2025 की पहली छमाही में 10.8% गिरा। क्या अब डॉलर का वर्चस्व खत्म हो रहा है? जानिए भारत में रुपए के उभार और सोने की बढ़ती चमक का विश्लेषण।
🔎 डॉलर की गूंज अब मंद पड़ रही है
अमेरिकी डॉलर दशकों से अंतरराष्ट्रीय व्यापार, ऊर्जा सौदों और ग्लोबल रिजर्व का सबसे मजबूत आधार रहा है। लेकिन 2025 की पहली छमाही में 10.8% की गिरावट के साथ, यह सवाल उठने लगा है कि क्या डॉलर की वैश्विक बादशाहत अब अंत की ओर बढ़ रही है? ब्लूमबर्ग डॉलर स्पॉट इंडेक्स में लगातार छठे महीने गिरावट और गोल्ड की बढ़ती हिस्सेदारी इस बदलाव के संकेत हैं।
🌍 डॉलर इंडेक्स में ऐतिहासिक गिरावट: क्यों बन गई ‘बैलेंस शीट’ की कमजोरी?
1973 में ब्रेटन वुड्स सिस्टम समाप्त होने के बाद यह डॉलर का सबसे खराब प्रदर्शन माना जा रहा है। डॉलर इंडेक्स में 10.8% गिरावट ने निवेशकों को चौंका दिया है। प्रमुख करेंसी जैसे स्विस फ्रैंक, यूरो, जापानी येन और ब्रिटिश पाउंड के मुकाबले अमेरिकी डॉलर में क्रमश: 14.4%, 13.4%, 10.5% और 9.6% की गिरावट दर्ज हुई है।
इस गिरावट के पीछे कई कारक हैं:
- ट्रंप प्रशासन के टैरिफ और आक्रामक व्यापारिक रुख
- अमेरिकी फेडरल रिजर्व पर ट्रंप का बढ़ता दबाव
- डेफिसिट स्पेंडिंग और ब्याज दरों में कटौती की आशंका
🪙 सोने की चमक बनाम डॉलर की फीकी होती रौनक
ग्लोबल रिजर्व में सोने की हिस्सेदारी 2025 की दूसरी तिमाही में 23% तक पहुंच गई है—यह पिछले 30 वर्षों में सबसे ज्यादा है। चीन, तुर्की, पोलैंड और भारत जैसे देश अपने फॉरेन रिजर्व में डॉलर की बजाय सोने की हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं। चीन ने लगातार सात महीने तक सोने की खरीदारी की है और अपने नागरिकों को भी इसमें निवेश को प्रोत्साहित कर रहा है।
👉 अमेरिकी डॉलर की ग्लोबल रिजर्व में हिस्सेदारी घटकर 44% रह गई है—1993 के बाद सबसे निचला स्तर।
🇮🇳 एशिया में भारतीय रुपया बना उम्मीद की किरण
जुलाई के पहले कारोबारी दिन रुपया डॉलर के मुकाबले 85.34 के उच्चतम स्तर तक पहुंचा, जो डॉलर की कमजोरी और रुपए की मजबूती का स्पष्ट संकेत है। अमेरिकी डॉलर की गिरती साख, फेडरल रिजर्व की कमजोर स्थिति और कच्चे तेल की कीमतों में नरमी ने रुपए को बल दिया है।
📉 डॉलर की कमजोरी के मुख्य कारण:
- फेड और ट्रंप के बीच नीति टकराव
- ब्याज दरों पर असमंजस
- ब्रेंट क्रूड की कीमतों में गिरावट
📈 रुपया क्यों चमका?
- भारतीय बाजार में विदेशी निवेश की उम्मीदें
- महंगाई पर नियंत्रण
- आयात बिल में कमी
📊 बाजार पर असर: सेंसेक्स और निफ्टी में मजबूती
डॉलर की गिरावट ने शेयर बाजार में भी सकारात्मक प्रभाव डाला है:
- सेंसेक्स 90.83 अंक बढ़कर 83,697.29 पर
- निफ्टी 24.75 अंक चढ़कर 25,541.80 पर
- ब्रेंट क्रूड 0.24% गिरकर 66.58 डॉलर/बैरल
💬 विशेषज्ञों की राय: डॉलर अब ‘डॉमिनेंस’ की रेस में नहीं
मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी कहते हैं कि जोखिम लेने की वैश्विक प्रवृत्ति और डॉलर की गिरती विश्वसनीयता रुपए को आगे बढ़ा सकती है। डॉलर की यह गिरावट अस्थायी न होकर एक नई आर्थिक हकीकत की ओर इशारा कर सकती है, जिसमें ग्लोबल सेंट्रल बैंक डॉलर से अलग विकल्पों की तलाश में हैं।
🇮🇳 भारत के लिए क्या मायने हैं इस बदलाव के?
- विदेशी निवेश: डॉलर कमजोर होगा तो भारत जैसे विकासशील देश अधिक FDI आकर्षित कर सकते हैं।
- तेजी से मजबूत होता रुपया: आयात सस्ता, महंगाई नियंत्रित।
- मुद्रा नीति की स्वतंत्रता: भारत वैश्विक दबाव से थोड़ा मुक्त होकर अपनी मौद्रिक नीति को संचालित कर सकेगा।
🔚 निष्कर्ष: क्या डॉलर के सूर्यास्त का समय आ गया है?
हालांकि डॉलर अभी भी वैश्विक वित्तीय व्यवस्था की धुरी है, लेकिन बदलते आर्थिक समीकरण, ट्रंप की नीतियां, और ग्लोबल सेंट्रल बैंकों की गोल्ड में दिलचस्पी इस व्यवस्था में दरार पैदा कर रही है। भारत जैसे देशों के लिए यह सुनहरा अवसर है कि वे अपनी करेंसी को मजबूत करें, वैश्विक व्यापार में भूमिका बढ़ाएं और डॉलर के प्रभुत्व से धीरे-धीरे आज़ादी की ओर बढ़ें।






